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छंद  : पुं० [सं०√छंद् (प्रसन्न करना)+घञ्] १. अभिलाषा। इच्छा। २. अभिप्राय। मतलब। ३. उपाय। तरकीब। युक्ति। ४. तरह-तरह के रूप धारण करने की क्रिया या भाव। ५. कपट। छल। ६. संघात। समूह। ७. गाँठ। बंधन। पुं० [सं० छंदस्(√छंद+असुन्)] १. मात्राओं या वर्णों का कोई निश्चित मान जिसके अनुसार किसी पद्य के चरण लिखे जाते हैं। आकार, विस्तार आदि के विचार से वे रूप या साँचे जिनमें पद्यात्मक रचना बनती है। (मीटर) विशेष–हमारे यहाँ छन्द दो प्रकार के होते हैं–मात्रिक और वर्णिक। मात्रिक छंद को मात्रा-वृत्त और जाति छंद तथा वर्णिक को वर्ण-वृत्त भी कहते हैं। २. वह साहित्यिक पद्यात्मक रचना जो किसी छंद के नियमों के अनुसार लिखी गई हो। ३. विवाह के समय वर द्वारा कन्या पक्षवालों को सुनाई जानेवाली एक प्रकार की छोटी कविता। ४. वेद। ५. मनमाना आचरण। स्वेच्छाचार। पुं० [सं० छंदक] कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। छंदक
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
छंदः शास्त्र  : पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें विभिन्न छंदों के रूप और लक्षण बतलाये जाते हैं।
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छंदना  : अ० [हिं० छंद] १. छंद बनाना। २. किसी छंद में कविता करना। ३. कविता करना। उदाहरण–दुःख प्रद उभय बीच कुछ छंदूँ।–निराला। अ० [हिं० छाँदना का अ० रूप] छाँदा अर्थात् बाँधा जाना। जैसे–गधे या घोड़े का पैर छंदना।
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छँदरना  : स० [सं० छंद] धोखा देना। छलना।
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छंदवासी(सिन्)  : वि० [सं० छंद√वस् (रहना)+णिनि] [स्त्री० छंदवासिनी] उच्छृंखलतापूर्ण और मनमाना आचरण करने वाला।
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छंदा  : वि० [हिं० छानना] [स्त्री० छँदी] चरने के लिए छोड़ा हुआ (पशु) जिसके दोनों पैर बँधे हुए हों।
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छंदानुवृत्ति  : स्त्री० [छंद-अनुवृत्ति, तृ० त०] किसी को किसी छल या बहाने से प्रसन्न करने की क्रिया या भाव।
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छंदित  : भू० कृ० [सं०√ छंद+क्त] प्रसन्न किया हुआ।
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छंदोगति  : स्त्री० [सं० छंदस्-गति, ष० त०] किसी छंद में शब्दों आदि की वह योजना जिसके द्वारा उसके पढ़ने में एक विशेष प्रकार की गति या लय का अनुभव हो।
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छंदोदोष  : पुं० [सं० छंदस्+दोष, ष० त०] छंद में निश्चित मात्राओं या वर्णों से अधिक या कम मात्राएँ या वर्ण होने का दोष। (छंदशास्त्र)।
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छंदोबद्ध  : वि० [सं० छदस्-बद्ध स० त०] (साहित्यिक रचना) जो किसी छंद या पद्य के रूप में हो। छंद या पद्य में बँधा हुआ रचा हुआ। (कथन या लेख)। (मीट्रिकल)
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छंदोभंग  : पुं० [सं० छंदस्-भंग, ष० त०] छंद रचना में छंद-शास्त्र के नियमों के पालन की वह त्रुटि जिससे उसमें ठीक गति या लय का अभाव होता है अथवा ठीक स्थान पर यति या विराम नहीं होता।
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