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कांड  : पुं० [सं० कण्(दीप्ति)+ड,दीर्घ] १. किसी वस्तु का कोई खंड या भाग। २. वनस्पतियों के तने का दो गाँठों के बीच का भाग। पोर। ३. वृक्षों का तना। ४. वनस्पतियों या वृक्षों की डालियाँ। ५. किसी कार्य या कृति का कोई भाग। ६. किसी ग्रन्थ या पुस्तक का कोई अध्याय या प्रकरण। ७. सरकंडा। ८. गुच्छा। ९. समूह। वृंद। १॰. हाथ या टाँग की लंबी हड्डी। ११. धनुष के बीच का मोटा भाग। १२. बाण। तीर। १३. छड़ी। डंडा। १४. जल। १५. निर्जन स्थल। १६. अवसर। १७. प्रपंच। १८. बहुत बड़ी दुर्घटना। कोई अप्रिय या अशुभ घटना। जैसे—हत्या-कांड। वि० कुत्सित। बुरा।
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कांड तिक्त  : पुं० [स० त०] चिरायता।
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कांड-त्रय  : पुं० [ष० त०] वेद के तीन विभाग जिसको कर्मकांड उपासनाकांड और ज्ञानकांड कहते हैं।
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कांड-पृष्ठ  : पुं० [ब० स०] १. बहुत बड़ा या भारी धनुष। २. कर्ण के धनुष का नाम। ३. योद्धा। सैनिक। ४. वह ब्राह्मण जो तीर तथा दूसरे अस्त्र-शस्त्र बनाकर जीविका उपार्जन करता हो। ५. वह जो अपना कुल छोड़कर किसी दूसरे के कुल में जा मिले।
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कांड-भग्न  : पुं० [स० त०] वैद्यक में आघात आदि से हड्डी का टूटना। (फ्रैक्चर)
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कांडधार  : पुं० [सं० कांड√धृ (धारण)+णिच्+अच्] १. पाणिनि के अनुसार एक प्राचीन प्रदेश। २. उक्त प्रदेश का निवासी।
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कांड़ना  : स० [सं० कंडन (=रौंदकर अनाज की भूसी अलग करना)] १. पैरों से कुचलना। रौंदना। २. धान कूटकर उसमें का चावल और भूसी अलग करना। (धान) कूटना। ३. खूब पीटना या मारना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कांडर्षि  : पुं० [कांड-ऋषि, ष० त०] वेद के किसी कांड या विभाग (कर्म, ज्ञान और उपासना) का विवेचन करनेवाला ऋषि।
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कांडवान् (वत्)  : पुं० [सं० कांड+मतुप्] तीर चलाने या छोड़नेवाला योद्धा।
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कांडा  : पुं० [सं० कांड] [स्त्री० अल्पा० काँड़ी] १. लकडी का लंबा लट्ठा। २. छोटा सूखा डंठल। पुं० [सं० कर्णक] १. लकड़ियों, वनस्पतियों आदि में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा। २. दाँतों में लगनेवाला कीड़ा। वि०=काना।
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कांडिका  : स्त्री० [सं० कांड+ठन्-इक, टाप्] १. पुस्तक का कोई खंड या विभाग। २. एक प्रकार का अन्न। ३. एक तरह का कुम्हड़ा।
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काँड़ी  : स्त्री० [सं० कांड] १. कुछ विशिष्ठ प्रकार के वृक्षों का वह लंबा पतला तना जो बाँस या हल्के शहतीर की तरह छाजन आदि के काम में आता है। पद—काँड़ी कफन=शव की अर्थी बनाने की सामग्री। २. जहाजों, नावों, आदि के लंगर में का लोहे का लंबा डंडा। ३. मछलियों का झुंड या झोल। छाँवर। ४. किसी चीज का कोई छोटा लंबा टुकड़ा। डंडी। डाँड़ी। उदाहरण—औ सोनहा सोने की डाँड़ी। सारदूर रूपे की काँड़ी।—जायसी। स्त्री० [पं०कंडन] भूमि में बनाया हुआ वह गड्ढा जिसमें रखकर धान कूटा जाता है।
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