शब्द का अर्थ
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कांत :
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वि० [सं०√कन् (दीप्ति) वा कम (इच्छा)+क्त] १. कोमल और मनोहर। २. प्रिय और रुचिकर। ३. सुन्दर। पुं० १. वह जो किसी से अनुराग रखता या प्रेम करता हो। प्रेमी। २. पति। स्वामी। जैसे—लक्ष्मीकांत। ३. विष्णु। ४. शिव। ५. कार्तिकेय। ६. चंद्रमा। ७. वसन्त ऋतु। ८. कुंकुम। ९. हिंजल का पेड़। १॰०कांतिसार लोहा। |
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कांत-पक्षी :
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(क्षिन्) |
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कांत-पाषाण :
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पुं० [कर्म० स०] चुंबक पत्थर। |
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कांत-लौह :
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पुं० [कर्म० स] कातिसार लोहा। |
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कांता :
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स्त्री० [सं० कांत+टाप्] १. प्रिय या सुन्दरी स्त्री। २. प्रेमिका। ३. पत्नी। भार्या। |
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कांतार :
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पुं० [सं० कांत√ऋ (गति)+अण्] १. बहुत घना और भीषण जंगल या वन। २. बहुत ही उजाड़ और भयावना स्थान। ३. दुरूह या विकट मार्ग। ४. केतारा। ऊख। ६. बाँस। ६. छिद्र। छेद। ७. दरार। संधि। |
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कांतारक :
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पुं० [सं० कांतार+कन्] केतारा। (ईख)। |
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कांतासक्ति :
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स्त्री० [कांत-आसक्ति, स० त०] अपने को पत्नी या प्रेयसी तथा परमात्मा को पति या प्रेमी मानकर की जानेवाली भक्ति। |
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कांति :
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स्त्री० [सं०√कम् (चमकना)+क्तिन्] १. मनुष्य (विशेषतः स्त्री) के स्वरूप की छवि, शोभा या सौंदर्य। दैहिक या वैयक्तिक श्रृंगार या सजावट और उसके कारण बननेवाला मोहक रूप। २. प्रेम से युक्त तथा वर्णित शारीरिक सौंदर्य। ३. आभा। प्रकाश। ४. शोभा। सौंदर्य। ५. चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक जो उसकी पत्नी भी मानी गई है। ६. आर्या चंद का एक भेद जिसमें १६ लघु और २५ गुरु मात्राएँ होती हैं। |
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कांतिकर :
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वि० [सं० कांति√कृ (करना)+ट] कांति (शोभा या सौंदर्य) बढ़ानेवाला। सुशोभित करनेवाला। |
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कांतिभृत् :
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पुं० [सं० कांति√भृ (धारण करना)+क्विप्] चन्द्रमा। |
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कांतिमान् (मत्) :
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वि० [सं० कांति+मतुप्] १. कांति से युक्त। २. चमकीला। |
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कांतिसुर :
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पुं० [सं० सुरकांति] सोना। स्वर्ण। |
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काँती :
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स्त्री० [सं० कर्त्तरी] १. कैंची। २. छुरी। ३. बिच्छू का डंक। स्त्री०=कांति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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