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निषेध  : पुं० [सं० नि√सिध्+घञ्] १. अधिकारपूर्वक और कारणवश यह कहना कि ऐसा मत करो। मना करने की क्रिया या भाव। मनाही। (फारबिंडिग) २. वह कथन या आज्ञा जिसमें कोई बात न मानी गई हो या न किये जाने का विधान हो। (नेगेशन) ३. अपवाद। ४. अडचन। बाधा। रुकावट। ५. अस्वीकृति। इन्कार।
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निषेध-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें किसी को कोई काम न करने के लिए आदेश दिया गया हो।
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निषेध-विधि  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह आज्ञा, कथन या बात, जिसमें किसी काम का निषेध किया जाय। जैसे–यह काम नहीं करना चाहिए। यह निषेध-विधि है।
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निषेधक  : पुं० [सं० नि√सिध्+ल्युट्–अक] १. (व्यक्ति) निषेध या मनाही करनेवाला। २. (आज्ञा या कथन) जिसके द्वारा निषेध या मनाही की जाय। ३. बाधक।
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निषेधन  : पुं० [सं० नि√सिध्+ल्युट्–अन] निषेध करने की क्रिया या भाव।
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निषेधाक्षेप  : पुं० [सं० निषेध-आक्षेप, ब० स०] साहित्य में आक्षेप अलंकार के तीन भेदों में से एक, जिसमें कोई बात इस ढंग से मना की जाती है कि ध्वनि से उसे करने का विधान सूचित होता है।
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निषेधात्मक  : वि० [सं० निषेध-आत्मन्, ब० स०+कप्] १. (कथन या विधान) जो निषेध के रूप में हो। २. दे० नहिक।
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निषेधाधिकार  : पुं० [सं० निषेध-अधिकार, ष० त०] १. ऐसा अधिकार जिससे किसी को कोई काम करने से रोका जा सके। २. राज्य, संस्था आदि के प्रधान के हाथ में होनेवाला वह अधिकार, जिससे वह विधायिका सभा द्वारा पारित-प्रस्ताव को कानून या विधि बनने से रोक सकता है। ३. किसी संस्था के सदस्यों के हाथ में रहनेवाला उक्त प्रकार का वह अधिकार जिससे कोई स्वीकृत प्रस्ताव व्यवहार में आने से रोका जा सकता है। (वीटो)
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निषेधित  : भू० कृ० [सं० नि√सिध्+णिच्+क्त] जिसके या जिसके लिए निषेध किया गया हो। मना किया हुआ।
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