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परिचार  : पुं० [सं० परि√चर्+घञ्] १. सेवा। टहल। खिदमत। २. ऐसा स्थान जहाँ लोग टहलने के लिए जाते हों। ३. ऐसी देखरेख या सेवा-शुश्रूषा जिससे कम अवस्थावाले बच्चों, पौधों, आदि का भरण-पोषण, लालन-पालन तथा अभिवर्द्धन ठीक क्रम तथा ढंग से हो सके। (नर्सिंग) ४. अशक्त, रुग्ण तथा पंगु व्यक्तियों की की जानेवाली टहल। सेवा।
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परिचार-गाड़ी  : स्त्री० [सं०+हिं] वह गाड़ी जिस पर घायल, रुग्ण लोगों को उठाकर चिकित्सा-स्थल आदि पर ले जाया जाता है। (एम्ब्युलेंस कार)
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परिचारक  : वि० [सं० परि√चर्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० परिचारिका] जो परिचार करता हो। परिचार करनेवाला। पुं० १. नौकर। सेवक। २. परिचर्या करनेवाला व्यक्ति। ३. देव-मंदिर का प्रबंध करनेवाला व्यक्ति।
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परिचारण  : पुं० [सं० परि√चर्+णिच्+ल्युट्—अन] १. सेवा या टहल करना। २. संग या साथ रहना।
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परिचारना  : सं० [सं० परिचरण] परिचार या सेवा करना।
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परिचारिका  : स्त्री० [सं० परिचारक+टाप्, इत्व] १. दासी। सेविका। परिचार करनेवाली स्त्री।
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परिचारित  : वि० [सं० परि√चर्+णिच्+क्त] जिसका परिचारण किया गया हो या हुआ हो। पुं० १. क्रीड़ा। खेल। २. मनोविनोद।
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परिचारी (रिन्)  : वि० [सं० परि√चर्+इन्] टहलनेवाला। भ्रमण करने वाला। पुं० टहल या सेवा करनेवाला। सेवक। टहलुआ।
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परिचार्य  : वि० [सं० परि√चर्+ण्यत्] जिसका परिचार या सेवा करना उचित हो। सेव्य।
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