शब्द का अर्थ
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परज :
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वि० [सं० पर√जन् (उत्पत्ति)+ड] दूसरे या पराये से उत्पन्न। परजात। पुं० कोकिल। कोयल। पुं० [सं० पराजिका] ओड़व-संपूर्ण या षाड़व-संपूर्ण जाति का एक राग जो रात के अंतिम पहर में गाया जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
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परजंक :
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पुं०=पर्यंक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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परजन :
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पुं०=परिजन। |
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परजनता :
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स्त्री० [सं० परिजन+तल्+टाप्] १. परिजन होने की अवस्था या भाव। २. अधीनता। |
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परजन्म (न्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] [वि० पारजन्मिक] इस जीवन के बाद होनेवाला दूसरा जन्म। |
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परजन्य :
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पुं०=पर्जन्य। |
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परजरना :
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अ० [सं० प्रज्वलन] १. प्रज्वलित होना। जलना। दहकना। सुलगना। २. बहुत क्रुद्ध होना। बिगड़ना। ३. मन ही मन कुढ़ना या जलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० १. प्रज्वलित करना। दहकाना। सुलगाना। ३. क्रुद्ध करना। ३. संतप्त करना। जलाना। |
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परजलना :
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अ० [सं० प्रज्वलन] जलना। |
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परजवट :
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पुं०=परजौट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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परजा :
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स्त्री० [सं० प्रजा] १. प्रजा। रैयत। २. देहातों में गृहस्थों के अनेक प्रकार के काम तथा सेवाएँ करनेवाले लोग। जैसे—कुम्हार, चमार, धोबी, नाई आदि। ३. ब्रिटिश शासन के समय, वे खेतिहर जो जमींदार की जमीन लगान पर लेकर खेती-बारी करते थे। असामी। काश्तकार। |
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परजात :
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वि० [पं० त०] दूसरे से उत्पन्न। पुं० कोयल। पुं० [सं० पर+जाति] दूसरी या भिन्न जाति का व्यक्ति। दूसरी बिरादरी का आदमी। वि० दूसरी जाति से संबंध रखनेवाला। |
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परजाता :
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पुं० [सं० परिजात] १. मझोले आकार का एक पेड़ जिसमें शरद् ऋतु में छोटे-छोटे सुगंधित फूल लगते हैं। हर-सिंगार। २. उक्त पेड़ का फूल। |
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परजाय :
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पुं०=पर्याय। |
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परजित :
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वि० [तृ० त०] १. दूसरे के द्वारा पाला-पोसा हुआ। २. जिसे किसी ने जीत लिया हो। विजित। पुं० कोयल। |
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परजीवी (विन्) :
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वि० [सं० पर√जीव् (जीना)+णिनि] जिसका जीवित रहना दूसरों पर अवलंबित हो। दूसरों पर आश्रित रहनेवाला। पुं० वे वनस्पतियाँ या कीड़े-मकोड़े जो दूसरे वृक्षों या जीव-जंतुओं के शरीर पर रहकर और उनका रस या खून चूसकर जीते तथा पलते हैं। (पैराज़ाइट) |
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परजौट :
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पुं० [हिं० परजा (प्रजा)+औट (प्रत्य०)] घर आदि बनाने के निमित्त किसी से वार्षिक कर या देन पर जमीन लेने की प्रथा या रीति। |
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परजौटी :
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वि० [हिं० परजौट] १. परजौट-संबंधी। २. जो परजौट पर दिया या लिया गया हो। जैसे—परजौटी जमीन। |
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परज्वलना :
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अ० [सं० प्रज्वलन] प्रज्वलित होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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