शब्द का अर्थ
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काँस :
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पुं० [सं० काश] १. परती अथवा ऊँची और ढलुई जमीन में होनेवाली एक प्रकार की लंबी घास जो शरद् ऋतु में फूलती है। उदाहरण—फूले कास सकल महि छाई।—तुलसी। मुहावरा—काँस में तैरना=मृग तृष्णा के फेर में पड़कर इधर-उधर भटकना। २. विकट या संकटपूर्ण स्थिति। मुहावरा—काँस में पड़ना या फँसना=विपत्ति या संकट में पड़ना या फँसना। |
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काँसा :
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पुं० [सं० कास्य] [वि० कांसी] एक मिश्र जातु जो ताँबे जस्ते आदि के योग से बनती है। कसकुट। यौ-कँसभरा-काँसे का गहना बनाने और बेचनेवाला। वि० [सं० कनिष्ठ] भीख माँगने का खप्पर या ठीकरा। उदाहरण—जब हाथ में लिया कांसा। तब भीख का क्या सांसा।—कहा०।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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काँसागर :
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पुं० [हिं० कांसा+फा० गर (प्रत्यय)] काँसे आदि के गहने बरतन आदि बनानेवाला (व्यक्ति)। |
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काँसार :
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पुं० =कांसागर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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काँसी :
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स्त्री० [सं० काश] धान के पौधे में होनेवाला एक रोग। स्त्री०=काँसा। |
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काँसुला :
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पुं० [हिं० काँसा] १. काँसे का वह चौकोर मोटा टुकड़ा जिस पर चारों ओर गढ्ढे आदि बने होते हैं और जिसकी सहायता से सुनार अर्द्ध-गोलाकार या गोलाकार चीजें बनाते हैं। २. काँसे या गिल्ट का बना हुआ गहना। |
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कांस्य :
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पुं० [सं० कांस+यञ्] कांसा। कसकुट। (धातु)। वि०१. काँसे का बना हुआ। २. काँसे से संबंध रखनेवाला। काँसे का। |
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कांस्य-ताल :
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पुं० [मध्य० स०] ताल या मँजीरा नामक बाजा। |
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कांस्य-दोहनी :
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स्त्री० [मध्य० स०] कांस्य का बना हुआ दूध दूहने का पात्र। |
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कांस्य-मल :
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पुं० [ष० त०] ताँबे-पीतल आदि धातुओं में लगनेवाला जंग या मोरचा। |
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कांस्य-युग :
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पुं० [ष० त०] पुरातत्त्व में प्रागैतिहासिक काल का वह विभाग जो प्रस्तर युग के बाद और लौह-युग के पहले माना जाता है और जिसमें औजार, हथियार आदि काँसे के ही बनते थे। ताम्रयुग। (ब्रांज एज)। |
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कांस्यक :
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पुं० [सं० कास्य+कन्] पीतल। |
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कांस्यकार :
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पुं० [सं० कास्य√कृ (करना)+अण्] कसेरा। ठठेरा। |
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