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पल  : पुं० [सं०√पल् (गति, रक्षा)+अच्] १. समय का एक बहुत प्राचीन विभाग जो ६॰ विपल अर्थात् २४ सेकेंड के बराबर होता है। घड़ी या दंड का ६॰ वाँ भाग। पद—पल के पल में=बहुत थोड़े समय में। क्षण भर में। तुरंत। २. एक प्रकार की पुरानी तौल जो ४ कर्ष के बराबर होती थी। ३. चलने की क्रिया। गति। ४. धोखेबाजी। प्रतारणा। ५. तराजू। तुला। ६. गोश्त। मांस। ६. धान का पयाल। ८. मूर्ख व्यक्ति। ९. लाश। शव। पुं० [सं० पलक]। दृगंचल। मुहा०—पल मारते या पल भर में=बहुत ही थोड़े समय में। तुरंत। जैसे—पल मारते वह अदृश्य हो गया।
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पल  : पुं० [सं०√पल् (गति, रक्षा)+अच्] १. समय का एक बहुत प्राचीन विभाग जो ६॰ विपल अर्थात् २४ सेकेंड के बराबर होता है। घड़ी या दंड का ६॰ वाँ भाग। पद—पल के पल में=बहुत थोड़े समय में। क्षण भर में। तुरंत। २. एक प्रकार की पुरानी तौल जो ४ कर्ष के बराबर होती थी। ३. चलने की क्रिया। गति। ४. धोखेबाजी। प्रतारणा। ५. तराजू। तुला। ६. गोश्त। मांस। ६. धान का पयाल। ८. मूर्ख व्यक्ति। ९. लाश। शव। पुं० [सं० पलक]। दृगंचल। मुहा०—पल मारते या पल भर में=बहुत ही थोड़े समय में। तुरंत। जैसे—पल मारते वह अदृश्य हो गया।
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पल-क्षार  : पुं० [ष० त०] रक्त। खून। लहू।
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पल-क्षार  : पुं० [ष० त०] रक्त। खून। लहू।
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पल-प्रिय  : वि० [ब० स०] मांस खाकर प्रसन्न होनेवाला। जिसे मांस अच्छा लगता हो। पुं० डोम कौआ। द्रोण काक।
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पल-प्रिय  : वि० [ब० स०] मांस खाकर प्रसन्न होनेवाला। जिसे मांस अच्छा लगता हो। पुं० डोम कौआ। द्रोण काक।
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पल-भरता  : स्त्री० [हिं० पल+भर+ता (प्रत्य०)] पल भर या बहुत थोड़ी देर तक अस्तित्व बने रहने या होने की अवस्था या भाव। क्षण-भंगुरता।
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पल-भरता  : स्त्री० [हिं० पल+भर+ता (प्रत्य०)] पल भर या बहुत थोड़ी देर तक अस्तित्व बने रहने या होने की अवस्था या भाव। क्षण-भंगुरता।
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पलई  : स्त्री० [सं० पल्लव] १. पेड़ की पतली और नरम डाली। २. पेड़ का ऊपरी सिरा। स्त्री० [हिं० पसली] बच्चों को होनेवाला एक रोग जिसमें उनकी पसलियाँ जोर जोर से फड़कने या ऊपर-नीचे होने लगती हैं।
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पलई  : स्त्री० [सं० पल्लव] १. पेड़ की पतली और नरम डाली। २. पेड़ का ऊपरी सिरा। स्त्री० [हिं० पसली] बच्चों को होनेवाला एक रोग जिसमें उनकी पसलियाँ जोर जोर से फड़कने या ऊपर-नीचे होने लगती हैं।
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पलक  : स्त्री० [फा०] १. आँख के ऊपर का वह पतला आवरण जिसके अगले भाग में बालों की पर्त या बरौनी होती है और जिसके गिरने से आँख बंद होती और उठने से आँख खुलती है। क्रि० प्र०—उठना।—गिरना। मुहा०—पलक झपकना=पलक का क्षण भर के लिए या एक बार नीचे की ओर गिरना। पलक (या पलकों) पर पानी फिरना=आँखों में जल भर आना। उदा०—रोषिहि रोष भरे दृग तरै फिरै पलक भर पानी।—सूर। पलक पसीजना=(क) आँखों में आँसू आना। (ख) किसी के प्रति करुणा या दया उत्पन्न होना। पलक भाँजना=(क) पलक गिराना या हिलाना। (ख) पलकें हिलाकर इशारा या संकेत करना। पलक मारना=(क) पलक झपकाना या गिराना। (ख) पलक हिलाकर इशारा या संकेत करना। पलक लगना=हलकी-सी नींद आना या निद्रा का आरंभ होना। झपकी आना। जैसे—दो दिन से रोगी की पलक नहीं लगी है। पलक से पलक न लगना=नाम को भी कुछ नींद न आना। पलक से पलक न लगाना=देखने के लिए टकटकी लगाना या आँख बंद न होने देना। (किसी के रास्ते में या किसी के लिए) पलकें बिछाना=किसी का अत्यंत आदर और प्रेम से स्वागत तथा सत्कार करना। पलकें मुँदना=मृत्यु होना। मरना। पलकों से जमीन झाड़ना या तिनके चुनना=(क) अत्यंत श्रद्धा तथा भक्ति से किसी की सेवा करना। (ख) किसी को संतुष्ट और सुखी करने के लिए पूर्ण मनोयोग से प्रयत्न करना। जैसे—मैं आप के लिए पलकों से तिनके चुनूँगा। विशेष—इस मुहावरे का मुख्य आशय यह है कि चलने-फिरने, उठने-बैठने की जगह या रास्ते में कुछ भी कष्ट न होने पावे। पद—पलक झपकते या मारते=अत्यंत अल्प समय में। निमेष मात्र में। जैसे—पलक झपकते ही कुछ दूसरा दृश्य दिखाई पड़ा। पुं० [हिं० पल+एक] १. एक ही पल या क्षण भर का समय। उदा०—कोटि करम फिरे पलक में, जो रंचक आये नाँव।—कबीर।
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पलक  : स्त्री० [फा०] १. आँख के ऊपर का वह पतला आवरण जिसके अगले भाग में बालों की पर्त या बरौनी होती है और जिसके गिरने से आँख बंद होती और उठने से आँख खुलती है। क्रि० प्र०—उठना।—गिरना। मुहा०—पलक झपकना=पलक का क्षण भर के लिए या एक बार नीचे की ओर गिरना। पलक (या पलकों) पर पानी फिरना=आँखों में जल भर आना। उदा०—रोषिहि रोष भरे दृग तरै फिरै पलक भर पानी।—सूर। पलक पसीजना=(क) आँखों में आँसू आना। (ख) किसी के प्रति करुणा या दया उत्पन्न होना। पलक भाँजना=(क) पलक गिराना या हिलाना। (ख) पलकें हिलाकर इशारा या संकेत करना। पलक मारना=(क) पलक झपकाना या गिराना। (ख) पलक हिलाकर इशारा या संकेत करना। पलक लगना=हलकी-सी नींद आना या निद्रा का आरंभ होना। झपकी आना। जैसे—दो दिन से रोगी की पलक नहीं लगी है। पलक से पलक न लगना=नाम को भी कुछ नींद न आना। पलक से पलक न लगाना=देखने के लिए टकटकी लगाना या आँख बंद न होने देना। (किसी के रास्ते में या किसी के लिए) पलकें बिछाना=किसी का अत्यंत आदर और प्रेम से स्वागत तथा सत्कार करना। पलकें मुँदना=मृत्यु होना। मरना। पलकों से जमीन झाड़ना या तिनके चुनना=(क) अत्यंत श्रद्धा तथा भक्ति से किसी की सेवा करना। (ख) किसी को संतुष्ट और सुखी करने के लिए पूर्ण मनोयोग से प्रयत्न करना। जैसे—मैं आप के लिए पलकों से तिनके चुनूँगा। विशेष—इस मुहावरे का मुख्य आशय यह है कि चलने-फिरने, उठने-बैठने की जगह या रास्ते में कुछ भी कष्ट न होने पावे। पद—पलक झपकते या मारते=अत्यंत अल्प समय में। निमेष मात्र में। जैसे—पलक झपकते ही कुछ दूसरा दृश्य दिखाई पड़ा। पुं० [हिं० पल+एक] १. एक ही पल या क्षण भर का समय। उदा०—कोटि करम फिरे पलक में, जो रंचक आये नाँव।—कबीर।
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पलक-दरिया  : वि० [हिं० पलक+दरिया] बहुत बड़ा दानी। अति उदार।
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पलक-दरिया  : वि० [हिं० पलक+दरिया] बहुत बड़ा दानी। अति उदार।
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पलक-दरियाव  : वि०=पलक-दरिया।
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पलक-दरियाव  : वि०=पलक-दरिया।
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पलक-पीटा  : पुं० [हिं० पलक+पीटना] १. बरौनिया झड़ने का एक रोग। २. वह जिसे उक्त रोग हो।
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पलक-पीटा  : पुं० [हिं० पलक+पीटना] १. बरौनिया झड़ने का एक रोग। २. वह जिसे उक्त रोग हो।
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पलंकट  : वि० [सं० पल√कट् (छिपाना)+खच्, मुम्] डरपोक। भीरु।
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पलंकट  : वि० [सं० पल√कट् (छिपाना)+खच्, मुम्] डरपोक। भीरु।
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पलकनेवाज  : वि० [हिं० पलक+फा० निवाज़] क्षण भर में निहाल कर देनेवाला। बहुत बड़ा दानी। पलक-दरिया।
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पलकनेवाज  : वि० [हिं० पलक+फा० निवाज़] क्षण भर में निहाल कर देनेवाला। बहुत बड़ा दानी। पलक-दरिया।
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पलंकर  : पुं० [सं० पल√कृ (करना)+खच्, मुम्] पित्त।
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पलंकर  : पुं० [सं० पल√कृ (करना)+खच्, मुम्] पित्त।
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पलकर्ण  : पुं० [सं०] धूपघड़ी के शंकु की उस समय की छाया की लंबाई जब मेष संक्रांति के मध्याह्नकाल में सूर्य ठीक विषुवत् रेखा पर होता है।
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पलकर्ण  : पुं० [सं०] धूपघड़ी के शंकु की उस समय की छाया की लंबाई जब मेष संक्रांति के मध्याह्नकाल में सूर्य ठीक विषुवत् रेखा पर होता है।
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पलंकष  : पुं० [सं० पल√कष् (मारना)+खच्, सुम्] १. गुग्गुल। गूगल। २. राक्षस। ३. पलाश।
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पलंकष  : पुं० [सं० पल√कष् (मारना)+खच्, सुम्] १. गुग्गुल। गूगल। २. राक्षस। ३. पलाश।
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पलंकषा  : स्त्री० [सं० पलंकष+टाप्]=पलंकषी।
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पलंकषा  : स्त्री० [सं० पलंकष+टाप्]=पलंकषी।
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पलंकषी  : स्त्री० [पलंकष+ङीष्] १. गोखरू। रास्ना। २. टेसू। पलास। ३. गुग्गुल। ४. लाख। ५. गोरखमुंडी।
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पलंकषी  : स्त्री० [पलंकष+ङीष्] १. गोखरू। रास्ना। २. टेसू। पलास। ३. गुग्गुल। ४. लाख। ५. गोरखमुंडी।
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पलंका  : स्त्री० [हिं० पर+लंका] लंका से भी और आगे का अर्थात् बहुत दूर का स्थान। आति दूरवर्ती देश। जैसे—लंका छोड़ पलंका जाय। (कहा०)
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पलका  : पुं० [स्त्री० अल्पा० पलकी]=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलंका  : स्त्री० [हिं० पर+लंका] लंका से भी और आगे का अर्थात् बहुत दूर का स्थान। आति दूरवर्ती देश। जैसे—लंका छोड़ पलंका जाय। (कहा०)
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पलका  : पुं० [स्त्री० अल्पा० पलकी]=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलकिया  : स्त्री० [हिं० पलकी] १. पालकी। २. हाथी पर रखने का एक प्रकार का छोटा हौदा। उदा०—पलकिया में बहुत मुलायम गद्दी तकिए लगा दिए गए हैं और हाथी बहुत धीमे चलाया जायगा।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पलकिया  : स्त्री० [हिं० पलकी] १. पालकी। २. हाथी पर रखने का एक प्रकार का छोटा हौदा। उदा०—पलकिया में बहुत मुलायम गद्दी तकिए लगा दिए गए हैं और हाथी बहुत धीमे चलाया जायगा।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पलक्या  : स्त्री० [सं० पलक+यत्+टाप्] पालक।
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पलक्या  : स्त्री० [सं० पलक+यत्+टाप्] पालक।
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पलक्ष  : वि० [सं०=पलक्ष, पृषो० सिद्धि] श्वेत। सफेद। पुं० सफेद रंग।
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पलक्ष  : वि० [सं०=पलक्ष, पृषो० सिद्धि] श्वेत। सफेद। पुं० सफेद रंग।
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पलखन  : पुं० [सं० पलक्ख] पाकर का पेड़।
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पलखन  : पुं० [सं० पलक्ख] पाकर का पेड़।
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पलंग  : पुं० [सं० पल्यंक से फा०] [स्त्री० अल्पा० पलंगड़ी] एक तरह की बड़ी तथा मजबूत चारपाई जो प्रायः निवार से बुनी होती है। क्रि० प्र०—बिछाना। मुहा०—(स्त्री० का) पलंग को लात मार खड़ा होना=छठी, बरही आदि के उपरांत सौरी से किसी स्त्री का भली-चंगी बाहर आना। सौरी के दिन पूरे करके बाहर निकलना। (बोल-चाल) (व्यक्ति का) पलंग को लात मारकर खड़ा होना=बहुत बड़ी बीमारी झेलकर अच्छा होना। कड़ी बीमारी से उठना। पलंग तोड़ना=बिना कोई काम किये यों ही पड़े या सोये रहना। निठल्ला रहना। पलंग लगाना=किसी के सोने के लिए पलंग पर बिछौना बिछाना। बिस्तर ठीक करना।
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पलंग  : पुं० [सं० पल्यंक से फा०] [स्त्री० अल्पा० पलंगड़ी] एक तरह की बड़ी तथा मजबूत चारपाई जो प्रायः निवार से बुनी होती है। क्रि० प्र०—बिछाना। मुहा०—(स्त्री० का) पलंग को लात मार खड़ा होना=छठी, बरही आदि के उपरांत सौरी से किसी स्त्री का भली-चंगी बाहर आना। सौरी के दिन पूरे करके बाहर निकलना। (बोल-चाल) (व्यक्ति का) पलंग को लात मारकर खड़ा होना=बहुत बड़ी बीमारी झेलकर अच्छा होना। कड़ी बीमारी से उठना। पलंग तोड़ना=बिना कोई काम किये यों ही पड़े या सोये रहना। निठल्ला रहना। पलंग लगाना=किसी के सोने के लिए पलंग पर बिछौना बिछाना। बिस्तर ठीक करना।
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पलंग-कस  : पुं० [हिं० पलंग+कसना] एक प्रकार की ओषधि जिसे खाने से स्त्रियों की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंगतोड़ के जोड़पर)
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पलंग-कस  : पुं० [हिं० पलंग+कसना] एक प्रकार की ओषधि जिसे खाने से स्त्रियों की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंगतोड़ के जोड़पर)
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पलंग-तोड़  : वि० [हिं०] १. वह जो प्रायः पलंग पर पड़े-पड़े समय बिताता हो अर्थात् आलसी और निकम्मा। २. एक प्रकार का औषध जिसे खाने से पुरुष की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंग-कस के जोड़पर)
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पलंग-तोड़  : वि० [हिं०] १. वह जो प्रायः पलंग पर पड़े-पड़े समय बिताता हो अर्थात् आलसी और निकम्मा। २. एक प्रकार का औषध जिसे खाने से पुरुष की संभोग शक्ति का बढ़ना माना जाता है। (पलंग-कस के जोड़पर)
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पलंग-दंत  : पुं० [फा० पलंग=चीता+हिं० दांत] जिसके दांत चीते के दांतों की तरह कुछ कुछ टेढ़े हों।
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पलंग-दंत  : पुं० [फा० पलंग=चीता+हिं० दांत] जिसके दांत चीते के दांतों की तरह कुछ कुछ टेढ़े हों।
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पलगंड  : पुं० [सं० पल√गण्ड् (लीपना)+अण्] कच्ची दीवार में मिट्टी का लेप करनेवाला लेपक। मजदूर।
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पलगंड  : पुं० [सं० पल√गण्ड् (लीपना)+अण्] कच्ची दीवार में मिट्टी का लेप करनेवाला लेपक। मजदूर।
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पलंगड़ी  : स्त्री० [हिं० पलंग+ड़ी (प्रत्य०)] छोटा पलंग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलंगड़ी  : स्त्री० [हिं० पलंग+ड़ी (प्रत्य०)] छोटा पलंग।
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पलंगपोश  : पुं० [हिं० पलंग+का० पोश] पलंग पर बिछाई जानेवाली चादर।
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पलंगपोश  : पुं० [हिं० पलंग+का० पोश] पलंग पर बिछाई जानेवाली चादर।
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पलँगरी  : स्त्री०=पलँगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलँगरी  : स्त्री०=पलँगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलंगिया  : स्त्री० [हिं० पलंग+इया (प्रत्य०)] छोटा पलंग। पलंगड़ी।
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पलंगिया  : स्त्री० [हिं० पलंग+इया (प्रत्य०)] छोटा पलंग। पलंगड़ी।
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पलंजी  : स्त्री० [देश०] एक तरह की घास।
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पलंजी  : स्त्री० [देश०] एक तरह की घास।
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पलटन  : स्त्री० [अं० प्लैटून] १. सैनिकों का बहुत बड़ा ऐसा दस्ता जिसका नायक लेफ्टीनेंट होता है। २. किसी प्रकार के प्राणियों का बहुत बड़ा झुंड। जैसे—चींटियों, बंदरों या बच्चों की पलटन। स्त्री० [हिं० पलटना] पलटने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलटन  : स्त्री० [अं० प्लैटून] १. सैनिकों का बहुत बड़ा ऐसा दस्ता जिसका नायक लेफ्टीनेंट होता है। २. किसी प्रकार के प्राणियों का बहुत बड़ा झुंड। जैसे—चींटियों, बंदरों या बच्चों की पलटन। स्त्री० [हिं० पलटना] पलटने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलटना  : अ० [सं० प्रलोटन] १. ऐसी स्थिति में आना या होना कि ऊपरी अंश या तल नीचे हो जाय और निचला अंश या तल ऊपर हो जाय। उलटा या औंधा होना। २. दशा, परिस्थिति आदि में होनेवाला इस प्रकार का बहुत बड़ा परिवर्तन कि उसका प्रवाह, रूख या रूप बिलकुल उलट जाय। अच्छी से बुरी या बुरी से अच्छी स्थिति को प्राप्त होना। ३. अपेक्षाकृत अवनत स्थिति को प्राप्त होना। ४. राज्य की सत्ता का एक के हाथ से निकलकर दूसरे के हाथ में जाना। जैसे—शासन पलटना। ५. पीछे या विपरीत दिशा की ओर जाना, घूमना या मुड़ना। ६. जहाँ से कोई चला हो, उसका उसी स्थान की ओर लौटना। वापस आना। ७. कही हुई या मानी हुई बातें मानने से पीछे हटना। मुकरना। जैसे—उन्हें पलटते देर नहीं लगती। संयो० क्रि०—जाना। स० १. उलटा या औंधा करना। २. आकार, रूप, दशा, स्थिति आदि को प्रयत्नपूर्वक बदल देना। बदलना। ३. अवनत को उन्नत या उन्नत को अवनत करना। ४. किसी को लौटने में प्रवृत्त करना। फेरना। ५. अदल-बदल करना। विशेष—यह उलटना के साथ उसका अनुकरण-वाचक रूप बनकर भी प्रयुक्त होता है। जैसे—उलटना-पलटना।
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पलटना  : अ० [सं० प्रलोटन] १. ऐसी स्थिति में आना या होना कि ऊपरी अंश या तल नीचे हो जाय और निचला अंश या तल ऊपर हो जाय। उलटा या औंधा होना। २. दशा, परिस्थिति आदि में होनेवाला इस प्रकार का बहुत बड़ा परिवर्तन कि उसका प्रवाह, रूख या रूप बिलकुल उलट जाय। अच्छी से बुरी या बुरी से अच्छी स्थिति को प्राप्त होना। ३. अपेक्षाकृत अवनत स्थिति को प्राप्त होना। ४. राज्य की सत्ता का एक के हाथ से निकलकर दूसरे के हाथ में जाना। जैसे—शासन पलटना। ५. पीछे या विपरीत दिशा की ओर जाना, घूमना या मुड़ना। ६. जहाँ से कोई चला हो, उसका उसी स्थान की ओर लौटना। वापस आना। ७. कही हुई या मानी हुई बातें मानने से पीछे हटना। मुकरना। जैसे—उन्हें पलटते देर नहीं लगती। संयो० क्रि०—जाना। स० १. उलटा या औंधा करना। २. आकार, रूप, दशा, स्थिति आदि को प्रयत्नपूर्वक बदल देना। बदलना। ३. अवनत को उन्नत या उन्नत को अवनत करना। ४. किसी को लौटने में प्रवृत्त करना। फेरना। ५. अदल-बदल करना। विशेष—यह उलटना के साथ उसका अनुकरण-वाचक रूप बनकर भी प्रयुक्त होता है। जैसे—उलटना-पलटना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटनिया  : वि० [हिं० पलटन] पलटन-संबंधी। पुं० सैनिक।
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पलटनिया  : वि० [हिं० पलटन] पलटन-संबंधी। पुं० सैनिक।
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पलटा  : पुं० [हिं० पलटना] १. पलटने की क्रिया या भाव। २. चक्कर के रूप में अथवा यों ही उलटकर पीछे की ओर अथवा किसी ओर घूमने या प्रवृत्त होने की क्रिया या भाव। मुहा०—पलटा खाना=(क) पीछे अथवा किसी और दिशा में प्रवृत्त होना या मुड़ना। जैसे—भागते हुए चीते ने पलटा खाया और वह शिकारी पर झपटा। (ख) एक दशा से दूसरी, मुख्यतः अच्छी दशा की ओर प्रवृत्त होना। जैसे—दस बरस के बाद उसके भाग्य ने फिर पलटा खाया और उसने व्यापार में लाखों रुपये कमाये। पलटा देना=(क) उलटना। (ख) किसी दूसरी दशा या दिशा में प्रवृत्त करना या ले जाना। ३. किसी काम या बात के बदले किया जाने या होनेवाला काम या बात। बदला। जैसे—उसे उसकी करनी का पलटा मिल गया। ४. संगीत में वह स्थिति जिसमें बड़ी और लंबी तानें लेते समय ऊँचे स्वरों से पलटकर नीचे स्वरों पर आते हैं। जैसे—गवैये ने ऐसी- ऐसी तानें पलटीं कि सब लोग प्रसन्न हो गये। क्रि० प्र०—लेना। ५. लोहे या पीतल की बड़ी खुरचनी जिसका फल चौकोर न होकर गोलाकार होता है। ६. नाव की वह पटरी जिस पर उसे खेनेवाला मल्लाह बैठता है। ६. कुश्ती का दाँव या पेंच।
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पलटा  : पुं० [हिं० पलटना] १. पलटने की क्रिया या भाव। २. चक्कर के रूप में अथवा यों ही उलटकर पीछे की ओर अथवा किसी ओर घूमने या प्रवृत्त होने की क्रिया या भाव। मुहा०—पलटा खाना=(क) पीछे अथवा किसी और दिशा में प्रवृत्त होना या मुड़ना। जैसे—भागते हुए चीते ने पलटा खाया और वह शिकारी पर झपटा। (ख) एक दशा से दूसरी, मुख्यतः अच्छी दशा की ओर प्रवृत्त होना। जैसे—दस बरस के बाद उसके भाग्य ने फिर पलटा खाया और उसने व्यापार में लाखों रुपये कमाये। पलटा देना=(क) उलटना। (ख) किसी दूसरी दशा या दिशा में प्रवृत्त करना या ले जाना। ३. किसी काम या बात के बदले किया जाने या होनेवाला काम या बात। बदला। जैसे—उसे उसकी करनी का पलटा मिल गया। ४. संगीत में वह स्थिति जिसमें बड़ी और लंबी तानें लेते समय ऊँचे स्वरों से पलटकर नीचे स्वरों पर आते हैं। जैसे—गवैये ने ऐसी- ऐसी तानें पलटीं कि सब लोग प्रसन्न हो गये। क्रि० प्र०—लेना। ५. लोहे या पीतल की बड़ी खुरचनी जिसका फल चौकोर न होकर गोलाकार होता है। ६. नाव की वह पटरी जिस पर उसे खेनेवाला मल्लाह बैठता है। ६. कुश्ती का दाँव या पेंच।
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पलटाना  : सं० [हिं० पलटना] १. पलटने में प्रवृत्त करना। २. लौटाना। ३. बदलना। विशेष दे० ‘पलटना’ स०।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटाना  : सं० [हिं० पलटना] १. पलटने में प्रवृत्त करना। २. लौटाना। ३. बदलना। विशेष दे० ‘पलटना’ स०।
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पलटाव  : पुं० [हिं० पलटा] पलटे जाने की क्रिया या भाव।
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पलटाव  : पुं० [हिं० पलटा] पलटे जाने की क्रिया या भाव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटावना  : स० [हिं० पलटना का प्रे०] पलटने का काम किसी दूसरे से कराना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटावना  : स० [हिं० पलटना का प्रे०] पलटने का काम किसी दूसरे से कराना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटी  : स्त्री०=पलटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटी  : स्त्री०=पलटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटे  : अव्य० [हिं० पलटा] बदले में। एवज में। प्रतिफल स्वरूप।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलटे  : अव्य० [हिं० पलटा] बदले में। एवज में। प्रतिफल स्वरूप।
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पलड़ा  : पुं० [सं० पटल] १. तराजू के दोनों लटकते हुए भागों में से एक। २. शक्ति, समर्थता आदि की दृष्टि से दो पक्षों, दलों आदि में से कोई एक। जैसे—समाज-वादियों की अपेक्षा काँग्रेसियों का पलड़ा भारी है। मुहा०—(किसी का) पलड़ा भारी होना=अपने विरोधी की अपेक्षा शक्ति का संतुलन अधिक होना। पुं०=पल्ला (धोती आदि का आँचल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलड़ा  : पुं० [सं० पटल] १. तराजू के दोनों लटकते हुए भागों में से एक। २. शक्ति, समर्थता आदि की दृष्टि से दो पक्षों, दलों आदि में से कोई एक। जैसे—समाज-वादियों की अपेक्षा काँग्रेसियों का पलड़ा भारी है। मुहा०—(किसी का) पलड़ा भारी होना=अपने विरोधी की अपेक्षा शक्ति का संतुलन अधिक होना। पुं०=पल्ला (धोती आदि का आँचल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलंडी  : स्त्री० [देश०] मल्लाहों का वह बाँस जिससे वे पाल खड़ा करते हैं।
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पलंडी  : स्त्री० [देश०] मल्लाहों का वह बाँस जिससे वे पाल खड़ा करते हैं।
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पलथा  : पुं० [हिं० पलटना] १. कलाबाजी, विशेषतः पानी में कलैया मारने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—मारना। २. दे० ‘पलथी’।
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पलथा  : पुं० [हिं० पलटना] १. कलाबाजी, विशेषतः पानी में कलैया मारने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—मारना। २. दे० ‘पलथी’।
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पलथी  : स्त्री० [सं० पर्यस्त, प्रा० पल्लत्थ] दाहिने पैर का पंजा बाएँ पट्ठे की नीचे और बाएँ पैर का पंजा दाहिने पट्ठे के नीचे दबाकर बैठने का एक आसन। क्रि० प्र०—मारना।—लगाना।
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पलथी  : स्त्री० [सं० पर्यस्त, प्रा० पल्लत्थ] दाहिने पैर का पंजा बाएँ पट्ठे की नीचे और बाएँ पैर का पंजा दाहिने पट्ठे के नीचे दबाकर बैठने का एक आसन। क्रि० प्र०—मारना।—लगाना।
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पलद  : वि० [सं० पल√दा (देना)+क] जिसके सेवन से मांस बढ़े।
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पलद  : वि० [सं० पल√दा (देना)+क] जिसके सेवन से मांस बढ़े।
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पलना  : अ० [हिं० पालना] १. विशिष्ट परिस्थितियों में रहकर बड़े होना। जैसे—प्रकृति की गोद में पलना। २. खा-पीकर खूब हृष्ट पुष्ट होना। ३. कर्त्तव्य, धर्म आदि के निर्वाह के रूप में पूरा उतरना। पालित होना। उदा०—पर भूलो तुम निज धर्म भले, मुझसे मेरा अधिकार पले।—मैथिलीशरण। स०=देना। (दलाल)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलना  : अ० [हिं० पालना] १. विशिष्ट परिस्थितियों में रहकर बड़े होना। जैसे—प्रकृति की गोद में पलना। २. खा-पीकर खूब हृष्ट पुष्ट होना। ३. कर्त्तव्य, धर्म आदि के निर्वाह के रूप में पूरा उतरना। पालित होना। उदा०—पर भूलो तुम निज धर्म भले, मुझसे मेरा अधिकार पले।—मैथिलीशरण। स०=देना। (दलाल)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलनाना  : स० [हिं० पलान=जीन,+ना (प्रत्य०)]= पलानना।
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पलनाना  : स० [हिं० पलान=जीन,+ना (प्रत्य०)]= पलानना।
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पलभक्षी (क्षिन्)  : वि० [सं० पल√भक्ष् (खाना)+ णिनि] [स्त्री० पलभक्षिणी] मांसाहारी। मांस-भक्षी।
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पलभक्षी (क्षिन्)  : वि० [सं० पल√भक्ष् (खाना)+ णिनि] [स्त्री० पलभक्षिणी] मांसाहारी। मांस-भक्षी।
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पलभा  : स्त्री० [ब० स०] धूप-घड़ी के शंकु की उस समय की छाया की चौड़ाई जब मेष संक्रांति के मध्याह्न में सूर्य ठीक विषुवत रेखा पर होता है, पलविभा। विषुवत् प्रभा।
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पलभा  : स्त्री० [ब० स०] धूप-घड़ी के शंकु की उस समय की छाया की चौड़ाई जब मेष संक्रांति के मध्याह्न में सूर्य ठीक विषुवत रेखा पर होता है, पलविभा। विषुवत् प्रभा।
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पलरा  : पुं०=पलड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलरा  : पुं०=पलड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलल  : वि० [सं०√पल् (गति)+कलच्] बहुत मुलायम। पिलपिला। पुं० १. मांस। गोश्त। २. शव। लाश। ३. राक्षस। ४. पत्थर। ५. बल। शक्ति। ६. दूध। ७. कीचड़। ८. तिल का चूर्ण। ९. वह मीठा पकवान या मिठाई जो तिल के चूर्ण से बनी हो। १॰. मल। गन्दगी। ११. सेवार। शैवाल।
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पलल  : वि० [सं०√पल् (गति)+कलच्] बहुत मुलायम। पिलपिला। पुं० १. मांस। गोश्त। २. शव। लाश। ३. राक्षस। ४. पत्थर। ५. बल। शक्ति। ६. दूध। ७. कीचड़। ८. तिल का चूर्ण। ९. वह मीठा पकवान या मिठाई जो तिल के चूर्ण से बनी हो। १॰. मल। गन्दगी। ११. सेवार। शैवाल।
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पलल-ज्वर  : पुं० [ष० त०] पित्त (धातु)।
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पलल-ज्वर  : पुं० [ष० त०] पित्त (धातु)।
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पलल-प्रिय  : वि० [ब० स०] जिसे मांस खाना अच्छा लगता हो। पुं० १. राक्षस। २. डोम कौआ। द्रोण काक।
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पलल-प्रिय  : वि० [ब० स०] जिसे मांस खाना अच्छा लगता हो। पुं० १. राक्षस। २. डोम कौआ। द्रोण काक।
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पललाशय  : पुं० [सं० पलल-आ√शी (सोना)+अच्] गलगंड या घेघा नामक रोग।
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पललाशय  : पुं० [सं० पलल-आ√शी (सोना)+अच्] गलगंड या घेघा नामक रोग।
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पलव  : पुं० [सं०√पल्+अच्, पल√वा (हिंसा)+क] १. मछलियाँ फँसाने का एक तरह का बाँस की खपाचियों का बना हुआ झाबा। २. मछलियाँ पकड़ने का जाल।
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पलव  : पुं० [सं०√पल्+अच्, पल√वा (हिंसा)+क] १. मछलियाँ फँसाने का एक तरह का बाँस की खपाचियों का बना हुआ झाबा। २. मछलियाँ पकड़ने का जाल।
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पलवल  : स्त्री० [?] १. पारस्परिक आत्मीयता या घनिष्टता। २. सामंजस्य। मुहा०—पलवल मिलाना=किसी प्रकार की संगति या सामंजस्य स्थापित करना। पुं०=परवल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलवल  : स्त्री० [?] १. पारस्परिक आत्मीयता या घनिष्टता। २. सामंजस्य। मुहा०—पलवल मिलाना=किसी प्रकार की संगति या सामंजस्य स्थापित करना। पुं०=परवल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलवा  : पुं० [सं० पल्लव] १. ऊख के पौधे की ऊपरी कुछ पोरें जो प्रायः कम मीठी होती हैं। अगौरा। कौंचा। २. पंजाब के कुछ प्रदेशों में होनेवाली एक घास जिसे भैंस चाव से खाती हैं। ३. अंजलि। चुल्लू।
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पलवा  : पुं० [सं० पल्लव] १. ऊख के पौधे की ऊपरी कुछ पोरें जो प्रायः कम मीठी होती हैं। अगौरा। कौंचा। २. पंजाब के कुछ प्रदेशों में होनेवाली एक घास जिसे भैंस चाव से खाती हैं। ३. अंजलि। चुल्लू।
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पलवान  : पुं०=पलवा (घास)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलवान  : पुं०=पलवा (घास)।
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पलवाना  : स० [हिं० पालना] १. किसी को पालने में प्रवृत्त करना। २. किसी से पालन कराना। पालन करने के लिए प्रवृत्त करना।
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पलवाना  : स० [हिं० पालना] १. किसी को पालने में प्रवृत्त करना। २. किसी से पालन कराना। पालन करने के लिए प्रवृत्त करना।
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पलवार  : पुं० [हिं० पल्लव] कुछ विशिष्ट जातियों के ऊख के गंडों में अँखुएँ निकलने पर उन्हें बबूल के काँटों, अरहर के डंठलों आदि से ढकने की एक रीति। पुं० [हिं० पाल+वार (प्रत्य०)] पाल आदि की सहायता से चलनेवाली एक प्रकार की बड़ी नाव जिस पर माल लादा जाता है। पटैला।
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पलवार  : पुं० [हिं० पल्लव] कुछ विशिष्ट जातियों के ऊख के गंडों में अँखुएँ निकलने पर उन्हें बबूल के काँटों, अरहर के डंठलों आदि से ढकने की एक रीति। पुं० [हिं० पाल+वार (प्रत्य०)] पाल आदि की सहायता से चलनेवाली एक प्रकार की बड़ी नाव जिस पर माल लादा जाता है। पटैला।
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पलवारी  : पुं० [हिं० पलवार] नाविक। मल्लाह।
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पलवारी  : पुं० [हिं० पलवार] नाविक। मल्लाह।
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पलवाल  : वि० [सं० पल=मांस+वाल (प्रत्य०)] १. मांस-भक्षी। २. हृष्ट-पुष्ट।
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पलवाल  : वि० [सं० पल=मांस+वाल (प्रत्य०)] १. मांस-भक्षी। २. हृष्ट-पुष्ट।
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पलवैया  : वि० [हिं० पालन+वैया (प्रत्य०)] पालन-पोषण करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० पलवाना] पालन-पोषण करनेवाला।
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पलवैया  : वि० [हिं० पालन+वैया (प्रत्य०)] पालन-पोषण करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० पलवाना] पालन-पोषण करनेवाला।
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पलस्तर  : पुं० [सं० प्लास्टर] १. मजबूती तथा सुरक्षा के लिए दीवारों, छतों आदि पर किया जानेवाला बरी, बालू, सीमेंट अथवा मिट्टी का मोटा लेप। मुहा०—(किसी का) पलस्तर ढीला होना या बिगड़ना=कष्ट, रोग आदि के कारण बहुत-कुछ जर्जर या शिथिल होना। २. किसी चीज के ऊपर लगाया जानेवाला मोटा लेप। जैसे—शरीर के रुग्ण अंग पर लगाया जानेवाला औषध या पलस्तर।
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पलस्तर  : पुं० [सं० प्लास्टर] १. मजबूती तथा सुरक्षा के लिए दीवारों, छतों आदि पर किया जानेवाला बरी, बालू, सीमेंट अथवा मिट्टी का मोटा लेप। मुहा०—(किसी का) पलस्तर ढीला होना या बिगड़ना=कष्ट, रोग आदि के कारण बहुत-कुछ जर्जर या शिथिल होना। २. किसी चीज के ऊपर लगाया जानेवाला मोटा लेप। जैसे—शरीर के रुग्ण अंग पर लगाया जानेवाला औषध या पलस्तर।
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पलस्तरकारी  : स्त्री० [हिं० पलस्तर+फा० कारी] १. दीवारों, छतों आदि का पलस्तर करने की क्रिया या भाव।
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पलस्तरकारी  : स्त्री० [हिं० पलस्तर+फा० कारी] १. दीवारों, छतों आदि का पलस्तर करने की क्रिया या भाव।
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पलहना  : अ०=पलुहना (पल्लवित होना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० पल्लवित करना।
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पलहना  : अ०=पलुहना (पल्लवित होना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० पल्लवित करना।
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पलहा  : पुं० [सं० पल्लव] नया हरा पत्ता। कोंपल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पलहा  : पुं० [सं० पल्लव] नया हरा पत्ता। कोंपल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पला  : स्त्री० [सं० पल] पल। निमिष। पुं० [हिं० ‘पली’ का पुं०] बड़ी पली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पला  : स्त्री० [सं० पल] पल। निमिष। पुं० [हिं० ‘पली’ का पुं०] बड़ी पली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलाँग  : स्त्री०=छलाँग (छलाँग)।
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पलांग  : पुं० [सं० पल-अंग, ब० स०] सूँस। शिंशुमार।
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पलाँग  : स्त्री०=छलाँग (छलाँग)।
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पलांग  : पुं० [सं० पल-अंग, ब० स०] सूँस। शिंशुमार।
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पलाग्नि  : पुं० [सं० पल-अग्नि, ष० त०] पित्त।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाग्नि  : पुं० [सं० पल-अग्नि, ष० त०] पित्त।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलांडु  : पुं० [सं० पल-अण्ड, ष० त०, पलाण्ड+क्विप्+ कु] प्याज।
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पलांडु  : पुं० [सं० पल-अण्ड, ष० त०, पलाण्ड+क्विप्+ कु] प्याज।
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पलाण  : पुं०=पलान।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाण  : पुं०=पलान।
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पलातक  : वि० [सं० पलायन] भगोड़ा। पुं० १. वह किसान जो अपना खेत छोड़कर भाग गया हो। २. वह जो अपना उत्तरदायित्व, कार्य, पद आदि छोड़कर भाग गया हो।
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पलातक  : वि० [सं० पलायन] भगोड़ा। पुं० १. वह किसान जो अपना खेत छोड़कर भाग गया हो। २. वह जो अपना उत्तरदायित्व, कार्य, पद आदि छोड़कर भाग गया हो।
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पलाद, पलादन  : पुं० [सं० पल√अद् (खाना)+अण्] [सं० पल-अदन, ब० स०] राक्षस।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाद, पलादन  : पुं० [सं० पल√अद् (खाना)+अण्] [सं० पल-अदन, ब० स०] राक्षस।
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पलान  : पुं० [फा० पालान] १. सवारी करने से पहले घोड़े, टट्टू आदि की पीठ पर डाला जानेवाला टाट या कोई और मोटा कपड़ा जिसे रस्सी आदि से कस दिया जाता है। २. काठी। जीन। पुं०=प्लान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलान  : पुं० [फा० पालान] १. सवारी करने से पहले घोड़े, टट्टू आदि की पीठ पर डाला जानेवाला टाट या कोई और मोटा कपड़ा जिसे रस्सी आदि से कस दिया जाता है। २. काठी। जीन। पुं०=प्लान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलानना  : सं० [हिं० पलान+ना (प्रत्य०)] १. घोड़े आदि पर पलान कसना या बाँधना। २. किसी पर चढ़ाई या धावा करने की तैयारी करना।
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पलानना  : सं० [हिं० पलान+ना (प्रत्य०)] १. घोड़े आदि पर पलान कसना या बाँधना। २. किसी पर चढ़ाई या धावा करने की तैयारी करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाना  : अ० [सं० पलायन] पलायन करना। भागना। स० [हिं० पलान] घोड़े की पीठ पर काठी का पलान रखना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाना  : अ० [सं० पलायन] पलायन करना। भागना। स० [हिं० पलान] घोड़े की पीठ पर काठी का पलान रखना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलानि  : स्त्री०=पलान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलानि  : स्त्री०=पलान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलानी  : स्त्री० [हिं० पलान] १. पान के आकार का पैर के पंजों में पहनने का एक गहना। २. छप्पर। स्त्री०=पलाव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलानी  : स्त्री० [हिं० पलान] १. पान के आकार का पैर के पंजों में पहनने का एक गहना। २. छप्पर। स्त्री०=पलाव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलान्न  : पुं० [सं० पल-अन्न, मध्य० स०] वह पुलाव जिसमें मांस की बोटियाँ मिली हों।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलान्न  : पुं० [सं० पल-अन्न, मध्य० स०] वह पुलाव जिसमें मांस की बोटियाँ मिली हों।
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पलाप  : पुं० [सं० पल√आप् (प्राप्ति)+घञ्] हाथी का गंडस्थल। पुं० दे० ‘पगहा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलाप  : पुं० [सं० पल√आप् (प्राप्ति)+घञ्] हाथी का गंडस्थल। पुं० दे० ‘पगहा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलायक  : पुं० [सं० परा√अय् (गति)+ण्वुल्—अक, लत्व] १. वह जो पकड़े जाने या दंडित होने के भय से भागकर कहीं चला गया या छिप गया हो। २. भागा हुआ वह व्यक्ति जिसे शासन पकड़ना चाहता हो। भगोड़ा। (एब्सकांडर) ३. वह जो वाद-विवाद, तर्क-वितर्क में बराबर पीछे हट जाता हो।
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पलायक  : पुं० [सं० परा√अय् (गति)+ण्वुल्—अक, लत्व] १. वह जो पकड़े जाने या दंडित होने के भय से भागकर कहीं चला गया या छिप गया हो। २. भागा हुआ वह व्यक्ति जिसे शासन पकड़ना चाहता हो। भगोड़ा। (एब्सकांडर) ३. वह जो वाद-विवाद, तर्क-वितर्क में बराबर पीछे हट जाता हो।
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पलायन  : पुं० [सं० परा√अय्+ल्युट्—अन, लत्व] १. भागने की क्रिया या भाव। भागना। २. आज-कल वैज्ञानिक क्षेत्रों में, यह तत्त्व कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वनस्पति अपने वर्तमान रूप से असंतुष्ट होकर प्राकृतिक रूप से अथवा स्वभावतः किसी न किसी प्रकार की उत्क्रान्ति या उन्नति अथवा विकास की ओर प्रवृत्त होती है। दार्शनिक दृष्टि से इसे सब प्रकार के बन्धनों और सीमाओं से मुक्त होकर अनंत और असीम ब्रह्म की ओर अग्रहसर होने की प्रवृत्ति कह सकते हैं। कला, साहित्य आदि के क्षेत्रों में प्राचीन के प्रति असंतोष और नवीन के प्रति उत्साह या उमंग की भावना इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप होती है।
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पलायन  : पुं० [सं० परा√अय्+ल्युट्—अन, लत्व] १. भागने की क्रिया या भाव। भागना। २. आज-कल वैज्ञानिक क्षेत्रों में, यह तत्त्व कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वनस्पति अपने वर्तमान रूप से असंतुष्ट होकर प्राकृतिक रूप से अथवा स्वभावतः किसी न किसी प्रकार की उत्क्रान्ति या उन्नति अथवा विकास की ओर प्रवृत्त होती है। दार्शनिक दृष्टि से इसे सब प्रकार के बन्धनों और सीमाओं से मुक्त होकर अनंत और असीम ब्रह्म की ओर अग्रहसर होने की प्रवृत्ति कह सकते हैं। कला, साहित्य आदि के क्षेत्रों में प्राचीन के प्रति असंतोष और नवीन के प्रति उत्साह या उमंग की भावना इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप होती है।
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पलायनवाद  : पुं० [ष० त०] आजकल का यह वाद या सिद्धांत कि संसार के सभी चीजें और बातें अपने प्रस्तुत रूप और स्थिति से विरक्त होकर किसी न किसी प्रकार की नवीनता और विशिष्टता की ओर प्रवृत्त होती रहती हैं। (एस्केपइज़्म) विशेष—इस वाद का मुख्य आशय यह है कि जो कुछ है, उससे ऊबकर हर एक चीज उसकी ओर बढ़ती है, जो नहीं है—पदास्ति से यन्नास्ति की ओर प्रवृत्त होती है। आधुनिक हिंदी क्षेत्र में छायावाद, निराशावाद आदि की जो प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं, वे भी इसी पलायनवाद के फल के रूप में मानी जाती हैं। कुछ लोग इसे एक प्रकार की विकृति भी मानते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलायनवाद  : पुं० [ष० त०] आजकल का यह वाद या सिद्धांत कि संसार के सभी चीजें और बातें अपने प्रस्तुत रूप और स्थिति से विरक्त होकर किसी न किसी प्रकार की नवीनता और विशिष्टता की ओर प्रवृत्त होती रहती हैं। (एस्केपइज़्म) विशेष—इस वाद का मुख्य आशय यह है कि जो कुछ है, उससे ऊबकर हर एक चीज उसकी ओर बढ़ती है, जो नहीं है—पदास्ति से यन्नास्ति की ओर प्रवृत्त होती है। आधुनिक हिंदी क्षेत्र में छायावाद, निराशावाद आदि की जो प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं, वे भी इसी पलायनवाद के फल के रूप में मानी जाती हैं। कुछ लोग इसे एक प्रकार की विकृति भी मानते हैं।
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पलायनवादी (दिन्)  : वि० [सं० पलायनवाद+इनि] पलायनवाद-संबंधी। पुं० वह जो पलायनवाद का सिद्धांत मानता हो या उसका अनुयायी हो।
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पलायनवादी (दिन्)  : वि० [सं० पलायनवाद+इनि] पलायनवाद-संबंधी। पुं० वह जो पलायनवाद का सिद्धांत मानता हो या उसका अनुयायी हो।
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पलायमान  : वि० [सं० परा√अय्+शानच्, मुक्, लत्व] जो भाग रहा हो। भागता हुआ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलायमान  : वि० [सं० परा√अय्+शानच्, मुक्, लत्व] जो भाग रहा हो। भागता हुआ।
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पलायित  : भू० कृ० [सं० परा√अय्+क्त, लत्व] जो कहीं भागकर चला गया हो।
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पलायित  : भू० कृ० [सं० परा√अय्+क्त, लत्व] जो कहीं भागकर चला गया हो।
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पलायी (यिन्)  : पुं० [सं० परा√अय्+णिनि, लत्व] पलायक। (दे०)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलायी (यिन्)  : पुं० [सं० परा√अय्+णिनि, लत्व] पलायक। (दे०)
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पलाल  : पुं० [सं०√पल् (रक्षा)+कालन] १. धान का सूखा डंठल। पयाल। २. किसी पौधे या वनस्पति का सूखा डंठल।
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पलाल  : पुं० [सं०√पल् (रक्षा)+कालन] १. धान का सूखा डंठल। पयाल। २. किसी पौधे या वनस्पति का सूखा डंठल।
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पलाल-दोहद  : पुं० [ब० स०] आम का पेड़।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाल-दोहद  : पुं० [ब० स०] आम का पेड़।
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पलाला  : स्त्री० [सं० पल+आ√ला (लेना)+क+टाप्] उन सात राक्षसियों में से एक जो छोटे बच्चों को रुग्ण कर देती है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाला  : स्त्री० [सं० पल+आ√ला (लेना)+क+टाप्] उन सात राक्षसियों में से एक जो छोटे बच्चों को रुग्ण कर देती है।
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पलालि, पलाली  : स्त्री० [सं० पल-आलि, ष० त०] गोश्त या मांस की ढेरी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलालि, पलाली  : स्त्री० [सं० पल-आलि, ष० त०] गोश्त या मांस की ढेरी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाव  : पुं० [सं० पल√अव् (हिंसा)+अच्] वह काँटा जिससे मछलियाँ फँसाई जाती हैं। बंसी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलाव  : पुं० [सं० पल√अव् (हिंसा)+अच्] वह काँटा जिससे मछलियाँ फँसाई जाती हैं। बंसी।
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पलाश  : पुं० [सं०√पल (गति)+क, पल√अश् (व्याप्ति) +अण्] १. ऊँचे स्थानों विशेषतः ऊसर तथा बालूका मिश्रित भूमि में होनेवाला एक पेड़ जिसमें बसंत काल में लाल रंग के फूल लगते हैं। इसके पत्तों की पत्तलें बनाई जाती हैं। ढाक। टेसू। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. पत्ता। पर्ण। ४. मगध देश का पुराना नाम। ५. हरा रंग। ६. कचूर। ६. शासन। ८. परिभाषण। ९. विदारी कंद। वि० [सं० पल√अश् (खाना)+अण्] १. मांसाहारी। २. कठोर-हृदय। निर्दय। पुं० १. राक्षस। २. एक प्रकार का मांसाहारी पक्षी।
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पलाश  : पुं० [सं०√पल (गति)+क, पल√अश् (व्याप्ति) +अण्] १. ऊँचे स्थानों विशेषतः ऊसर तथा बालूका मिश्रित भूमि में होनेवाला एक पेड़ जिसमें बसंत काल में लाल रंग के फूल लगते हैं। इसके पत्तों की पत्तलें बनाई जाती हैं। ढाक। टेसू। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. पत्ता। पर्ण। ४. मगध देश का पुराना नाम। ५. हरा रंग। ६. कचूर। ६. शासन। ८. परिभाषण। ९. विदारी कंद। वि० [सं० पल√अश् (खाना)+अण्] १. मांसाहारी। २. कठोर-हृदय। निर्दय। पुं० १. राक्षस। २. एक प्रकार का मांसाहारी पक्षी।
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पलाशक  : पुं० [सं० पलाश+कन्] १. पलास का पेड़ और फूल। ढाक। टेसू। २. कपूर। ३. लाख। लाक्षा।
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पलाशक  : पुं० [सं० पलाश+कन्] १. पलास का पेड़ और फूल। ढाक। टेसू। २. कपूर। ३. लाख। लाक्षा।
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पलाशगंधजा  : स्त्री० [सं० पलाश-गंध, ष० त०,√जन् (उत्पन्न होना)+ड+टाप्] एक प्रकार का वंशलोचन।
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पलाशगंधजा  : स्त्री० [सं० पलाश-गंध, ष० त०,√जन् (उत्पन्न होना)+ड+टाप्] एक प्रकार का वंशलोचन।
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पलाशच्छदन  : पुं० [सं० ब० स०] तमालपत्र।
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पलाशच्छदन  : पुं० [सं० ब० स०] तमालपत्र।
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पलाशतरुज  : पुं० [सं० पलाश-तरु, ष० त०,√जन्+ड] पलाश की कोंपल।
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पलाशतरुज  : पुं० [सं० पलाश-तरु, ष० त०,√जन्+ड] पलाश की कोंपल।
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पलाशन  : पुं० [सं० पल-अशन, ब० स०] मैना। सारिका।
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पलाशन  : पुं० [सं० पल-अशन, ब० स०] मैना। सारिका।
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पलाशपर्णी  : स्त्री० [सं० पलाश-पर्णी, ब० स०, ङीष्] अश्वगंधा। असगंध।
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पलाशपर्णी  : स्त्री० [सं० पलाश-पर्णी, ब० स०, ङीष्] अश्वगंधा। असगंध।
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पलाशाख्य  : पुं० [सं० पलाश-आख्या, ब० स०] नाड़ी हींग।
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पलाशाख्य  : पुं० [सं० पलाश-आख्या, ब० स०] नाड़ी हींग।
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पलाशांता  : स्त्री० [सं० पलाश-अंत, ब० स०, टाप्] बनकचूर।
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पलाशांता  : स्त्री० [सं० पलाश-अंत, ब० स०, टाप्] बनकचूर।
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पलाशिका  : स्त्री० [सं० पलाश+कन्+टाप्, इत्व] एक लता जो वृक्षों पर भी चढ़ती है।
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पलाशिका  : स्त्री० [सं० पलाश+कन्+टाप्, इत्व] एक लता जो वृक्षों पर भी चढ़ती है।
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पलाशी  : स्त्री० [सं० पलाश+ङीष्] १. क्षीरिका। खिरनी। २. कचूर। ३. कचरी। ४. लाख।
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पलाशी  : स्त्री० [सं० पलाश+ङीष्] १. क्षीरिका। खिरनी। २. कचूर। ३. कचरी। ४. लाख।
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पलाशी (शिन्)  : वि० [सं० पलाश+इनि] १. मांस खानेवाला। मांसाहारी। २. पत्तों से युक्त। जिसमें पत्ते हों। पुं० [पल√अश् (खाना)+णिनि] राक्षस।
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पलाशी (शिन्)  : वि० [सं० पलाश+इनि] १. मांस खानेवाला। मांसाहारी। २. पत्तों से युक्त। जिसमें पत्ते हों। पुं० [पल√अश् (खाना)+णिनि] राक्षस।
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पलाशीय  : वि० [सं० पलाश+छ—ईय] (वृक्ष) जिसमें पत्ते लगे हों। पत्तोंवाला।
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पलाशीय  : वि० [सं० पलाश+छ—ईय] (वृक्ष) जिसमें पत्ते लगे हों। पत्तोंवाला।
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पलास  : पुं० [सं० पलाश] १. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसमें गहरे लाल रंग के अर्द्धचंद्राकार फूल लगते हैं, इसके सूखे लचीले पत्तों के दोने, पत्तलें, बीड़ियाँ आदि और रेशों से रस्सियाँ, दरियाँ आदि बनाई जाती हैं। इसकी फलियाँ औषध के काम आती हैं। टेसू। ढाक। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. गिद्ध की जाति का एक मांसाहारी पक्षी।
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पलास  : पुं० [सं० पलाश] १. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसमें गहरे लाल रंग के अर्द्धचंद्राकार फूल लगते हैं, इसके सूखे लचीले पत्तों के दोने, पत्तलें, बीड़ियाँ आदि और रेशों से रस्सियाँ, दरियाँ आदि बनाई जाती हैं। इसकी फलियाँ औषध के काम आती हैं। टेसू। ढाक। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. गिद्ध की जाति का एक मांसाहारी पक्षी।
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पलास पापड़ा  : पुं० [हिं० पलास+पापड़ा] [स्त्री० अल्पा० पलास पपड़ी] पलास की फलियाँ जिसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है।
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पलास पापड़ा  : पुं० [हिं० पलास+पापड़ा] [स्त्री० अल्पा० पलास पपड़ी] पलास की फलियाँ जिसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है।
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पलासना  : स० [देश०] नये बनाये हुए जूतों में फालतू बढ़े हुए चमड़े के अंशों को काटना और इस प्रकार जूता सुडौल बनाना। (मोची)
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पलासना  : स० [देश०] नये बनाये हुए जूतों में फालतू बढ़े हुए चमड़े के अंशों को काटना और इस प्रकार जूता सुडौल बनाना। (मोची)
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पलिक  : वि० [सं० पल+ठन्—इक] १. पल-संबंधी। २. जो तौल में एक पल हो।
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पलिक  : वि० [सं० पल+ठन्—इक] १. पल-संबंधी। २. जो तौल में एक पल हो।
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पलिका  : पुं०=पलका। स्त्री० [?] एक तरह का ऊनी कालीन। पुं०=पलका (पलंग)।
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पलिका  : पुं०=पलका। स्त्री० [?] एक तरह का ऊनी कालीन। पुं०=पलका (पलंग)।
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पलिक्नी  : स्त्री० [सं० पलित+क्न, ङीप्] १. वह बूढ़ी स्त्री जिसके बाल पक गये हों। सफेद या पके हुए बालोंवाली स्त्री। २. ऐसी गौ जो पहली बार गाभिन हुई हो। बाल-गर्भिणी।
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पलिक्नी  : स्त्री० [सं० पलित+क्न, ङीप्] १. वह बूढ़ी स्त्री जिसके बाल पक गये हों। सफेद या पके हुए बालोंवाली स्त्री। २. ऐसी गौ जो पहली बार गाभिन हुई हो। बाल-गर्भिणी।
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पलिघ  : स्त्री० [सं०=परिघ, लत्व] १. काँच का घड़ा। कलाबा। २. उक्त के आधार पर, शीशे आदि की वह बोतल जो चमड़े, टीन आदि से मढ़ी रहती है तथा जिसमें यात्रा के समय लोग पानी, शराब आदि रखकर चलते हैं। (थर्मस) ३. घड़ा। मटका। ४. चहारदीवारी। प्राचीर। ५. गाय बाँधने का घर। गो-गृह। ६. फाटक। ६. अर्गल। अगरी।
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पलिघ  : स्त्री० [सं०=परिघ, लत्व] १. काँच का घड़ा। कलाबा। २. उक्त के आधार पर, शीशे आदि की वह बोतल जो चमड़े, टीन आदि से मढ़ी रहती है तथा जिसमें यात्रा के समय लोग पानी, शराब आदि रखकर चलते हैं। (थर्मस) ३. घड़ा। मटका। ४. चहारदीवारी। प्राचीर। ५. गाय बाँधने का घर। गो-गृह। ६. फाटक। ६. अर्गल। अगरी।
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पलिंजी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जिसके दाने पक्षी तथा निर्धन लोग खाते हैं।
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पलिंजी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जिसके दाने पक्षी तथा निर्धन लोग खाते हैं।
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पलित  : वि० [सं० √पल्+क्त] [स्त्री० पलिता] १. वृद्ध। बुड्ढा। २. पका हुआ या सफेद (बाल)। पुं० १. सिर के बालों का पकना या सफेद होना। २. असमय में बाल पकने का एक रोग। ३. गरमी। ताप। ४. छरीला नामक वनस्पति। ५. कीचड़। ६. गुग्गल। ६. मिर्च।
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पलित  : वि० [सं० √पल्+क्त] [स्त्री० पलिता] १. वृद्ध। बुड्ढा। २. पका हुआ या सफेद (बाल)। पुं० १. सिर के बालों का पकना या सफेद होना। २. असमय में बाल पकने का एक रोग। ३. गरमी। ताप। ४. छरीला नामक वनस्पति। ५. कीचड़। ६. गुग्गल। ६. मिर्च।
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पलितंकरण  : वि० [सं० पलित+च्वि, √कृ (करना)+ ख्युन्—अन, मुम्] (बाल आदि) पकाने या सफेद करनेवाला।
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पलितंकरण  : वि० [सं० पलित+च्वि, √कृ (करना)+ ख्युन्—अन, मुम्] (बाल आदि) पकाने या सफेद करनेवाला।
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पलिती (तिन्)  : पुं० [सं० पलित+इनि] पलित रोग से पीड़ित व्यक्ति। वह जिसके बाल पक गये हों।
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पलिती (तिन्)  : पुं० [सं० पलित+इनि] पलित रोग से पीड़ित व्यक्ति। वह जिसके बाल पक गये हों।
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पलिया  : पुं० [देश०] एक रोग जिसमें पशुओं का गला सूज आता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलिया  : पुं० [देश०] एक रोग जिसमें पशुओं का गला सूज आता है।
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पलिहर  : पुं० [सं० परिहर=छोड़ देना] ऐसा खेत जिसमें भदईं और अगहनी फसलों की बोआई न की गई हो और इस प्रकार उन्हें परती छोड़ दिया गया हो। ऐसे खेत में चैती फसल की बोआई होती है।
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पलिहर  : पुं० [सं० परिहर=छोड़ देना] ऐसा खेत जिसमें भदईं और अगहनी फसलों की बोआई न की गई हो और इस प्रकार उन्हें परती छोड़ दिया गया हो। ऐसे खेत में चैती फसल की बोआई होती है।
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पली  : स्त्री० [सं० पलिघ] १. तेल नापने की एक तरह की एक छोटी गहरी कटोरी। मुहा०—पली पली जोड़ना=थोड़ा-थोड़ा करके संगृहीत करना। २. उक्त में भरे हुए तेल या किसी और पदार्थ की मात्रा।
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पली  : स्त्री० [सं० पलिघ] १. तेल नापने की एक तरह की एक छोटी गहरी कटोरी। मुहा०—पली पली जोड़ना=थोड़ा-थोड़ा करके संगृहीत करना। २. उक्त में भरे हुए तेल या किसी और पदार्थ की मात्रा।
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पलीत  : वि०, पुं०=पलीद।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलीत  : वि०, पुं०=पलीद।
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पलीता  : पुं० [फा० फलीतः या फलीता (अशुद्ध किंतु उर्दू में प्रचलित रूप)] [स्त्री० अल्पा० पलीती] १. चिराग की बत्ती। २. बत्ती के आकार का बारूद लगा हुआ एक छोटा डोरा जो पटाखों आदि में लगा रहता है, और जिसके सुलगाये जाने पर पटाखा चलता है। मुहा०—मलीता लगाना=ऐसी बात कहना जिससे लोग परस्पर झगड़ने या लड़ने-भिड़ने लग जायँ। ३. नारियल, वट आदि की छाल या रेशों को कूट और बटकर बनाई हुई वह बत्ती जिससे बंदूक या तोप के रंजक में आग लगाई जाती है। क्रि० प्र०—दागना।—देना।—लगाना। मुहा०—पलीता चटाना=तोप या बंदूक में उक्त प्रकार का पलीता रखकर जलाना। ४. बत्ती के आकार में लपेटा हुआ वह कागज जिस पर कोई मंत्र लिखा हो। यह प्रायः भूत-प्रेत आदि की बाधा दूर करने के लिए टोने के रूप में जलाया जाता है। क्रि० प्र०—जलाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलीता  : पुं० [फा० फलीतः या फलीता (अशुद्ध किंतु उर्दू में प्रचलित रूप)] [स्त्री० अल्पा० पलीती] १. चिराग की बत्ती। २. बत्ती के आकार का बारूद लगा हुआ एक छोटा डोरा जो पटाखों आदि में लगा रहता है, और जिसके सुलगाये जाने पर पटाखा चलता है। मुहा०—मलीता लगाना=ऐसी बात कहना जिससे लोग परस्पर झगड़ने या लड़ने-भिड़ने लग जायँ। ३. नारियल, वट आदि की छाल या रेशों को कूट और बटकर बनाई हुई वह बत्ती जिससे बंदूक या तोप के रंजक में आग लगाई जाती है। क्रि० प्र०—दागना।—देना।—लगाना। मुहा०—पलीता चटाना=तोप या बंदूक में उक्त प्रकार का पलीता रखकर जलाना। ४. बत्ती के आकार में लपेटा हुआ वह कागज जिस पर कोई मंत्र लिखा हो। यह प्रायः भूत-प्रेत आदि की बाधा दूर करने के लिए टोने के रूप में जलाया जाता है। क्रि० प्र०—जलाना।
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पलीती  : स्त्री० [हिं० पलीता] छोटा पलीता।
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पलीती  : स्त्री० [हिं० पलीता] छोटा पलीता।
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पलीद  : वि० [फा० मि० सं० प्रेत] [भाव० पलीदी] १. अपवित्र। अशुचि। २. गंदा। ३. घृणास्पद। ४. दुष्ट। नीच। ५. बहुत ही घृणित आचरण तथा विचारवाला। पुं० प्रेत। भूत।
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पलीद  : वि० [फा० मि० सं० प्रेत] [भाव० पलीदी] १. अपवित्र। अशुचि। २. गंदा। ३. घृणास्पद। ४. दुष्ट। नीच। ५. बहुत ही घृणित आचरण तथा विचारवाला। पुं० प्रेत। भूत।
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पलीहा (हन्)  : स्त्री० [सं० √प्लिह्+कनिन्, नि-दीर्घ] १. पेट के अंदर का तिल्ली नामक अंग जो पेट के ऊपरी बाएँ भाग में होता है और जो शरीर का रक्त बनाने में सहायक होता है। (स्प्लीन) २. उक्त अंग के सूजकर बढ़ने का रोग।
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पलुआ  : पुं० [देश०] सन की जाति का एक पौधा। वि० [हिं० पालना] पाला हुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुआ  : पुं० [देश०] सन की जाति का एक पौधा। वि० [हिं० पालना] पाला हुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलुटाना  : स० [हिं० पलोटना का प्रे०] (पैर) पलोटने का काम दूसरे से कराना। (पैर) दबवाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुटाना  : स० [हिं० पलोटना का प्रे०] (पैर) पलोटने का काम दूसरे से कराना। (पैर) दबवाना।
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पलुवाँ  : पुं०, वि०=पलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुवाँ  : पुं०, वि०=पलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुहना  : अ० [सं० पल्लव] १. पौधे, वृक्ष आदि का पल्लवित होना। २. हरा होना। ३. व्यक्ति के संबंध में फूलना-फलना और उन्नति करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुहना  : अ० [सं० पल्लव] १. पौधे, वृक्ष आदि का पल्लवित होना। २. हरा होना। ३. व्यक्ति के संबंध में फूलना-फलना और उन्नति करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुहाना  : स० [हिं० पलुहना] पल्लवित करना। अ०= पलुहना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलुहाना  : स० [हिं० पलुहना] पल्लवित करना। अ०= पलुहना।
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पलूचना  : स०=पलना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलूचना  : स०=पलना।
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पलेट  : स्त्री० [अं० प्लेट] १. तश्तरी। रकाबी। २. कपड़े की वह लंबी पट्टी जो प्रायः जनाने और बच्चों के पहनने के कपड़ों में सुन्दरता लाने या कुछ विशिष्ट अंशों को कड़ा करने के लिए लगाई जाती है। पट्टी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलेट  : स्त्री० [अं० प्लेट] १. तश्तरी। रकाबी। २. कपड़े की वह लंबी पट्टी जो प्रायः जनाने और बच्चों के पहनने के कपड़ों में सुन्दरता लाने या कुछ विशिष्ट अंशों को कड़ा करने के लिए लगाई जाती है। पट्टी।
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पलेटन  : पुं० [अं० प्लेटेन] छापे के यंत्र में लोहे का वह चिपटा या वर्तुलाकार भाग जिसके दबाव से कागज आदि पर अक्षर छपते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलेटन  : पुं० [अं० प्लेटेन] छापे के यंत्र में लोहे का वह चिपटा या वर्तुलाकार भाग जिसके दबाव से कागज आदि पर अक्षर छपते हैं।
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पलेटना  : स०=लपेटना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलेटना  : स०=लपेटना।
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पलेड़ना  : सं० [सं० प्ररेण] घक्का देना। ढकेलना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलेड़ना  : सं० [सं० प्ररेण] घक्का देना। ढकेलना।
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पलेथन  : पुं० [सं० परिस्तरण=लपेटना] १. वह सूखा आटा जिसे रोटी बेलने के समय पाटे या बेलन पर इसलिए बिखेरते हैं कि गीला आटा हाथ में या बेलन आदि में चिपकने न पावे। परथन। क्रि० प्र०—लगाना। मुहा०—(किसी का) पलेथन निकालना=(क) बहुत अधिक मार-पीटकर अधमरा करना। (ख) बहुत अधिक परेशान करना। २. किसी बड़े व्यय या हानि के बाद तथा उसके फलस्वरूप होनेवाला अतिरिक्त व्यय या हानि के बाद तथा उसके फलस्वरूप होनेवाला अतिरिक्त व्यय। जैसे—तुम्हारे फेर में पचासों रुपयों की हानि तो हुई ही, आने-जाने में पाँच रुपया और पलेथन लग गया। क्रि० प्र०—लगना।
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पलेथन  : पुं० [सं० परिस्तरण=लपेटना] १. वह सूखा आटा जिसे रोटी बेलने के समय पाटे या बेलन पर इसलिए बिखेरते हैं कि गीला आटा हाथ में या बेलन आदि में चिपकने न पावे। परथन। क्रि० प्र०—लगाना। मुहा०—(किसी का) पलेथन निकालना=(क) बहुत अधिक मार-पीटकर अधमरा करना। (ख) बहुत अधिक परेशान करना। २. किसी बड़े व्यय या हानि के बाद तथा उसके फलस्वरूप होनेवाला अतिरिक्त व्यय या हानि के बाद तथा उसके फलस्वरूप होनेवाला अतिरिक्त व्यय। जैसे—तुम्हारे फेर में पचासों रुपयों की हानि तो हुई ही, आने-जाने में पाँच रुपया और पलेथन लग गया। क्रि० प्र०—लगना।
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पलेनर  : पुं० [अं० प्लेन] काठ का वह छोटा चिपटा टुकड़ा जिससे दबाकर किसी चीज का ऊपरी स्तर चौरस या बराबर किया जाता है। जैसे—छापेखाने में सीसे के अक्षर बराबर करने या दीवार के पलस्तर पर फेरने का पलेनर।
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पलेनर  : पुं० [अं० प्लेन] काठ का वह छोटा चिपटा टुकड़ा जिससे दबाकर किसी चीज का ऊपरी स्तर चौरस या बराबर किया जाता है। जैसे—छापेखाने में सीसे के अक्षर बराबर करने या दीवार के पलस्तर पर फेरने का पलेनर।
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पलेना  : सं० [?] बोने के पूर्व खेत सींचना। पुं०=पलेनर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलेना  : सं० [?] बोने के पूर्व खेत सींचना। पुं०=पलेनर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलेव  : पुं० [देश०] १. पलिहर खेत में चैती की फसल बोने से पहले की जानेवाली सिंचाई। २. जूस। रसा। शोरबा।
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पलेव  : पुं० [देश०] १. पलिहर खेत में चैती की फसल बोने से पहले की जानेवाली सिंचाई। २. जूस। रसा। शोरबा।
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पलैंहड़ा  : पुं० [हिं० पानी+आला=स्थान] १. पानी के घड़े आदि रखने का चबूतरा या चौखटा। २. पानी का घड़ा या मटका।
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पलैंहड़ा  : पुं० [हिं० पानी+आला=स्थान] १. पानी के घड़े आदि रखने का चबूतरा या चौखटा। २. पानी का घड़ा या मटका।
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पलोटना  : स० [सं० प्रलोठन] १. सेवा-भाव से किसी के पैर दबाना। २. सेवा करना। अ०=लोटना। अ०= पलटना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलोटना  : स० [सं० प्रलोठन] १. सेवा-भाव से किसी के पैर दबाना। २. सेवा करना। अ०=लोटना। अ०= पलटना।
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पलोथन  : पुं०=पलेथन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलोथन  : पुं०=पलेथन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलोवना  : स० [सं० प्रलोठन] १. सेवा-भाव से किसी के पैर दबाना। २. किसी को प्रसन्न करने के लिए मीठी-मीठी बातें कहना या तरह तरह के उपाय करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलोवना  : स० [सं० प्रलोठन] १. सेवा-भाव से किसी के पैर दबाना। २. किसी को प्रसन्न करने के लिए मीठी-मीठी बातें कहना या तरह तरह के उपाय करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलोसना  : स० [सं० स्पर्श ? हिं० परसना] १. धोना। २. अपना काम निकालने के लिए मीठी-मीठी बातें करके किसी को अपने अनुकूल करना।
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पलोसना  : स० [सं० स्पर्श ? हिं० परसना] १. धोना। २. अपना काम निकालने के लिए मीठी-मीठी बातें करके किसी को अपने अनुकूल करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलौ  : पुं०=पल्लव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलौ  : पुं०=पल्लव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलौठा  : वि०=पहलौठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पलौठा  : वि०=पहलौठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्टन  : स्त्री०=पलटन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्टन  : स्त्री०=पलटन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्टा  : पुं०=पलटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्टा  : पुं०=पलटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्थी  : स्त्री०=पलथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्थी  : स्त्री०=पलथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्यंक  : पुं०=पर्यंक (पलंग)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्यंक  : पुं०=पर्यंक (पलंग)।
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पल्ययन  : पुं० [सं० परि√अय् (गति)+ल्युट्—अन, लत्व] घोड़े के पीठ पर बिछाई जानेवाली गद्दी। पलान।
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पल्ययन  : पुं० [सं० परि√अय् (गति)+ल्युट्—अन, लत्व] घोड़े के पीठ पर बिछाई जानेवाली गद्दी। पलान।
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पल्ल  : पुं० [सं० पाद्√ला (लेना)+क, पद्—आदेश] १. वह आगार जिसमें अन्न संचित करके रखा जाता है। बखार २. फल आदि पकाने के लिए विशिष्ट प्रकार से उन्हें रखने का ढंग या युक्ति। पाल।
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पल्ल  : पुं० [सं० पाद्√ला (लेना)+क, पद्—आदेश] १. वह आगार जिसमें अन्न संचित करके रखा जाता है। बखार २. फल आदि पकाने के लिए विशिष्ट प्रकार से उन्हें रखने का ढंग या युक्ति। पाल।
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पल्लड़  : पुं० [हिं० पल्ला ?] झुंड। समूह। उदा०—पूर्व की ओर से अंधकार के पल्लड़ के पल्लड़ नदी के स्वर्णरेखा पर मानों आवरण डालनेवाले थे।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पल्लड़  : पुं० [हिं० पल्ला ?] झुंड। समूह। उदा०—पूर्व की ओर से अंधकार के पल्लड़ के पल्लड़ नदी के स्वर्णरेखा पर मानों आवरण डालनेवाले थे।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+क्विप्,√लू+अप्, पल्—लव, कर्म० स०] १. पौधे, वृक्ष आदि का कोमल, छोटा तथा नया पत्ता पत्ते की तरह की आगे की ओर निकली हुई। चिपटी गोलाकार चीज। जैसे—कर पल्लव। ३. गले में पहनने का एक तरह का कोई आभूषण जो पत्ते के आकार का होता है। ४. एक तरह का कंगन। ५. नृत्य में हाथ का एक विशिष्ट प्रकार की मुद्रा। ६. बल। शक्ति। ७. चंचलता। ८. आल का रंग। ९. पहने जानेवाले वस्त्र का पल्ला। १॰. विस्तार। ११. पल्लव देश। १२. पल्लव देश का निवासी। १३. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसका राज्य किसी समय उड़ीसा से तुंगभद्रा नदी तक था। वराहमिहिर के अनुसार इस वंश के लोग पहिले दक्षिण-पश्चिम बसते थे। अशोक के समय में गुजरात में इनका राज्य था।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+वल्] छोटा जलाशय।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+क्विप्,√लू+अप्, पल्—लव, कर्म० स०] १. पौधे, वृक्ष आदि का कोमल, छोटा तथा नया पत्ता पत्ते की तरह की आगे की ओर निकली हुई। चिपटी गोलाकार चीज। जैसे—कर पल्लव। ३. गले में पहनने का एक तरह का कोई आभूषण जो पत्ते के आकार का होता है। ४. एक तरह का कंगन। ५. नृत्य में हाथ का एक विशिष्ट प्रकार की मुद्रा। ६. बल। शक्ति। ७. चंचलता। ८. आल का रंग। ९. पहने जानेवाले वस्त्र का पल्ला। १॰. विस्तार। ११. पल्लव देश। १२. पल्लव देश का निवासी। १३. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसका राज्य किसी समय उड़ीसा से तुंगभद्रा नदी तक था। वराहमिहिर के अनुसार इस वंश के लोग पहिले दक्षिण-पश्चिम बसते थे। अशोक के समय में गुजरात में इनका राज्य था।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+वल्] छोटा जलाशय।
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पल्लव ग्राहिता  : स्त्री० [सं० पल्लवग्राहिन्+तल्+टाप्] पल्लवग्राही होने की अवस्था या भाव।
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पल्लव ग्राहिता  : स्त्री० [सं० पल्लवग्राहिन्+तल्+टाप्] पल्लवग्राही होने की अवस्था या भाव।
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पल्लव-द्रु  : पुं० [सं० मध्य० स०] अशोक (वृक्ष)।
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पल्लव-द्रु  : पुं० [सं० मध्य० स०] अशोक (वृक्ष)।
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पल्लवक  : पुं० [सं० पल्लव√कै (चमकना)+क] १. वेश्यागामी २. किसी वेश्या का प्रेमी। ३. अशोक (वृक्ष)। ४. नया हरा पत्ता। पल्लव। ५. एक तरह की मछली।
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पल्लवक  : पुं० [सं० पल्लव√कै (चमकना)+क] १. वेश्यागामी २. किसी वेश्या का प्रेमी। ३. अशोक (वृक्ष)। ४. नया हरा पत्ता। पल्लव। ५. एक तरह की मछली।
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पल्लवग्राही (हिन्)  : पुं० [सं० पल्लव√ग्रह् (ग्रहण करना)+णिनि] वह जिसने किसी विषय की ऊपरी या बाहरी छोटी-मोटी बातों का ही सामान्य ज्ञान प्राप्त किया हो। किसी विषय को स्थूल रूप से जाननेवाला।
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पल्लवग्राही (हिन्)  : पुं० [सं० पल्लव√ग्रह् (ग्रहण करना)+णिनि] वह जिसने किसी विषय की ऊपरी या बाहरी छोटी-मोटी बातों का ही सामान्य ज्ञान प्राप्त किया हो। किसी विषय को स्थूल रूप से जाननेवाला।
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पल्लवना  : अ० [सं० पल्लव+हिं० ना (प्रत्य०)] १. पौधों, वृक्षों आदि में नये पत्ते निकलना। पल्लवित होना। २. व्यक्तियों का फलना-फूलना और उन्नत अवस्था का प्राप्त होना। स० पल्लवित करना। पनपाना।
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पल्लवना  : अ० [सं० पल्लव+हिं० ना (प्रत्य०)] १. पौधों, वृक्षों आदि में नये पत्ते निकलना। पल्लवित होना। २. व्यक्तियों का फलना-फूलना और उन्नत अवस्था का प्राप्त होना। स० पल्लवित करना। पनपाना।
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पल्लवाद  : पुं० [सं० पल्लव√अद् (खाना)+अण्] हिरन।
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पल्लवाद  : पुं० [सं० पल्लव√अद् (खाना)+अण्] हिरन।
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पल्लवाधार  : पुं० [सं० पल्लव-आधार, ष० त०] डाली या शाखा जिसमें पत्ते लगते हैं।
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पल्लवाधार  : पुं० [सं० पल्लव-आधार, ष० त०] डाली या शाखा जिसमें पत्ते लगते हैं।
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पल्लवास्त्र  : पुं० [सं० पल्लव-अस्त्र, ब० स०] कामदेव।
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पल्लवास्त्र  : पुं० [सं० पल्लव-अस्त्र, ब० स०] कामदेव।
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पल्लविक  : पुं०=पल्लवक।
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पल्लविक  : पुं०=पल्लवक।
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पल्लवित  : भू० कृ० [सं० पल्लव+इतच्] १. (पेड़ों या पौधा) जो नये नये पत्तों से युक्त हुआ हो अथवा जिसमें नये-नये पत्ते निकल रहे हों। २. हरा-भरा तथा लहलहाता हुआ। ३. जिसे नई-नई चीजों, रचनाओं आदि से युक्त किया गया हो और इस प्रकार उसका अभिवर्द्धन तथा विकास हुआ हो। जैसे—लेखक अपनी रचनाओं से साहित्य को पल्लवित करते हैं। ४. लाख के रंग में रंगा हुआ। ५. जिसे रोमांच हुआ हो। रोमांचित।
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पल्लवित  : भू० कृ० [सं० पल्लव+इतच्] १. (पेड़ों या पौधा) जो नये नये पत्तों से युक्त हुआ हो अथवा जिसमें नये-नये पत्ते निकल रहे हों। २. हरा-भरा तथा लहलहाता हुआ। ३. जिसे नई-नई चीजों, रचनाओं आदि से युक्त किया गया हो और इस प्रकार उसका अभिवर्द्धन तथा विकास हुआ हो। जैसे—लेखक अपनी रचनाओं से साहित्य को पल्लवित करते हैं। ४. लाख के रंग में रंगा हुआ। ५. जिसे रोमांच हुआ हो। रोमांचित।
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पल्लवी (विन्)  : वि० [सं० पल्ल+इनि] जिसमें पल्लव हों। पत्तों से युक्त। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पल्लवी (विन्)  : वि० [सं० पल्ल+इनि] जिसमें पल्लव हों। पत्तों से युक्त। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पल्ला  : पुं० [सं० पल्लव=कपड़े का छोर] १. ओढ़े या पहने हुए कपड़े का अंतिम विस्तार। आँचल। छोर। जैसे—धोती या चादर का पल्ला। मुहा०—(किसी से) पल्ला छूटना=पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जैसे—चलो, किसी तरह इस दुष्ट से पल्ला छूटा। पल्ला छुड़ाना=बचाव या रक्षा करने के लिए किसी की पकड़ या बंधन से निकलना। जैसे—तुम तो पल्ला छुड़ाकर भागे, पर पकड़ गए हम। (किसी का) पल्ला पकड़ना=रक्षा, सहायता, स्वार्थ-साधन आदि के लिए किसी को पकड़ना या उसके साथ होना। जैसे—उसने एक भले आदमी का पल्ला पकड़ लिया था; इसीलिए उसकी जिंदगी अच्छी तरह बीत गई। (किसी का) पल्ला पकड़ना=किसी को किसी की अधीनता, संरक्षण आदि में रखना। (किसी के आगे या सामने) पल्ला पसारना या फैलाना=अनुग्रह, भिक्षा आदि के रूप में किसी से प्रार्थी होना। पल्ले पड़ना=(प्रायः तुच्छ, हेय या भार स्वरूप वस्तु का) प्राप्त होना या मिलना। जैसे—यह बदनामी हमारे पल्ले पड़ी। (लड़की का स्त्री का किसी के) पल्ले बँधना=विवाह आदि के द्वारा किसी की पत्नी बनकर उसके साथ रहना या होना, किसी के जिम्मे होना। (अपने) पल्ले बाँधना=अधिकार संरक्षण आदि में लेना। (किसी के) पल्ले बाँधना= (क) किसी के अधिकार, संरक्षण आदि में देना। जिम्मे करना। सौंपना। (ख) लड़कियों, स्त्रियों आदि के संबंध में, किसी के साथ विवाह कर देना। (बात को) पल्ले बाँधना=बहुत अच्छी तरह से उसे स्मरण रखना तथा उसके अनुसार आचरण करना। २. स्त्रियों की ओढ़नी चादर, साड़ी आदि का वह अंश जो उनके सिर पर रहता है और जिसे खींचकर वे घूँघट करती हैं। मुहा०—(किसी से) पल्ला करना=पर-पुरुष के सामने स्त्री का घूंघट करना। पल्ला लेना=मुँह पर घूँघट करके और सिर झुकाकर किसी मृतक के शोक में रोना। ३. अनाद आदि बाँधने का कपड़ा या चादर। ४. अपेक्षया अधिक दूरी पर या विस्तार। जैसे—(क) कोसों के पल्ले तक मैदान ही मैदान दिखाई देता था। (ख) उनका मकान यहाँ से मील भर के पल्ले पर है। पुं० [फा० पल्लः] १. तराजू की डंडी के दोनों सिरों पर रस्सियों, श्रृंखलाओं आदि की सहायता से लटकनेवाली दोनों आधारों या पात्रों में से हर एक जिसमें से एक पर बटखरे रखे जाते हैं और दूसरी पर तौली जानेवाली वस्तु। २. कुछ विशिष्ट वस्तुओं के दो विभिन्न परन्तु प्रायः समान आकार- प्रकारवाले या खंडों में से हर एक। जैसे—(क) दरवाजे का पल्ला। (ख) कैंची का पल्ला। (ग) दुपलिया टोपी का पल्ला। ३. बराबर के दो प्रतियोगी या विरोधी पक्षों में से हर एक। मुहा०—पल्ला दबना=पक्ष कमजोर या हलका पड़ना। पल्ला भारी होना=पक्ष प्रबल या बलवान होना। ४. ओर। तरफ। दिशा। ५. पहल। पार्श्व। पुं० [सं० पल?] तीन मन का बोझ। पद—पल्लेदार। (दे०) वि०=परला (उस ओर का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्ला  : पुं० [सं० पल्लव=कपड़े का छोर] १. ओढ़े या पहने हुए कपड़े का अंतिम विस्तार। आँचल। छोर। जैसे—धोती या चादर का पल्ला। मुहा०—(किसी से) पल्ला छूटना=पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जैसे—चलो, किसी तरह इस दुष्ट से पल्ला छूटा। पल्ला छुड़ाना=बचाव या रक्षा करने के लिए किसी की पकड़ या बंधन से निकलना। जैसे—तुम तो पल्ला छुड़ाकर भागे, पर पकड़ गए हम। (किसी का) पल्ला पकड़ना=रक्षा, सहायता, स्वार्थ-साधन आदि के लिए किसी को पकड़ना या उसके साथ होना। जैसे—उसने एक भले आदमी का पल्ला पकड़ लिया था; इसीलिए उसकी जिंदगी अच्छी तरह बीत गई। (किसी का) पल्ला पकड़ना=किसी को किसी की अधीनता, संरक्षण आदि में रखना। (किसी के आगे या सामने) पल्ला पसारना या फैलाना=अनुग्रह, भिक्षा आदि के रूप में किसी से प्रार्थी होना। पल्ले पड़ना=(प्रायः तुच्छ, हेय या भार स्वरूप वस्तु का) प्राप्त होना या मिलना। जैसे—यह बदनामी हमारे पल्ले पड़ी। (लड़की का स्त्री का किसी के) पल्ले बँधना=विवाह आदि के द्वारा किसी की पत्नी बनकर उसके साथ रहना या होना, किसी के जिम्मे होना। (अपने) पल्ले बाँधना=अधिकार संरक्षण आदि में लेना। (किसी के) पल्ले बाँधना= (क) किसी के अधिकार, संरक्षण आदि में देना। जिम्मे करना। सौंपना। (ख) लड़कियों, स्त्रियों आदि के संबंध में, किसी के साथ विवाह कर देना। (बात को) पल्ले बाँधना=बहुत अच्छी तरह से उसे स्मरण रखना तथा उसके अनुसार आचरण करना। २. स्त्रियों की ओढ़नी चादर, साड़ी आदि का वह अंश जो उनके सिर पर रहता है और जिसे खींचकर वे घूँघट करती हैं। मुहा०—(किसी से) पल्ला करना=पर-पुरुष के सामने स्त्री का घूंघट करना। पल्ला लेना=मुँह पर घूँघट करके और सिर झुकाकर किसी मृतक के शोक में रोना। ३. अनाद आदि बाँधने का कपड़ा या चादर। ४. अपेक्षया अधिक दूरी पर या विस्तार। जैसे—(क) कोसों के पल्ले तक मैदान ही मैदान दिखाई देता था। (ख) उनका मकान यहाँ से मील भर के पल्ले पर है। पुं० [फा० पल्लः] १. तराजू की डंडी के दोनों सिरों पर रस्सियों, श्रृंखलाओं आदि की सहायता से लटकनेवाली दोनों आधारों या पात्रों में से हर एक जिसमें से एक पर बटखरे रखे जाते हैं और दूसरी पर तौली जानेवाली वस्तु। २. कुछ विशिष्ट वस्तुओं के दो विभिन्न परन्तु प्रायः समान आकार- प्रकारवाले या खंडों में से हर एक। जैसे—(क) दरवाजे का पल्ला। (ख) कैंची का पल्ला। (ग) दुपलिया टोपी का पल्ला। ३. बराबर के दो प्रतियोगी या विरोधी पक्षों में से हर एक। मुहा०—पल्ला दबना=पक्ष कमजोर या हलका पड़ना। पल्ला भारी होना=पक्ष प्रबल या बलवान होना। ४. ओर। तरफ। दिशा। ५. पहल। पार्श्व। पुं० [सं० पल?] तीन मन का बोझ। पद—पल्लेदार। (दे०) वि०=परला (उस ओर का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्लि  : स्त्री०=पल्ली।
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पल्लि  : स्त्री०=पल्ली।
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पल्लिका  : स्त्री० [सं० पल्लि+कन+टाप्] छोटा गाँव। छोटी बस्ती।
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पल्लिका  : स्त्री० [सं० पल्लि+कन+टाप्] छोटा गाँव। छोटी बस्ती।
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पल्लिवाह  : पुं० [सं० पल्लि√वह् (ढोना)+अण्] लाल रंग की एक प्रकार की घास।
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पल्लिवाह  : पुं० [सं० पल्लि√वह् (ढोना)+अण्] लाल रंग की एक प्रकार की घास।
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पल्ली  : स्त्री० [सं० पल्लि+ङीष्] १. छोटा गाँव। पुरवा। खेड़ा। २. कुटी। झौंपड़ी। ३. छिपकली।
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पल्ली  : स्त्री० [सं० पल्लि+ङीष्] १. छोटा गाँव। पुरवा। खेड़ा। २. कुटी। झौंपड़ी। ३. छिपकली।
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पल्लू  : पुं० [हिं० पल्ला] १. आँचल। छोर। २. स्त्रियों का घूँघट। ३. चौड़ी गोट या पट्टी।
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पल्लू  : पुं० [हिं० पल्ला] १. आँचल। छोर। २. स्त्रियों का घूँघट। ३. चौड़ी गोट या पट्टी।
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पल्ले  : अव्य० [हिं० पल्ला] प्राप्ति, स्थिति आदि के विचार से अधिकार, वश या स्वत्व में। पास या हाथ में। जैसे—उसके पल्ले क्या रखा है! अर्थात् उसके पास कुछ भी नहीं है। पुं०=प्रलय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्ले  : अव्य० [हिं० पल्ला] प्राप्ति, स्थिति आदि के विचार से अधिकार, वश या स्वत्व में। पास या हाथ में। जैसे—उसके पल्ले क्या रखा है! अर्थात् उसके पास कुछ भी नहीं है। पुं०=प्रलय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्लेदार  : वि० [हिं० पल्ला+फा० दार] १. जिसमें पल्ले लगे हुए हों। २. (आवाज या स्वर) जो अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा, अधिक विस्तृत या अधिक जोरदार हो। पद—पल्लेदार आवाज=ऐसी ऊँची आवाज जो दूर तक पहुँचती हो। पुं० [हिं० पल्ला+फा० दार] [भाव० पल्लेदारी] १. वह जो गल्ले के बाजार में दूकानों पर अनाज तौलने का काम करता है। बया। २. अनाज ढोनेवाला मजदूर।
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पल्लेदार  : वि० [हिं० पल्ला+फा० दार] १. जिसमें पल्ले लगे हुए हों। २. (आवाज या स्वर) जो अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा, अधिक विस्तृत या अधिक जोरदार हो। पद—पल्लेदार आवाज=ऐसी ऊँची आवाज जो दूर तक पहुँचती हो। पुं० [हिं० पल्ला+फा० दार] [भाव० पल्लेदारी] १. वह जो गल्ले के बाजार में दूकानों पर अनाज तौलने का काम करता है। बया। २. अनाज ढोनेवाला मजदूर।
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पल्लेदारी  : स्त्री० [हिं० पल्लेदार+ई (प्रत्य०)] पल्लेदार का काम, पद, भाव या मजदूरी।
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पल्लेदारी  : स्त्री० [हिं० पल्लेदार+ई (प्रत्य०)] पल्लेदार का काम, पद, भाव या मजदूरी।
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पल्लौ  : पुं० १.=पल्लव। २.=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्लौ  : पुं० १.=पल्लव। २.=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्वलावास  : पुं० [सं० पल्वल-आवास, ब० स०] कछुआ।
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पल्वलावास  : पुं० [सं० पल्वल-आवास, ब० स०] कछुआ।
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पल्हवना  : अ० स०=पलुहना।
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पल्हवना  : अ० स०=पलुहना।
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