शब्द का अर्थ
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मही :
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स्त्री० [सं०√मह+अच्+ङीष्] १. पृथ्वी। २. पृथ्वी के आधार पर एक की संख्या। ३. मिट्टी। ४. खाली स्थान। अवकाश। ५. नदी। ६. सेना। फौज। ७. समूह। ८. गाय। गौ। ९. एक प्रकार का छंद जिसमें एक लघु और एक गुरू मात्रा होती है। जैसे—मही, लगी इत्यादि। पुं० [हिं० मथितः] मट्ठा। |
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मही-तल :
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पुं० [सं० ष० त०] पृथ्वी। संसार। |
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मही-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] मंगल ग्रह। |
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मही-पुत्री :
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स्त्री० [ष० त०] सीता जी। |
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मही-प्राचीर :
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पुं० [ष० त०] समुद्र। |
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मही-भर्त्ता (भर्तृ) :
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पुं० [ष० त०] [स्त्री० महीभत्री] पृथ्वी (के निवासियों) का भरण पोषण करनेवाला, राजा। |
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मही-मंडल :
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पुं० [सं० ष० त०] पृथ्वी। भूमंडल। |
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मही-सुत :
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पुं० [ष० त०] मंगल ग्रह। |
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मही-सुता :
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स्त्री० [ष० त०] सीता जी। |
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मही-सुर :
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पुं० [स० त०] ब्राह्मण। |
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मही-सूनु :
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पुं० [ष० त०] मंगल ग्रह। |
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महीख़ड़ी :
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स्त्री० [देश] सिकलीगरों का एक औजार। |
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महीज :
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पुं० [सं० मही√जन् (उत्पन्न करना)+ड०] १. मंगल ग्रह। २. अदरक। |
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महीदास :
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पुं० [सं० ष० त०] ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता एक प्रसिद्ध ऋषि। |
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महीदेव :
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पुं० [सं० ष० त०] भू-देव। ब्राह्मण। |
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महीधर :
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पुं० [सं० ष० त०] १. पर्वत। पहाड़। २. शेषनाग। ३. बौद्धों के अनुसार एक देवपुत्र। ४. एक प्रकार का वार्णिक वृत्त जिसमें चौदह बार क्रम लघु और गुरु आते हैं। |
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महीध्र :
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पुं० [सं० मही√धृ (धारण करना)+क] महीधर। |
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महीध्रक :
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पुं० [सं० महीध्र√कन्] =महीध्र। |
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महीन :
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वि० [सं० महत्+झीन] (सं० क्षीण) १. जिसका घेरा तल या विस्तार इतना कम या थोड़ा हो कि सहसा दिखायी न दे। सूक्ष्म ‘मोटा’ का विपर्याय। जैसे—महीन काम, महीन निशान। २. बहुत ही पतला या बारीक। झीना। जैसे—कपड़े का महीन पोत। पद—महीन काम=ऐसा काम जिसे करने में बहुत आँख गड़ाने और सावधानी रखने की आवश्यकता होती हो। जैसे—सीना-पिरोना, चित्रकारी, नक्काशी आदि। ३. (स्वर) जो बहुत कम ऊँचा या तेज हो। कोमल धीमा। मंद। जैसे—महीन आवाज। पुं० [सं०] राजा। |
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महीना :
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पुं० [सं० मास या मि०, फा० माह] १. काल का एक प्रसिद्ध परिमाण जो वर्ष के बारहवें अंश के बराबर और प्रायः तीस दिनों का होता है। मास। माह। २. हर महीने अर्थात् महीना भर काम करने के बदले मिलनेवाला वेतन या वृत्ति। ३. स्त्रियो का रजोधर्म या मासिक धर्म जो प्रायः महीन-महीने पर होता है। मुहावरा—(स्त्री का) महीने से होना=रजोधर्म से होना। रजस्वला होना। |
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महीप :
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पुं० [सं० मही√पा (रक्षा)+क] राजा। |
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महीपति :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। |
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महीपाल :
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पुं० [सं० मही√पाल् (पालन)+णिच्+अण्] राजा। |
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महीभुक् (भुज्) :
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पुं० [सं० मही√भुज् (उपभोग करना)+क्विप्, कृत्व] राजा। |
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महीभृत् :
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पुं० [सं० मही√भृ (पालन करना)+क्विप्, तुक्] १. राजा। २. पर्वत। पहाड़। |
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महीम :
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पुं० [देश] एक प्रकार का गन्ना। |
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महीयान (यस्) :
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वि० [सं० महत्+ईयसुन] [स्त्री० महीयसी] १. किसी की तुलना में अधिक बड़ा। २. महान् ३. शक्तिशाली। |
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महीर :
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स्त्री० [हिं० मही] १. मक्खन को तपाने पर निकलनेवाली तलछट। २. महेरा। (दे०)। |
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महीरावण :
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पुं० [सं०] १. अद्भुत रामायण के अनुसार रावण के एक पुत्र का नाम। २. महिरावण। |
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महीरूह :
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पुं० [सं० मही√रूह (उत्पन्न होना)+क] वृक्ष। |
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महीलता :
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स्त्री० [सं० स० त०] केंचुआ। |
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महीश :
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[पुं० मही-ईश, ष० त०] राजा। |
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