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पट  : पुं० [सं० पट्(लपेटना)+क] १. पहनने के कपड़े। पोशाक। २. कपड़ा। वस्त्र। ३. आवरण। परदा। जैसे—चित्र-पट। ४. उक्त के आधार पर दरवाजा। द्वार। जैसे—पालकी का पट,दरवाजे का पट। मुहा०—(मंदिर का) पट उखड़ना या खुलना=नियत समय पर मंदिर का दरवाजा इसलिए खुलना (या उसके आगे पड़ा हुआ परदा इसलिए हटना) कि दर्शनार्थी लोग देव-मूर्ति के दर्शन कर सकें। ५. कोई ऐसी चीज जो खूब,अच्छी तरह और सुन्दर बनी हो। पुं० [सं० परम] फूस,सरकंडे आदि से छाया हुआ छप्पर। छानी। जैसे—नाव या बैलगाड़ी के ऊपर का पट। पुं० [सं० चित्र-पट में का पट] १.कपड़े,कागज,धातु आदि का वह टुकड़ा जिस पर हाथ से कोई चित्र अंकित किया हुआ हो। चित्र-पट। २. जगन्नाथपुरी,बदरिकाश्रम आदि तीर्थों में दर्शनार्थियों को प्रसाद के रूप में मिलनेवाला उक्त देवताओं का चित्रपट। वि० [सं० चित्र-पट में का पट अर्थात् नीचे वाला भाग] १. जिसका मुँह नीचे की ओर तथा पीठ ऊपर की ओर हो। उलटा पड़ा हुआ। औंधा। ‘चित’ का विपर्याय। जैसे—(क) कुश्ती में, पट पड़े हुए पहलवान को चित करने से ही जीत होती है। (ख) तलवार उस पर खड़ी थी,इसिलए उसे अधिक चोट नहीं आई। विशेष—प्राचीन काल में कपड़े पर अंकित किये जानेवाले चित्र को चित्रपट कहते थे उसका चित्रवाला ऊपरी भाग तो चित्र होता ही था,जिससे हिन्दी का ‘चित’ विशेषण बना है; नीचेवाला कपड़ा पट होता था, जिससे हिन्दी का उक्त अर्थवाला ‘पट’ विशेषण बना है। यहाँ इसके (विशेषण रूप में) जो और अर्थ दिये जाते हैं, वे सब उक्त पहले अर्थ के विकसित रूप हैं। २. बिलकुल खाली पड़ा हुआ। जिसमें या जिसपर कुछ भी न हो। जैसे—खेत (या रास्ता) बिलकुल पट पड़ा हुआ था। ३. धीमा या मन्द। मद्धिम या सुस्त। जैसे—आज-कल कपड़े का बाजार बिलकुल पट है। ४. चौपट। बरबाद। जैसे—तुमने तो सारा काम ही पट कर दिया। पद—चौपट (देखें) पुं० १. किसी वस्तु का चिपटा और चौरस तल। २. चौरस जमीन। पुं० [?] चिरौंजी का पेड़। पयाल। २. कपास। ३. गंध-तृण। ४. टाँग। पैर। ५. कुश्ती का एक पेंच। पुं० [सं० पट्ट] राज-सिंहासन। पद—पट-रानी (देखें) पुं० [अनु०] छोटी चीज के धीरे से गिरने पर होनेवाला ‘पट’ शब्द। अव्य० [हिं० चट का अनु०] तत्काल। तुरंत। जैसे—चटपट या काम खत्म करो।
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पट-कुटी  : स्त्री० [मध्य० स०] रावटी। खेमा। (डिं०)
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पट-कूल  : पुं० [सं०] कपड़ा। वस्त्र।
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पट-चित्र  : पुं० [सप्त० त०] १. कपड़े पर बना हुआ वह चित्र, जो लपेटकर रखा जा सके। २. दे० ‘चित्र-पट’।
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पट-दीप  : पुं० [सं०] एक प्रकार का राग।
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पट-पट  : स्त्री० [अनु०] प्रायः हलकी वस्तुओं के गिरने से उत्पन्न होनेवाला ‘पट’ शब्द। पद—पट-पट की नाव=बैलगाड़ी। क्रि० वि० पट-पट शब्द करते हुए।
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पट-परिवर्तन  : पुं० [सं० ष० त०] १. रंग-मंच का परदा बदलना। २. एक दृश्य या स्थिति के स्थान पर दूसरा दृश्य या स्थिति उत्पन्न होना।
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पट-बंधक  : पुं० [हिं० पटना+सं० बंधक] कोई संपत्ति बंधक या रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें संपत्ति की सारी आय महाजन ले लेता है; और उस समय में से सूद निकाल लेने के बाद जो धन बच रहता है; वह मूल ऋण में जमा करता चलता है। सारा ऋण पट जाने पर संपत्ति महाजन के हाथ से निकलकर उसके वास्तविक स्वामी के हाथ में चली जाती है। वि० (मकान या स्थान) जो उक्त प्रकार से रेहन रखा गया हो।
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पट-बीजना  : पुं० [सं० पट=बराबर+विज्जु=बिजली ?] जुगनूँ। खद्योत।
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पट-भाक्ष  : पुं० [सं० पट√भा (दीप्ति)+क,पटभ√अक्ष् (व्याप्ति)+अच्] प्राचीन काल का एक यंत्र जिससे आँख को देखने में सहायता मिलती थी। एक तरह का प्रकाश-यंत्र।
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पट-मंजरी  : पुं० [सं०] संगीत में,संपूर्ण जाति की एक प्रकार की रागिनी जो हिडोल राग की भार्या कही गई है और जो वसंत ऋतु में आधी रात के समय गाई जाती है।
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पट-मंडप  : पुं० [मध्य० स०] कपड़े का मंडप अर्थात् तंबू।
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पट-रानी  : स्त्री० [सं० पट्ट+रानी] वह स्त्री जिसके साथ किसी राजा का पहला विवाह होता था। विशेष—पट-रानी को ही राजा के साथ सिंहासन पर बैठने का अधिकार होता था,शेष रानियों को नहीं।
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पट-वाप  : पुं० [ब० स०] खेमा। तंबू।
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पट-वास  : पुं० [मध्य० स०] १. कपड़े का बना हुआ घर अर्थात् खेमा या तंबू। २. छावनी। शिविर। ३. लहँगा। पुं० [सं० पट√वास् (सुगंधित करना)+णिच्+अण्] वह सुगंधित वस्तु जिससे कपड़े बसाये या सुगंधित किये जाते हों।
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पट-विहाग  : पुं० [सं० पट+बिहाग ] संगीत में, बिलावल ठाठ का एक संकर राग।
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पट-वेश्म (न्)  : पुं० [मध्य० स०] तंबू। खेमा।
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पटइन  : स्त्री० [हिं० पटना] पटवा जाति की स्त्री जो गहने गूँथने का काम करती है।
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पटई  : स्त्री० दे० ‘बहँगी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटक  : पुं० [सं० पट+कन्] १.सूती कपड़ा। २. [पट√कै+क] खेमा। तंबू। स्त्री० [हिं० पटकना] पटकने की क्रिया या भाव। पटकान। जैसे—दोनों में उठा-पटक होने लगी।
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पटकन  : स्त्री०=पटकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटकना  : स० [सं० पतन+करण] १. किसी को या कोई चीज उठाकर या हाथ में लेकर जोर से जमीन पर डालना या गिराना। जोर के साथ ऊँचाई से भूमि की ओर फेंकना। जैसे—(क) किसी लड़के को जमीन पर पटकना। (ख) गिलास या थाली पटकना। संयो० क्रि०—देना। मुहा०—(कोई काम) किसी के सिर पटकना=किंचित उग्र से या जबरदस्ती किसी के जिम्मे लगाना। मढ़ना। जैसे—तुम तो सब काम यों ही मेरे सिर पटक देते हो। २. अपना कोई अंग जोर से किसी तल पर गिराना या रखना। जैसे—जमीन पर सिर या हाथ पटकना। ३. किसी खड़े या बैठे हुए व्यक्ति को उठाकर जोर से नीचे गिराना। दे मारना। ४. कुश्ती में प्रतिद्वन्द्वी को जमीन पर गिराना या पछाड़ना। अ० १. ऊपरी तल का दबकर कुछ नीचे हो जाना। पचकना। २. (अनाज आदि का) सूखकर सिकुड़ना। ३. (सूजन आदि का) दबकर कम होना। ४. ‘पट’ शब्द करते हुए किसी चीज का चटक,टूट या फूट जाना। जैसे—मि्टटी का बरतन पटकना।
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पटकनिया  : स्त्री० [हिं० पटकना] १. पटकने की ढंग भाव अथवा युक्ति। २. दे० ‘पछाड़’।
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पटकनी  : स्त्री० [हिं० पटकना] १. पटकने की क्रिया या भाव। पटकान। क्रि० प्र०-देना। २. पटके जाने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—खाना। ३. पछाड़ खाकर जमीन पर गिरने और लोटने की क्रिया या भाव।
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पटकरी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का बेल।
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पटकर्म (मन्)  : पुं० [ष० त०] कपड़े बुनने का काम धंधा या पेशा। वयन।
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पटका  : पुं० [सं० पट्टक] १. कमर में बाँधने का दुपट्टा या बड़ा रूमाल। कमरबन्द। मुहा०—(किसी का) पटका पकड़ना=(क) किसी काम या बात के लिए किसी को उत्तरदायी ठहराना। (ख) किसी से कुछ पाने या लेने के लिए आग्रह करना। (किसी काम के लिए) पटका बाँधना=किसी काम के लिए तैयार होना। कमर कसना। २. गले में डालने का दुपट्टा। ३. एक प्रकार का चारखाना या धारीदार कपड़ा। ४. दीवार के ऊपर की वह पट्टी जो शोभा के लिए कमरे में अन्दर की ओर बनाई जाती है। कँगनी। कारनिस।
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पटकान  : स्त्री० [हिं० पटकना] १. पटकने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—देना। २. झटके या झोंके से किसी के द्वारा नीचे गिराये जाने का भाव। क्रि० प्र०—खाना। ३. पटके जाने के कारण होनेवाली पीड़ा। ४. छड़ी। डंडा।
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पटकार  : पुं० [सं० पट√कृ (करना)+अण्] १. कपड़ा बुननेवाला। जुलाहा। २. चित्रपट बनानेवाला। चित्रकार। स्त्री० [हिं० पटकना] १. वह लंबी रस्सी, जिसे जमीन पर पटककर किसान लोग खेत की चिड़ियाँ उड़ाते हैं। २. उक्त रस्सी के पटके जाने पर होने वाला शब्द।
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पटकी  : स्त्री०=पटकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटच्चर  : पुं० [सं० पटत्√पट्+अति,पटच्चर पटत्√चर् (गति)+अच्] १. फटा-पुराना कपड़ा। चीथड़ा। २. चोर। ३. महाभारत के अनुसार एक प्राचीन देश।
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पटझोल  : पुं० [सं० पट=कपड़ा+झोल ] १. पहने हुए कपड़े में पड़नेवाला झोल। २. आँचल। पल्ला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पटड़ा  : पुं० [स्त्री० पटड़ी]=पटरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटण  : पुं०=पत्तन (नगर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पटंतर  : पुं०=पटतर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटतर  : पुं० [सं० पट्ट-तल] १. तुल्यता। बराबरी। समानता। २. उपमा जो तुल्यता या सादृश्य के आधार पर दी जाती है। ३. तुलना। उदा०—सुरपति सदन न पटतर पावा।—तुलसी। क्रि० प्र०—देना।—लहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० चौसर। समतल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० वि० तुल्य। बराबर। समान। उदा०—राम नाम पटतरै देबै को कछु नाहिं।—कबीर।
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पटतरना  : स० [हिं० पटतर ] १. किसी को किसी दूसरे के तुल्य या बराबर ठहराना। २. किसी के साथ उपमा देना। ३. तुलना करना। ४. (जमीन आदि को) पटतर या समतल बनाना। अ० १. तुल्य या बराबर ठहराया जाना। २. उपमित किया जाना। ३. तुलना किया जाना। ४. पटतर या समतल बनाया जाना।
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पटतारना  : स० [हिं० पटा+तारना=अंदाजना] खड्ग भाला आदि इस रूप में पकड़ना कि उससे वार किया जा सके। स० [हिं० पटतर] ऊंची-नीची भूमि चौरस या बराबर करना।
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पटताल  : पुं० [सं० पट्ट-ताल] मृदंग का एक ताल जो एक दीर्घ या दो ह्रस्व मात्राओं का होता है।
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पटद  : पुं० [सं० पट√दा (देना)+क] कपास जिससे पट या कपड़ा बनता या मिलता है।
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पटधारी (रिन्)  : वि० [सं० पट√धृ (धारण करना)+णिनि] जो कपड़ा पहने हो। पुं० राजाओं के तोशाखाने का प्रधान अधिकारी।
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पटन  : पुं० दे० ‘पट्टन’।
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पटना  : अ० [हिं० पाटना का अनु०] १. पाटा जाना। २. गड्ढे आदि का भरे जाने के कारण आस-पास के तल के बराबर होना। ३. किसी स्थान का किसी चीज से बहुत अधिक भर जाना। जैसे—आजकल बाजार आम (या खरबूजों) से पट गया है। ४. दीवारों के ऊपर इस प्रकार छत या छाजन बनना कि उनके बीच की भूमि पर छाया हो जाय। पाटन पड़ना या बनना। ५. खेतों आदि का पानी से सींचा जाना। ६. रुचि,विचार,स्वभाव आदि में समानता होने के कारण आपस में एक-रसता,निर्वाह या सौजन्यपूर्ण संबंध होना। जैसे—दोनों भाइयों में अब फिर पटने लगी है। ७. उक्त प्रकार की अवस्था में किसी पर विश्वास होना। उदा०—मीराँ कहै प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै रे।—मीराँ। ८.लेन-देन,व्यवहार आदि में दोनों पक्षों में ब्योरे की बातों में सहमति होना। खरीद-बिक्री आदि के संबंध की सब बातें तय या निश्चित होना। जैसे—सौदा पटना। ९. ऋण,देन आदि का चुकता हो जाना। जैसे—अब उनका सारा ऋण पट गया। पुं० [सं० पट्टन ] भारत की प्राचीन प्रसिद्ध नगरी पाटलिपुत्र का आधुनिक नाम जो आधुनिक बिहार राज की राजधानी है।
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पटनिया  : वि० [हिं० पटना+इया (प्रत्य०)] पटना नगर का। पटना नगर से संबंध रखनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटनिहा  : वि०=पटनिया।
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पटनी  : स्त्री० [हिं० पटना=तै होना] १. पटने की अवस्था या भाव। २. पाटने की क्रिया या भाव। ३. छत। ४. वह कमरा जिसके ऊपर कोई और कमरा भी हो। ५. चीजें आदि रखने के लिए दीवार में लगा हुआ तख्ता या पटरी। ६. जमीन या जमींदारी का वह अंश जो किसी को निश्चित लगान पर सदा के लिए दे दिया गया हो। ७. मध्ययुग की वह पद्धति, जिसके अनुसार जमीनों का बंदोबस्त उपर्युक्त रूप से सदा के लिए कर दिया जाता था।
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पटपटाना  : अ० [हिं० पटकना] १. किसी चीज से पट-पट शब्द होना। २. भूख,प्यास,सरदी-गरमी आदि के कारण बहुत कष्ट पाना। ३. दुःख या शोक करना। स० १. पट-पट शब्द उत्पन्न करना। २. ऐसा काम करना, जिससे कोई भूख-प्यास, सरदी-गरमी, आदि के कारण बहुत कष्ट पावे और तड़पे।
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पटपर  : वि० [हिं० पट+अनु० पर] १. चौरस। सम-तल। २. पूरी तरह से नष्ट या बरबाद। जिसमें कहीं कुछ भी न हो। बिलकुल खाली। जैसे—सारा घर पटपर पड़ा है। पुं० १. बिलकुल उजाड़ और सुनसान जगह। २. नदी के किनारे की वह भूमि जो वर्षा ऋतु में प्रायः डूबी रहती है। ऐसी जमीन में केवल रबी की फसल होती है।
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पटंबर  : पुं० [सं० पट-अंबर] रेशमी कपड़ा। कौषेय।
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पटम  : वि० [हिं० पटपटाना] १. जिसकी आँखें भूख से पटपटा या बैठ गई हों। जो भूख के मारे अंधा हो गया हो। २. (आँख) जिससे दिखाई न दे।
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पटमय  : वि० [सं० पट+मयट्] कपड़े का बना हुआ। पुं० खेमा। तंबू।
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पटरक  : पुं० [सं०√पट्+अरन्+कन्] पटेर। गोंद पटेर।
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पटरा  : पुं० [सं० पट्ट+हिं० रा (प्रत्य०) अथवा सं० पटल] [स्त्री० अल्पा० पटरी] १. काठ का लम्बा, चौकोर और चौरस चीरा हुआ टुकड़ा। तख्ता। पल्ला। मुहा०—(कोई चीज) पटरा कर देना=(क) कोई चीज काटकर इस प्रकार गिरा देना कि वह जमीन पर पड़े हुए पटरे के समान हो जाय। (ख) बिलकुल नष्ट या बरबाद कर देना। (किसी व्यक्ति को) पटरा कर देना=मार डालकर या अध-मरा करके जमीन पर गिरा देना। २. धोबी का पाट। ३. बैठने के लिए बना हुआ काठ की पीढ़ा। पाटा। ४. खेत की मि्टटी बराबर करने का पाटा। हैंगा। मुहा०—(किसी चीज पर) पटरा फेरना=पूरी तरह से नष्ट या बरबाद कर देना।
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पटरी  : स्त्री० [हिं० पटरा का स्त्री० अल्पा०] १. काठ का छोटा पतला और लंबोतरा टुकड़ा। छोटा पटरा। २.वह तख्ती या पट्टी जिस पर बच्चे लिखने का अभ्यास करते हैं। ३. वह चौड़ा खपड़ा जिसकी संधियों पर नरिया औंधी करके रखी जाती है। थपुआ। ४. सड़क के दोनों किनारों का वह कुछ ऊँचा और कम चौड़ा पथ जो पैदल चलनेवालों के लिए सुरक्षित रहता है। ५. उक्त प्रकार के वे दोनों छोटे रास्ते जो नहरों आदि के दोनों किनारों पर बने रहते हैं। ६. उक्त के आधार पर लोहे के वे छड़ या टुकड़े जो समानान्तर लगे रहते हैं और जिनके ऊपर से रेल-गाड़ी चलती है। जैसे—रेलगाड़ी के दो डब्बे पटरी से उतर गये। ७. बगीचे में क्यारियों के इधर-उधर के पतले रास्ते जिनके दोनों ओर सुन्दरता के लिए घास लगा दी जाती है और जिन पर से होकर लोग आते-जाते हैं। ८. हाथ में पहनने की एक तरह की नक्काशीदार चौड़ी चूड़ी। ९. गले में पहनने की चौकी,जंतर या ताबीज। १॰. लाक्षणिक रूप में,पारस्परिक व्यवहार में वह स्थिति जिसमें परस्पर सौहार्दपूर्वक निर्वाह होता है। मुहा०—(किसी से) पटरी बैठाना=प्रकृति,रुचि आदि की समानता होने के कारण सहज में और सुगमतापूर्वक निर्वाह होना। जैसे—दोनों बहुत दुष्ट हैं; इसी लिए उनमें खूब पटरी बैठती है। ११. घोड़े की सवारी में वह स्थिति जिसमें सवार की दोनों जाँघें पीठ या जीन पर ठीक तरह से और उपयुक्त स्थान पर बैठती या रहती हैं। मुहा०—पटरी जमाना या बैठाना=घुड़सवारी में सवार का अपनी रानों को इस प्रकार जीन पर चिपकाना कि घोड़े के बहुत तेज चलने या शरारत करने पर भी उसका आसन स्थिर रहे।
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पटल  : पुं० [सं०√पट्+कलच् ] १. छप्पर। २. छत। ३. आड़ करने का आवरण। परदा। ४. तह। परत। ५. पक्ष। पहल। पार्श्व। ६. आँख का मोतियाबिन्द नामक रोग। ७. लकड़ी का तख्ता या पटरा। ८. पुस्तक का विशिष्ट खंड या भाग। परिच्छेद। ९. टीका। तिलक। १॰. ढेर। राशि। ११. बड़े आदमियों के साथ रहनेवाले बहुत से लोग। परिच्छद। लवाजमा।
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पटल-प्रांत  : पुं० [ष० त०] छप्पर का सिरा या किनारा।
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पटलक  : पुं० [सं० पटल+कन्] १. आवरण। परदा। २. वह कपड़ा जिसपर इत्र या सुगंधित द्रव्य लगा हो। ३. झाबा। डलिया। ४. पिटारी या सन्दूक। ५. ढेर। राशि।
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पटलता  : स्त्री० [सं० पटल+तल्—टाप्] अधिकता।
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पटली  : स्त्री० [सं० पटल+ङीप्] १. छप्पर। २. छत। स्त्री०=पटरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटवा  : पुं० [हिं० पाट+वाह (प्रत्य०)] [स्त्री० पटइन] वह जो दानों,मनकों आदि को सूत या रेशम की डोरी में गूँथने या पिरोने का काम करता हो। पटहार। पुं० [?] १. पीले रंग का एक प्रकार का बैल जो खेती के लिए अच्छा समझा जाता है। २. पटसन। पाट।
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पटवाद्य  : पुं० [सं० तृ० त०] झाँझ के आकार का एक प्राचीन बाजा जिससे ताल दिया जाता था।
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पटवाना  : स० [हिं० पाटना का प्रे०] पाटने का काम दूसरे से कराना। किसी को कुछ पाटने में प्रवृत्त करना। जैसे—खेत, गड्ढा या छत पटवाना; करज या देन पटवाना। स० [हिं० ‘पटाना’ का प्रे०] किसी को पटाने (कम होने,दबने,बैठने आदि) में प्रवृत्त करना। जैसे—दरद या सूजन पटवाना। वि० दे० ‘पटाना’।
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पटवारगिरी  : स्त्री० [हिं० पटवारी+फा० गरी] पटवारी का काम,पद या भाव।
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पटवारी  : पुं०[सं० पट्ट+हिं० वारी (प्रत्य०)] खेती-बारी की जमीनों तथा उसकी उपज मालगुजारी आदि का लेखा रखनेवाला एक सरकारी कर्मचारी। लेख-पाल। स्त्री० [सं० पट=कपड़ा+हिं० वारी (प्रत्य०)] मध्ययुग में, वह दासी जो रानियों अथवा अन्य बड़े घरों की स्त्रियों को कपड़े,गहने आदि पहनाती थी।
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पटवासक  : पुं० [सं० पटवास+कन्] सुगंधित वस्तुओं का वह चूर्ण जिससे वस्त्र आदि बसाये या सुगंधित किये जाते थे।
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पटसन  : पुं० [सं० पाट+हिं० सन] १. सन का सनई नामक प्रसिद्ध पौधा जिसके डंठलों के रेशों को बट या बुनकर रस्सियाँ बोरे आदि बनाये जाते हैं। २. उक्त रेशे। जूट। पटुआ। पाट।
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पटसार  : स्त्री० [सं० पटशाला] खेमा। तंबू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटसाली  : पुं० [सं० पट्टशाली] वस्त्र बुननेवालों की एक जाति (मध्यप्रदेश)।
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पटह  : पुं० [सं० पट√हन् (चोट करना)+ड] १. डुगडुगी। २. ढोल। ३. नगाड़ा। ४. क्षति या हानि पहुँचाना। ५. हिंसा। ६. किसी काम में हाथ डालना या लगाना।
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पटह-घोषक  : पुं० [ष० त०] डुगडुगी,ढोल या नगाड़ा बजानेवाला व्यक्ति।
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पटह-भ्रमण  : पुं० [ब० स०] १. लोगों को इकट्ठा करने के लिए घूम-घूमकर ढिंढोरा या ढोल पीटनेवाला व्यक्ति। २. [तृ० त०] डुगडुगी, ढोल आदि बजाते हुए चलना।
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पटहंसिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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पटहार (ा)  : पुं० [सं० पाट+हिं० हारा (प्रत्य०)] [स्त्री० पटहारिन,पटहारी] सूत,रेशम आदि के तागों में गहनों के दाने,मनके आदि गूँथनेवाला व्यक्ति। पटवा।
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पटा  : पुं० [सं० पट] १. प्रायः दो हाथ लोहे की वह पट्टी जिससे तलवार से वार करने और दूसरों के वार रोकने की कला का अभ्यास किया जाता है। विशेष—इसका अभ्यास प्रायः बनेठी के साथ होता है, और प्रायः लोग अपना कौशल दिखलाने के लिए खेल के रूप में इसका प्रदर्शन भी करते हैं। २. लंबी धारी या लकीर। ३. लगाम की मोहरी। ४. चटाई। पुं० [सं० पट्ट] १. पीढ़ा। पटरा। पद—पटा-फेर=विवाह की वह रसम जिसमें कन्यादान हो चुकने पर वर और वधू के आसन परस्पर बदल दिये जाते हैं। विशेष—जब कन्या दान नहीं होता, तब तक वधू को वर की दाहिनी ओर बैठना पड़ता है। कन्यदान हो चुकने पर वधू को वर के बाएँ बैठाते हैं। उस समय परस्पर आसन का जो परिवर्तन होता है, वही पटाफेर कहलाता है। मुहा०—(राजा का किसी रानी को) पटा बाँधना=पट-रानी या प्रधान महिषी बनाना। उदा०—चौदह सहस तिया मैं तो कौं पटा बँधाऊँ आज।—सूर। २. अधिकार-पत्र। सनद। पट्टा (देखें) पुं० [सं० पट] १. कपड़ा। वस्त्र। २. दुपट्टा। ३. पगड़ी। पुं० [सं० पटना=तै करना] क्रय-विक्रय, विनिमय आदि के रूप में होनेवाला पारस्परिक लेन-देन या व्यवहार। सौदा। वि० [हिं० पट=औंधा] १. औंधाया हुआ। २. मारकर गिराया हुआ। उदा०—कीजै कहा विधि की बिधि कौ दियो दारून लोट पटा करिबे कौ।—पद्माकर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पटाई  : स्त्री० [हिं० पाटना] १. पाटने की क्रिया या भाव। २. पाटने का पारिश्रमिक या मजदूरी। स्त्री० [हिं० पाटना] १. ऋण,देन आदि पटाने या चुकता करने की क्रिया या भाव। २. क्रय-विक्रय, लेन-देन अथवा समझौता आदि के लिए किसी को राजी करने की क्रिया या भाव। ३. सौदा आदि पटाने पर मिलनेवाला पुरस्कार।
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पटाक  : स्त्री० [अनु०] किसी भारी चीज के गिरने,अथवा किसी चीज पर कठोर आघात लगने या लगाने से होनेवाला शब्द। जैसे—किसी के मुँह पर जोर से चपत लगाने से होनेवाला शब्द। पद—पटाक-पटाक=निंरतर पटाक शब्द करते हुए।
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पटाका  : पुं० [हिं० पटाक ] १. पट या पटाक से होनेवाला जोर का शब्द। २. तमाचा। थप्पड़। क्रि० प्र०—जड़ना।—देना।—लगाना। ३. आतिशाबाजी की एक प्रकार की गोली जिसे जमीन पर पटकने से जोर का शब्द होता है। क्रि० प्र०—छूटना।—छोड़ना। ४. किसी प्रकार की आतिशबाजी में होनेवाला उक्त प्रकार का शब्द। ५. युवा तथा सुन्दर स्त्री० (बाजारू)। स्त्री० [सं०√पट् (गति)+आक,नि० टाप्] झंडा। ध्वजा। पताका।
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पटाक्षेप  : पुं० [सं० पटा-आक्षेप,ष० त०] १. परदा गिरना या गिराना। २. रंगमंच पर अभिनय के समय नाटक का एक अंग पूरा हो जाने पर कुछ समय के लिए परदा गिरना, जो थोड़ी देर के अवकाश का सूचक होता है। ३. लाक्षणिक अर्थ में, किसी घटना या बात की होनेवाली समाप्ति। जैसे—चार वर्ष बाद युद्ध का पटाक्षेप हुआ।
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पटाखा  : पुं०=पटाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटान  : स्त्री० [हिं० पाटना] १. पाटने की क्रिया या भाव। २.=पाटन। स्त्री० [हिं० पटाना] (ऋण,देन आदि) पटाने अर्थात् चुकता करने की क्रिया या भाव। पटाई।
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पटाना  : स० [हिं० पाटने का प्रे०] [भाव० पटाई] १. गड्ढा आदि पाटने में किसी को प्रवृत्त करना। २. किसी से छाजन आदि डलवाना। अ० १. पाटा जाना। पटना। २. कम होना। घटना। जैसे—रोग या सूजन पटाना। ३.शांत और स्थिर होना। (पूरब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० [हिं० पटना का स०] १. ऐसा काम करना जिससे कोई क्रिया संपन्न होती हो अथवा कोई बात तय या हल होती हो। जैसे—(क) ऋण पटाना। (ख) सौदा पटाना। २. बात-चीत के द्वारा किसी को अपने अनुकूल करके क्रय-विक्रय, लेन-देन समझौता आदि करने के लिए राजी करना। जैसे—ग्राहक या यजमान पटाना।
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पटापट  : अव्य० [अनु० पट] १.लगातार पट-पट शब्द करते हुए। जैसे—पटपट थप्पड़ पड़ना। २. बहुत जल्दी जल्दी। चट-पट। तुरन्त। जैसे—पटापट दूकानें बन्द होने लगीं। स्त्री० निरंतर ‘पटपट’ होनेवाली शब्द या ध्वनि।
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पटापटी  : स्त्री० [अनु०] वह वस्तु जिस पर कई रंगों की आकृतियाँ, बेल-बूटे, फूल-पत्तियाँ आदि बनी हो। उदा०—बाँधी, बँदनवार विविध बहु पटापटी की।—रत्नाकर।
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पटार  : पुं० [सं० पिटक] १. पिटारा। मंजूषा। २. पिंजड़ा। पुं० [सं० पट] १. रेशम की डोरी या रस्सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=कनखजूरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटालुका  : स्त्री० [सं० पट√अल् (पर्याप्ति)+उक—टाप्] जोंक। जलोंका।
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पटाव  : पुं० [हिं० पाटना] १. पाटने की क्रिया,ढंग या भाव। २. वह कूड़ा-करकट, मिट्टी आदि जिससे गड्ढे आदि पाटे गये हों। पाट-कर बराबर किया हुआ स्थान। ३. पाटकर बनाई गई छत। पाटन। ४.दरवाजे में चौखट के ऊपर रखी जानेवाली वह लकड़ी जिस पर दीवार की चुनाई की जाती है। भरेठा।
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पटास  : स्त्री० [हिं० पाटना+आस (प्रत्य०)] पटाने या पाटने की क्रिया या भाव।
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पटासन  : पुं० [सं० पट-आसन,मध्य० स०] कपड़े आदि का बना हुआ आसन।
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पटि  : स्त्री० [सं०√पट्+कन्] १. रंगीन कपड़ा या वस्त्र। २. जलकुंभी। ३. रंगमंच का परदा। यवनिका। ४. कनात।
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पटि-क्षेप  : पुं०=पटाक्षेप।
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पटिआ  : स्त्री०=पटिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटिका  : स्त्री० [सं० पटि+कन्—टाप्] १. कपड़ा। वस्त्र। २. कपड़े का टुकड़ा। वस्त्र। खंड।
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पटिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० पटु+इमनिच्] १. पटुता। दक्षता। २. कर्कशता। ३. रूखापन। ४. तेजी। उग्रता। ५. अम्लता।
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पटिया  : स्त्री० [सं० पट्टिका ] १. पत्थर का आयताकार, चौरस या लंबा टुकड़ा जो साधारणतः डेढ़-दो इंच से मोटा नहीं होता। विशेष—यह फरश बनाने के लिए जमीन पर बिछाई जाती है और इससे छतें भी पाटी जाती हैं। २. लकड़ी का आयताकार चौरस छोटा टुकड़ा जिस पर बच्चे आदि लिखने का अभ्यास करते हैं। तख्ती। पाटी। ३. छोटा हेंगा। ४. लंबा किन्तु कम चौड़ा खेत का टुकडा। ५. सीधी लंबी रेखा या विभाग। उदा०—आठ हाथ की बनी चुनरिया पँच-रंग पटिया पारी।—कबीर। स्त्री० १. माँग या सीमन्त निकालकर झाड़े हुए बाल। पाटी। क्रि० प्र०—सँवरना। २. दे० ‘पाटी’।
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पटी  : स्त्री० [सं० पटि+ङीष्] १. कपड़े का पतला लंबा टुकड़ा। पट्टी। २. पगड़ी। साफा। ३. कमरबंद। पटका ४. आवरण। परदा। ५. नाटक या रंग-मंच का परदा।
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पटीमा  : पुं० [हिं० पट्टी] पटिया के आकार का अधिक लंबा और कम चौड़ा छीपियों का तख्ता जिस पर रखकर वे कपड़े आदि छापते हैं।
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पटीर  : पुं० [सं०√पट्+ईरन्] १. एक प्रकार का चन्दन। २. कत्था। खैर। ३. कत्थे या खैर का पेड़। खदिर वृक्ष। ४. मूली। ५. बड़ का पेड़। वटवृक्ष। ६. क्यारी। ७. उदर। पेट। ८. क्षेत्र। मैदान। ९. जुकाम या प्रतिश्याय नामक रोग। १॰. चलनी। छाननी। ११. बादल। मेघ।
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पटीलना  : स० [हिं० पटाना] १. किसी को फुसलाकर किसी काम के लिए राजी कर लेना। किसी को समजा-बुझाकर अपने अर्थ-साधन के अनुकूल करना। २. छलना। ठगना। ३. सफलतापूर्वक कोई काम पूरा उतारना। ४. परास्त करना। हराना। ५. पीटना। मारना। (बाजारू)।
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पटु  : वि० [सं०√पट्+उन्] [भाव० पटुता] १. किसी काम या बात में कुशल अथवा दक्ष। निपुण। प्रवीण। २. चतुर। चालाक। ३. धूर्त्त। मक्कार। ४. कठोर हृदयवाला। निष्ठुर। ५. नीरोग। स्वस्थ। ६. तीक्ष्ण। तेज। ७. उग्र। प्रचंड। ८. जो स्पष्ट रूप से सामने आया हुआ हो। प्रकाशित। व्यक्त। ९. मनोहर। सुन्दर। १॰. कर्कश (स्वर) ११. विकसित। पुं० १. नमक। २. पांशु लवण। पाँगा नमक। ३. चीनी कपूर। ४. नक-छिकनी। ५. परवल। (लता और फल) ६. करेला। ७. चिरमिटा नामक लता। ८. जीरा। ९. बच।
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पटु-तूलक  : पुं०=पटुतृणक।
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पटु-तृणक  : पुं० [सं० पटु-तृण,मध्य० स०,+कन्] लवणतृण (घास)।
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पटु-त्रय  : पुं० [सं० ष० त०] काला,बिड़ और सेंधा इन तीनों प्रकार के लवणों का समाहार।
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पटु-पत्रिका  : स्त्री० [सं० पटु-पत्र,ब० स०, कप्—टाप्,इत्व] चेंच नामक साग।
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पटु-पर्णिका  : स्त्री० [सं० पटु-पर्ण,ब० स०+कप्—टाप्,इत्व] मकोय।
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पटु-पर्णी  : स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] मकोय।
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पटु-रूप  : वि० [सं० पटु+रूपप्] जो किसी काम में बहुत अधिक पटु हो।
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पटुआ  : पुं० [सं० पाट] १. पाट या सन का पौधा। जूट। पटसन। २. करेमू। ३. वह डंडा जिसके सिरे पर गून या डोरी बँधी रहती है और जिसे पकड़कर मल्लाह लोग नाव खींचते हैं। पुं० [?] तोता। (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटुक  : पुं० [सं० पटु+कन्] परवल। पुं० [सं० पट] कपड़ा। वस्त्र।
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पटुका  : पुं०=पटका।
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पटुता  : स्त्री० [सं० पटु+तल्—टाप्] पटु होने की अवस्था या भाव। प्रवीणता। निपुणता। होशियारी।
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पटुत्व  : पुं० [सं० पटु+त्व] पटुता।
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पटुली  : स्त्री० [सं० पट्ट] १. काठ की वह पटरी जो झूले के रस्सों पर रक्खी जाती है। पाटा। २. चौकी। ३. छकड़े या बैल-गाड़ी के बगल में जड़ी हुई लंबी पटरी।
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पटुवा  : पुं० १.=पटुआ। २.=पटवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटूका  : पुं०=पटका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटे  : वि० [हिं० पटना] (ऋण,देन आदि) जो पट या पटाया जा चुका हो। पद—बर पटे=पूरी तरह से या बिलकुल चुकता।
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पटेबाज  : पुं० [हिं० पटा+फा० बाज] [भाव० पटेबाजी] १. वह जो पटा-बनेठी आदि खेलता या पटा हाथ में लेकर लड़ता हो। पटैता। २. मनुष्य के आकार का एक प्रकार का खिलौना जो डोरी खींचने से दोनों हाथों से पटा खेलता है। ३. उक्त प्रकार की एक आतिशबाजी। वि० १. दुश्चरित्रा और पुंश्चली। छिनाल। (स्त्री)। २. बहुत चालाक या धूर्त्त (पुरुष या स्त्री)।
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पटेबाजी  : स्त्री० [हिं० पटेबाज] १. पटेबाज का कार्य और कौशल। २. व्यभिचार। छिनाला। ३. धूर्तता।
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पटेर  : स्त्री० [सं० पटेरक] जलाशयों में होनेवाला सरकंडे की जाति का एक पौधा जिसके पत्तों की चटाइयाँ,टोकरियाँ आदि बनाई जाती हैं।
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पटेरा  : पुं० १.=पटेला। २.=पटरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटेल  : पुं० [सं० पट्ट+हिं० वाल (प्रत्य०)] १. गांव का नंबरदार। (म० प्र०) २. गाँव का चौधरी या मुखिया।
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पटेलना  : स०=पटीलना।
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पटेला  : पुं०=पटैला।
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पटैत  : पुं० [हिं० पटा+ऐत (प्रत्य०)] पटा खेलने या लड़नेवाला खिलाड़ी। पटेबाज। पुं० [हिं० पट्टा+ऐत (प्रत्य०)] १. वह जिसके नाम किसी जमीन या जायदाद का पट्टा लिखा गया हो। २. गाँव भर का पुरोहित जिसे पौरोहित्य का पट्टा मिला करता था। पुं० [हिं० पटाना] वह जिसे सहज में पटाया अथवा अपने अनूकुल बनाया जा सकता हो, फलतः मूर्ख या सीधा-सादा।
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पटैला  : पुं० [हिं० पाटना] [स्त्री० अल्पा० पटैली] १. एक प्रकार की बड़ी नाव जिसका बीचवाला भाग ऊपर से पटा या छाया हुआ रहता है। मुहा०—किसी के पटैले के साथ अपनी पनसुइया बाँधना=किसी बहुत बड़े कार्य या व्यक्तित्व के साथ अपना तुच्छ कार्य या व्यक्तित्व संबद्ध करना। २. पटेर नाम का पौधा जिससे चटाइयाँ आदि बनती हैं। ३. हैंगा। ४. पत्थर की पटिया। ५. कुश्ती का एक प्रकार का पेंच। पुं० [हिं० पाटा] दरवाजा बंद करते समय अंदर से लगाया जानेवाला डंडा। ब्योंड़ा। अर्गल।
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पटैली  : स्त्री० [हिं० पटेला] छोटी पटेला नाव।
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पटोटज  : पुं० [सं० पट-उटज,मध्य० स०] १. खेमा। २. [पट-उट,ष० त०, पटोट√जन् (उत्पत्ति)+ड] कुकुरमुत्ता। ३. छत्रक।
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पटोर  : पुं० [सं० पटोल] १. पटोल। परवल। २. रेशमी कपड़ा। उदा०—मैं कोरी सँग पहिरि पटोरा।—जायसी। ३. स्त्रियों के पहनने की अंगिया या चोली। पद—लहरा पटोर (देखें)।
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पटोरी  : स्त्री० [सं० पाट्+ओरी (प्रत्य०)] १. रेशमी धोती या साड़ी । २. रेशमी किनारे की धोती या साड़ी।
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पटोल  : पुं० [सं०√पटु+ओरी+ओलच्] १. गुजरात में बननेवाला एक तरह का रेशमी कपड़ा। २. परवल की लता और उसका फल।
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पटोल-पत्र  : पुं० [ब० स०] एक तरह की पोई।
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पटोलक  : पुं० [सं० पटोल√कै (चमकना)+क] सीपी। शुक्ति।
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पटोला  : पुं० [हिं० पटोल] १. एक तरह का रेशमी कपड़ा। २. कपड़े का वह छोटा टुकड़ा जिससे बच्चे खेलते हैं और विशेषतः जिसे गुड़िया को पहनाते हैं। (पश्चिम)
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पटोलिका  : स्त्री० [सं० पटोल+कन्—टाप्,इत्व] १. एक तरह का पट्टा। २. कोई लिखित विधिक मत। ३. पेटी। मंजूषा। उदा०—पटोलिका में अलाक्तक (महावर मनःशिला, हरिताल,हिंगुल और राजावर्त्त का चूर्ण रखा हुआ था।—हजारीप्रसाद द्विवेदी। ४. एक तरह की तरोई।
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पटोली  : स्त्री० पटोलिका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पटोसिर  : पुं० [हिं० पट+सिर] पगड़ी। साफा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पटौतन  : पुं०=पटौनी।
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पटौंधन  : पुं० [हिं० पटाना] रेहन रखी हुई चीज का रुपया किसी प्रकार या रूप में चुकाकर वह चीज फिर से अपने हाथ में कर लेने की क्रिया या भाव।
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पटौनी  : पुं० [देश०] माँझी। मल्लाह। स्त्री० [हिं० पटाना] १. ऋण आदि चुकाने या पटाने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘पटौंधन’।
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पटौहाँ  : वि० [हिं० पाटना] १. पाटकर बनाया हुआ। २. पाटा हुआ। पुं० १. पटा हुआ स्थान। २. पाटन। छत। ३. ऐसा कमरा जिसके ऊपर कोई और कमरा भी हो। ४. पटबंधक। वि० [हिं० पटाना] (ऋण) जो पटाकर पूरा किया जा सकता हो।
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पट्ट  : पुं० [सं०√पट्+क्त] १. बैठने की चौकी या पीढ़ा। पाटा। २. लिखने का अभ्यास करने की तख्ती। पटिया। ३. लकड़ी का वह बड़ा टुकड़ा, जिस पर नाम आदि लिखा अथवा सूचनाएँ आदि लगाई जाती हैं। जैसे—नाम-पट्ट,सूचना पट्ट। ४. पट्टा। (दे०) ५. पत्थर,लकड़ी लोहे आदि का चौकोर या बड़ा टुकड़ा। ६. तांबे आदि धातुओं का पत्तर, जिस पर राजकीय आज्ञाएँ, दान-पत्र आदि उकेरे या खोदे जाते थे। ७. घाव पर बाँधने की कपड़े की पट्टी। ८. ढाल। ९. पगड़ी। १॰. दुपट्टा। ११. नगर। शहर। १२. चौमुँहनी। चौराहा। १३. राजसिंहासन। पद—पट्ट-महिषी।(देखें)। १४. रेशम। १५. पटसन। पाट। १६. टसर का बना हुआ कपड़ा। वि० [अनु०]=पट (चित्त का विपर्याय)। पुं० दे० ‘पट्टा’ (ठीके आदि का लेख्य)।
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पट्ट  : पुं० [हिं० पट्टी] १. एक प्रकार मोटा ऊनी देशी कपड़ा, जो साधारण सूती कपड़ों की अपेक्षा कम चौड़ा और प्रायः लम्बी पट्टी के रूप में बुना हुआ होता है। २. एक प्रकार का चारखानेदार कपड़ा। पुं० [?] तोता (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्ट-देवी  : स्त्री० [मध्य० स०] प्राचीन काल में राजा की वह प्रथम ब्याही हुई स्त्री, जो उसके साथ सिंहासन पर बैठती थी।
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पट्ट-महिषी  : स्त्री० [मध्य० स०] पट-रानी। (दे०)
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पट्ट-रंग  : पुं० [ष० त०] पतंग या बक्कम जिसकी लकड़ी से रंग निकलता है।
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पट्ट-रंजक,पट्ट-रंजन  : पुं०=पट्ट-रंग।
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पट्ट-राज  : पुं० [मध्य० स०] पुजारी। (महाराष्ट्र)
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पट्ट-राज्ञी  : स्त्री० [मध्य० स०] पट-रानी।
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पट्ट-लेख्य  : पुं० [ष० त०] वह लेख्य जिसमें पट्टे की शर्तें आदि लिखी हों। (लीज डीड)।
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पट्ट-वस्त्र,पट्ट-वासा (सस्)  : वि० [ब० स०] जो रंगीन या रेशमी वस्त्र पहनता हो।
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पट्टक  : पुं० [सं० पट्ट+कन्] १. लिखने की तख्ती या पट्टी। २. घाव,चोट,सूजन आदि पर बाँधने की पट्टी। ३. एक प्रकार का रेशमी लाल कपड़ा, जिसकी पगड़ियाँ बनती थीं। ४. ताँबे आदि का वह पत्थर जिस पर राजकीय आज्ञाएँ, दान-लेख आदि उकेरे या खोदे जाते थे।
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पट्टकीट  : पुं० [ष० त०] रेशम का कीड़ा।
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पट्टज  : पुं० [पट्ट√जन् (उत्पन्न होना)+ड] रेशम के कीड़ों की एक जाति।
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पट्टदोल  : स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह का झूला जो कपड़े का बना होता था।
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पट्टन  : पुं० [सं०√पट्ट+तनप्] नगर। शहर।
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पट्टनी  : स्त्री० [सं० पट्टन+ङीष्] १. छोटा नगर। नगरी। २. रेशमी कपड़ा।
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पट्टला  : स्त्री० [सं० पट्ट√ला (लेना)+क—टाप्] १. आधुनिक जिले की तरह की एक प्राचीन शासनिक इकाई। २. उक्त इकाई में रहनेवाला जन-समूह। (कम्यूनिटी)।
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पट्टशाक  : पुं० [कर्म० स०] पटुआ।
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पट्टह घोषक  : पुं० [सं० पटहघोषक] ढिंढोरा पीटने या मुनादी करनेवाला व्यक्ति।
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पट्टा  : पुं० [सं० पट्ट] १. वह अधिकार-पत्र जो भूमि या स्थावर संपत्ति का स्वामी किसी असामी, किरायेदार या ठेकेदार को इसलिए लिखकर देता है कि वह उस भूमि या स्थावर संपत्ति का कुछ समय के लिए उचित उपयोग कर सके, उससे होनेवाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेच सके; और उससे होने वाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेंच सके; और उसका कुछ अंश भूमि या संपत्ति के स्वामी को भी देता रहे। क्रि० प्र०—देना।—लिखना। २. वह पत्र या लेख्य जो मध्ययुग में असामी या काश्तकार किसी जमींदार की जमीन जोतने-बोने के लिए लेते समय उसे इसलिए लिखकर देता था कि नियत समय के उपरांत जमींदार को उस जमीन का फिर से मनमाना उपयोग करने का अधिकार हो जायगा। विशेष—इसकी स्वीकृति का सूचक जो लेख्य जमींदार लिख देता था, उसे ‘कबूलयित’ कहते थे। क्रि० प्र०—लिखना।—लिखाना। ३. कुछ स्थानों में वे नियम, जो लगान वसूल करनेवाले कर्मचारियों के लिए बनाये जाते थे। ४. उक्त के आधार पर कहार,धोबी,नाई भाट आदि का वह नेग, जो उन्हें वर-पक्ष से दिलवाया जाता था। क्रि० प्र०—चुकवाना।—चुकाना।—दिलाना।—देना। ५. चमड़े आदि का वह तस्मा या पट्टी जो कुछ पशुओं के गले में उन्हें बाँधकर रखने के लिए पहनाई जाती है। जैसे—कुत्ते,बंदर या बिल्ली के गले का पट्टा। ६. उक्त के आधार पर, कमर में बाँधने का चमड़े आदि का वह तस्मा, जिसमें चपरास टँगी रहती या तलवार लटकाई जाती है। ७. उक्त के आधार पर दक्षिण भारत या महाराष्ट्र देश की एक प्रकार की तलवार, जो कमर में लटकाई जाती थी। ८. किसी चीज का कोई कम चौड़ा और अधिक लंबा टुकड़ा जिससे कोई विशेष काम लिया जाता हो। जैसे—कामदार जूते या टोपी का पट्टा=मखमल आदि का वह लंबा टुकड़ा जिसपर सलमें-सितारे का काम बना हो। ९. कुछ चौड़ी पटरी के आकार का कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। १॰. कोई ऐसा चिन्ह या निसान जो कुछ कम चौड़ा और अधिक लंबा हो। जैसे—घोड़े या बैल के माथे का पट्टा। ११. एक प्रकार का लंबोत्तरा गहना जो घोड़ों के माथे पर लटकाया जाता है। १२. पुरुषों के सिर के दोनों ओर के बाल जो मध्ययुग में बड़ी पट्टी के रूप में, सँवारकर दोनों ओर लटकाये जाते थे। विशेष—स्त्रियों के इस प्रकार सँवारकर बाँधे हुए बाल ‘पट्टी’ कहलाते हैं। १३. बैठने के लिए बना हुआ काठ का पटरा। पीढ़ा। पुं० [?] कोई ऐसा अनाज, फली या दानों की बाल जो अभी पूरी तरह से पककर तैयार न हुई हो। (पूरब)। पुं० [सं० पट्टी] [स्त्री० अल्पा० पट्टी] १. एक प्रकार का प्राचीन शस्त्र। २. लड़ाई-भिड़ाई के समय का पैंतरा।
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पट्टा-पछाड़  : पुं०=पट्टे-पछाड़।
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पट्टा-बैठक  : स्त्री०=पट्टे-बैठक।
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पट्टाधारी  : पुं० [हिं० सं०] वह व्यक्ति जिसने किसी निश्चित अवधि के लिए कुछ शर्तों पर किसी से कोई जमीन या संपत्ति भोग्यार्थ प्राप्त की हो। पट्टे पर जमीन आदि लेनेवाला। (लीज होल्डर)
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पट्टाभिषेक  : पुं० [सं० पट्ट-अभिषेक,स० त०] १. राज्याभिषेक। २. वे विशिष्ट कृत्य जो जैन विद्वानों को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने के समय होते हैं। ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें उक्त कृत्यों का वर्णन होता है।
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पट्टार  : पुं० [सं० पट्ट√ऋ (गति)+अण्] [वि० पट्टारक] एक प्राचीन देश।
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पट्टारक  : वि० [सं० पट्टार+वुन्—अक] पट्टार देश का।
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पट्टांशुक  : पुं० [सं० पट्ट-अंशुक,कर्म० स०] १. रेशमी कपड़ा। २. शरीर के ऊपरी भाग में पहनने या ओढ़ने का कपड़ा।
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पट्टाही  : स्त्री० [पट्ट-अही,स० त०] पटरानी।
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पट्टिका  : स्त्री० [सं० पट्ट+कन्—टाप्,इत्व] १. छोटा तख्ती। पटिया। २. छोटा चित्र-पट या ताम्र पट। ३. कपड़े की छोटी पट्टी। ४. रेशमी फीता। ५. पठानी लोध। ६. दस्तावेज। पट्टा।
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पट्टिका-बैठक  : स्त्री०=पट्टे-बैठक।
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पट्टिका-लोध्र  : पुं० [मयू० स०] पठानी लोध।
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पट्टिका-वायक  : पुं० [ष० त०]=पट्टिकार।
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पट्टिकाख्य  : पुं० [सं० पट्टिका-आख्या,ब० स०] पठानी लोध। रक्त-लोध्र।
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पट्टिकार  : पुं० [सं० पट्टिका√ऋ+अण्] रेशमी वस्त्र बनानेवाला कारीगर।
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पट्टिय  : स्त्री० [सं० पट्टिका] केश-विन्यास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टिल  : पुं० [सं० पट्ट+इलच्] पूतिकरंज। पलंग।
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पट्टिश  : पुं० [सं०√पट (गति)+टिशच्] आधुनिक पटा नामक अस्त्र के आकार का एक प्राचीन अस्त्र।
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पट्टिशी (शिन्)  : वि० [सं० पट्टिश+इनि] १. पट्टिश बाँधनेवाला। २. पट्टिश हाथ में लेकर लड़नेवाला। पटेबाज।
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पट्टिस  : पुं० [सं० पट्टिश] पटा नामक अस्त्र।
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पट्टी  : स्त्री० [सं० पट्टिका] १. लकड़ी की वह लंबोत्तरी, चौरस और चिपटी पटरी जिस पर बच्चों को अक्षर लिखने का अभ्यास कराया जाता है। तख्ती। पटिया। पाटी। २. अभ्यास आदि के लिए पट्टी पर दिया जाने वाला पाठ। सबक। ३. आदेश। शिक्षा। ४. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में कोई ऐसी उलटी-सीधी बात जो किसी को अपने अनुकूल बनाने के लिए अथवा किसी अन्य दुष्ट उद्देश्य से अच्छी तरह समझा-बुझाकर किसी के मन में बैठा दी गई हो। बुरी नियत से दी जाने वाली सलाह। मुहा०—(किसी को) पट्टी पढ़ाना=किसी को उलटी-सीधी बातें समझा-बुझा या सिखा-पढ़ाकर अपने अनुकूल अथवा गलत रास्ते पर लगाना या बहकाना। उदा०—मीत सुजान अनीति की पाटी इतै पै न जानिये कौन पढ़ाई।—घनानंद। (किसी की) पट्टी में आना=किसी के द्वारा सिखलाई उलटी-सीधी अथवा अनुचित बात सही मानकर उसके अनुसार आचरण या कार्य करना। ४. कपड़े,काठ,धातु आदि का वह लंबा किंतु कम चौड़ा पतला टुकड़ा, जो किसी बड़े अंश से काट, चीर या फाड़ कर अलग किया या निकाला गया हो। ५. कपड़े का उक्त आकार का ऐसा टुकड़ा, जो घाव,चोट आदि पर बाँधा जाता है। ६. बुना हुआ ऐसा कपड़ा जिसकी चौड़ाई सामान्य माप के अन्य कपडों से अपेक्षाकृत कम या बहुत कम होती है। जैसे—(क) घुटने और टखने के बीचवाले अंश में बाँधी जानेवाली पट्टी। (ख) इस साड़ी पर कला बत्तू की पट्टी लग जाय तो अच्छा हो। ७. उक्त आकार का टाट का वह टुकड़ा जो वैसी ही टुकड़ों के साथ जोड़ या सीकर जमीन पर बिछाया जाता है। ८. ऊन का बुना हुआ देशी गरम कपड़ा, जिसकी चौड़ाई अन्य सूती कपड़ों की चौड़ाई से कम होती। जैसे—इस कोट में पट्टू की एक पूरी पट्टी लग जायगी। ९. कपड़े की बुनावट में उसकी लंबाई के बल में कुछ मोटे सूतों से बना हुआ किनारा। १॰. लकड़ी के वे लंबे टुकड़े, जो खाट या चारपाई के ढांचे में लंबाई के बल लगे रहते हैं। पाटी। ११. उक्त आकार-प्रकार की वह लकड़ी, जो छत या छाजन के नीचे लगाई जाती है। बल्ली। १२. छाजन में लगी हुई कड़ियों की पंक्ति। १३. नाव के बीचों-बीच का तख्ता। १४. पत्थर का लंबाकम चौड़ा और पतला आयताकार टुकड़ा। पटिया। १५. किसी रचना का ऐसा विभाग जो एक सीध में दूर तक चला गया हो। जैसे—खेमों, झोंपडियों या दुकानों की पट्टी। १६. स्त्रियों के सिर के बालों की वह रचना जो कंघी की सहायता से बना-सँवारकर माँग के दोनों ओर प्रस्तुत की जाती है। पाटी। पद—माँग-पट्टी। (देखें) मुहा०—पट्टी जमाना=माँग के दोनों ओर के बालों को गोंद या चिपचिपे पदार्थ की सहायता से इस प्रकार बैठाना कि ये सिर के साथ बिलकुल चिपक जाएँ और जमी हुई पट्टी की तरह मालूम होने लगें। १७. मध्ययुग में, किसी संपत्ति अथवा उससे होनेवाली आय का वह अंश जो उसके किसी हिस्सेदार को मिलता था। पत्ती। पद—पट्टी का गाँव= मध्ययुग में, ऐसा गाँव जिसके बहुत से मालिक होते थे और इसी कारण जहाँ प्रायः अव्यवस्था या कुप्रबंध रहता था। १८. वह अतिरिक्त कर जो जमींदार किसी विशिष्ट कार्य के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से अपने असामियों या खेतिहरों पर लगाता था। अबवाब। नेग। १९. एक प्रकार की मिठाई जो चाशनी में चने की दाल, तिल आदि पागकर पतली तह के रूप में जमाकर बनाई जाती है। जैसे—तिल-पट्टी, दाल-पट्टी। २॰. घोड़े की दौड़ का वह प्रकार जिसमें वह एक सीध में दूर तक सरपट दौड़ता हुआ चला जाता है। स्त्री० [सं०] १. पठानी-लोध। २. पगड़ी में लगाई जानेवाली कलगा या तुर्रा। ३. घोड़ों आदि के मुँह पर बाँधा जानेवाला तोबड़ा। ४. घोड़े की पीठ और पेट पर बाँधा जानेवाला तस्मा। तंग।
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पट्टीदार  : पुं० [हिं० पट्टी=पत्ती+फा० दार ] [भाव० पट्टीदारी] १. वह व्यक्ति जिसका किसी जमीन,संपत्ति आदि में हिस्सेदारी हो। हिस्सेदार २. एक हिस्सेदार के संबंध के विचार से दूसरा हिस्सेदार। ३. बराबर का अधिकारी। वि० [हिं० पट्टी+फा० दार] (वस्त्र) जिसमें पट्टी आदि टँगी या लगी हुई हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टीदारी  : स्त्री० [हिं० पट्टीदारी ] १. पट्टीदार होने की अवस्था या भाव। २. दो या कई पट्टीदारों में होनेवाला पारस्परिक संबंध। मुहा०—(किसी से) पट्टीदारी अटकना=ऐसा झगड़ा उपस्थित होना, जिसका कारण पट्टी या हिस्सेदारी हो। पट्टीदारी के कारण विरोध होना। ३. किसी के साथ किया जानेवाला बराबरी का दावा। यह कहना कि हम भी अमुक काम या बात में तुम्हारे बराबर या बराबरी के हिस्सेदार हैं। ४. मध्ययुग में वह जमींदारी, जिसके पट्टीदार या मालिक कई आदमी संयुक्त रूप से होते थे।
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पट्टीवार  : अव्य० [हिं० पट्टी+फा० वार] हर पट्टी या हिस्से के विचार से। अलग-अलग। जैसे—यह हिसाब पट्टीवार बना है। वि० (ऐसी बही या लिखा-पढ़ी) जिसमें पट्टियों का हिसाब अलग-अलग रखा जाता हो। जैसे—पट्टीवार जमाबंदी।
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पट्टे-पछाड़  : पुं०[हिं० पट+पछाड़ना] कुश्ती का एक पेंच।
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पट्टे-बैठक  : स्त्री० [हिं० पट+बैठक] कुस्ती का एक पेंच।
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पट्टैत  : पुं० [हिं० पट्टा+ऐत (प्रत्य०)] काले,नीले या लाल रंग का वह कबूतर जिसके गले में सफेद कंठी हो। पुं०=पटैत (पटेबाज)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टोला  : पुं० [सं० पट्टदुकूल] १. रेशमी वस्त्र। २. कपड़े की वह कतरन या धज्जी जिससे बच्चे खेलते हैं। (पश्चिम)।
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पट्टोलिका  : स्त्री० [सं०=पट्टालिका,पृषो० सिद्धि] १. पट्टा। अधिकारपत्र। २. दे० ‘पटोलिका’।
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पट्ठमान  : वि० [सं० पठ्यमान ] (ग्रंथ) जिसे पढ़ना उचित हो या जो पढ़ा जाने को हो।
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पट्ठा  : वि० [सं० पुष्ट,प्रा० पुट्ठ] [स्त्री० पट्ठी,पठिया] १. (व्यक्ति) जो हृष्ट-पुष्ट तथा नौजवान हो। २. जीवों या प्राणियों का ऐसा बच्चा जिसमें यौवन का आगमन हो चुका हो; पर पूर्णता न आई हो। नवयुवक। पद—उल्लू का पट्ठा=बहुत बड़ा मूर्ख (गाली)। पुं० १. कुश्ती लड़नेवाला या पहलवान। २. किसी प्रकार का दलदार, मोटा और मोटा लंबा पत्ता। जैसे—घी-कुआर या सुरती का पट्ठा। ३. शरीर के अंदर के वे तन्तु या नसें जो माँस-पेशियों को हड्डियों के साथ बाँधे रखती हैं। मुहा०—पट्ठा चढ़ना=किसी नस का तन कर दूसी नस पर चढ़ जाना जो एक आकस्मिक और कष्टकर शारीरिक विकार है। (किसी के) पट्ठों में घुसना=किसी से गहरी दोस्ती या मेल-जोल पैदा करना। ४. एक प्रकार का चौड़ा गोटा, जो रुपहला और सुनहला दोनों प्रकार का होता है। ५. उक्त के आकार-प्रकार का वह गोट जो अतलस आदि पर बुनकर बनाई जाती है। ६. पेडू के नीचे कमर और जाँघ के जोड़ का वह स्थान जहाँ छूने से गिल्टियाँ मालूम होती हैं।
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पट्ठा-पछाड़  : वि० स्त्री० [हिं० पट्ठा+पछाड़ना] (स्त्री) जो पुरुष को पछाड़ सकती हो; अर्थात् खूब हृष्ट-पुष्ट और बलवती।
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पट्ठिलोध्र (क)  : पुं०=पट्टिका-लोध्र।
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