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पला  : स्त्री० [सं० पल] पल। निमिष। पुं० [हिं० ‘पली’ का पुं०] बड़ी पली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पला  : स्त्री० [सं० पल] पल। निमिष। पुं० [हिं० ‘पली’ का पुं०] बड़ी पली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलाँग  : स्त्री०=छलाँग (छलाँग)।
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पलांग  : पुं० [सं० पल-अंग, ब० स०] सूँस। शिंशुमार।
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पलाँग  : स्त्री०=छलाँग (छलाँग)।
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पलांग  : पुं० [सं० पल-अंग, ब० स०] सूँस। शिंशुमार।
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पलाग्नि  : पुं० [सं० पल-अग्नि, ष० त०] पित्त।
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पलाग्नि  : पुं० [सं० पल-अग्नि, ष० त०] पित्त।
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पलांडु  : पुं० [सं० पल-अण्ड, ष० त०, पलाण्ड+क्विप्+ कु] प्याज।
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पलांडु  : पुं० [सं० पल-अण्ड, ष० त०, पलाण्ड+क्विप्+ कु] प्याज।
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पलाण  : पुं०=पलान।
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पलाण  : पुं०=पलान।
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पलातक  : वि० [सं० पलायन] भगोड़ा। पुं० १. वह किसान जो अपना खेत छोड़कर भाग गया हो। २. वह जो अपना उत्तरदायित्व, कार्य, पद आदि छोड़कर भाग गया हो।
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पलातक  : वि० [सं० पलायन] भगोड़ा। पुं० १. वह किसान जो अपना खेत छोड़कर भाग गया हो। २. वह जो अपना उत्तरदायित्व, कार्य, पद आदि छोड़कर भाग गया हो।
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पलाद, पलादन  : पुं० [सं० पल√अद् (खाना)+अण्] [सं० पल-अदन, ब० स०] राक्षस।
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पलाद, पलादन  : पुं० [सं० पल√अद् (खाना)+अण्] [सं० पल-अदन, ब० स०] राक्षस।
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पलान  : पुं० [फा० पालान] १. सवारी करने से पहले घोड़े, टट्टू आदि की पीठ पर डाला जानेवाला टाट या कोई और मोटा कपड़ा जिसे रस्सी आदि से कस दिया जाता है। २. काठी। जीन। पुं०=प्लान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलान  : पुं० [फा० पालान] १. सवारी करने से पहले घोड़े, टट्टू आदि की पीठ पर डाला जानेवाला टाट या कोई और मोटा कपड़ा जिसे रस्सी आदि से कस दिया जाता है। २. काठी। जीन। पुं०=प्लान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलानना  : सं० [हिं० पलान+ना (प्रत्य०)] १. घोड़े आदि पर पलान कसना या बाँधना। २. किसी पर चढ़ाई या धावा करने की तैयारी करना।
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पलानना  : सं० [हिं० पलान+ना (प्रत्य०)] १. घोड़े आदि पर पलान कसना या बाँधना। २. किसी पर चढ़ाई या धावा करने की तैयारी करना।
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पलाना  : अ० [सं० पलायन] पलायन करना। भागना। स० [हिं० पलान] घोड़े की पीठ पर काठी का पलान रखना।
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पलाना  : अ० [सं० पलायन] पलायन करना। भागना। स० [हिं० पलान] घोड़े की पीठ पर काठी का पलान रखना।
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पलानि  : स्त्री०=पलान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पलानी  : स्त्री० [हिं० पलान] १. पान के आकार का पैर के पंजों में पहनने का एक गहना। २. छप्पर। स्त्री०=पलाव।
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पलानी  : स्त्री० [हिं० पलान] १. पान के आकार का पैर के पंजों में पहनने का एक गहना। २. छप्पर। स्त्री०=पलाव।
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पलान्न  : पुं० [सं० पल-अन्न, मध्य० स०] वह पुलाव जिसमें मांस की बोटियाँ मिली हों।
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पलान्न  : पुं० [सं० पल-अन्न, मध्य० स०] वह पुलाव जिसमें मांस की बोटियाँ मिली हों।
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पलाप  : पुं० [सं० पल√आप् (प्राप्ति)+घञ्] हाथी का गंडस्थल। पुं० दे० ‘पगहा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलाप  : पुं० [सं० पल√आप् (प्राप्ति)+घञ्] हाथी का गंडस्थल। पुं० दे० ‘पगहा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पलायक  : पुं० [सं० परा√अय् (गति)+ण्वुल्—अक, लत्व] १. वह जो पकड़े जाने या दंडित होने के भय से भागकर कहीं चला गया या छिप गया हो। २. भागा हुआ वह व्यक्ति जिसे शासन पकड़ना चाहता हो। भगोड़ा। (एब्सकांडर) ३. वह जो वाद-विवाद, तर्क-वितर्क में बराबर पीछे हट जाता हो।
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पलायक  : पुं० [सं० परा√अय् (गति)+ण्वुल्—अक, लत्व] १. वह जो पकड़े जाने या दंडित होने के भय से भागकर कहीं चला गया या छिप गया हो। २. भागा हुआ वह व्यक्ति जिसे शासन पकड़ना चाहता हो। भगोड़ा। (एब्सकांडर) ३. वह जो वाद-विवाद, तर्क-वितर्क में बराबर पीछे हट जाता हो।
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पलायन  : पुं० [सं० परा√अय्+ल्युट्—अन, लत्व] १. भागने की क्रिया या भाव। भागना। २. आज-कल वैज्ञानिक क्षेत्रों में, यह तत्त्व कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वनस्पति अपने वर्तमान रूप से असंतुष्ट होकर प्राकृतिक रूप से अथवा स्वभावतः किसी न किसी प्रकार की उत्क्रान्ति या उन्नति अथवा विकास की ओर प्रवृत्त होती है। दार्शनिक दृष्टि से इसे सब प्रकार के बन्धनों और सीमाओं से मुक्त होकर अनंत और असीम ब्रह्म की ओर अग्रहसर होने की प्रवृत्ति कह सकते हैं। कला, साहित्य आदि के क्षेत्रों में प्राचीन के प्रति असंतोष और नवीन के प्रति उत्साह या उमंग की भावना इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप होती है।
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पलायन  : पुं० [सं० परा√अय्+ल्युट्—अन, लत्व] १. भागने की क्रिया या भाव। भागना। २. आज-कल वैज्ञानिक क्षेत्रों में, यह तत्त्व कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वनस्पति अपने वर्तमान रूप से असंतुष्ट होकर प्राकृतिक रूप से अथवा स्वभावतः किसी न किसी प्रकार की उत्क्रान्ति या उन्नति अथवा विकास की ओर प्रवृत्त होती है। दार्शनिक दृष्टि से इसे सब प्रकार के बन्धनों और सीमाओं से मुक्त होकर अनंत और असीम ब्रह्म की ओर अग्रहसर होने की प्रवृत्ति कह सकते हैं। कला, साहित्य आदि के क्षेत्रों में प्राचीन के प्रति असंतोष और नवीन के प्रति उत्साह या उमंग की भावना इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप होती है।
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पलायनवाद  : पुं० [ष० त०] आजकल का यह वाद या सिद्धांत कि संसार के सभी चीजें और बातें अपने प्रस्तुत रूप और स्थिति से विरक्त होकर किसी न किसी प्रकार की नवीनता और विशिष्टता की ओर प्रवृत्त होती रहती हैं। (एस्केपइज़्म) विशेष—इस वाद का मुख्य आशय यह है कि जो कुछ है, उससे ऊबकर हर एक चीज उसकी ओर बढ़ती है, जो नहीं है—पदास्ति से यन्नास्ति की ओर प्रवृत्त होती है। आधुनिक हिंदी क्षेत्र में छायावाद, निराशावाद आदि की जो प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं, वे भी इसी पलायनवाद के फल के रूप में मानी जाती हैं। कुछ लोग इसे एक प्रकार की विकृति भी मानते हैं।
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पलायनवाद  : पुं० [ष० त०] आजकल का यह वाद या सिद्धांत कि संसार के सभी चीजें और बातें अपने प्रस्तुत रूप और स्थिति से विरक्त होकर किसी न किसी प्रकार की नवीनता और विशिष्टता की ओर प्रवृत्त होती रहती हैं। (एस्केपइज़्म) विशेष—इस वाद का मुख्य आशय यह है कि जो कुछ है, उससे ऊबकर हर एक चीज उसकी ओर बढ़ती है, जो नहीं है—पदास्ति से यन्नास्ति की ओर प्रवृत्त होती है। आधुनिक हिंदी क्षेत्र में छायावाद, निराशावाद आदि की जो प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं, वे भी इसी पलायनवाद के फल के रूप में मानी जाती हैं। कुछ लोग इसे एक प्रकार की विकृति भी मानते हैं।
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पलायनवादी (दिन्)  : वि० [सं० पलायनवाद+इनि] पलायनवाद-संबंधी। पुं० वह जो पलायनवाद का सिद्धांत मानता हो या उसका अनुयायी हो।
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पलायनवादी (दिन्)  : वि० [सं० पलायनवाद+इनि] पलायनवाद-संबंधी। पुं० वह जो पलायनवाद का सिद्धांत मानता हो या उसका अनुयायी हो।
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पलायमान  : वि० [सं० परा√अय्+शानच्, मुक्, लत्व] जो भाग रहा हो। भागता हुआ।
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पलायमान  : वि० [सं० परा√अय्+शानच्, मुक्, लत्व] जो भाग रहा हो। भागता हुआ।
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पलायित  : भू० कृ० [सं० परा√अय्+क्त, लत्व] जो कहीं भागकर चला गया हो।
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पलायित  : भू० कृ० [सं० परा√अय्+क्त, लत्व] जो कहीं भागकर चला गया हो।
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पलायी (यिन्)  : पुं० [सं० परा√अय्+णिनि, लत्व] पलायक। (दे०)
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पलायी (यिन्)  : पुं० [सं० परा√अय्+णिनि, लत्व] पलायक। (दे०)
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पलाल  : पुं० [सं०√पल् (रक्षा)+कालन] १. धान का सूखा डंठल। पयाल। २. किसी पौधे या वनस्पति का सूखा डंठल।
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पलाल  : पुं० [सं०√पल् (रक्षा)+कालन] १. धान का सूखा डंठल। पयाल। २. किसी पौधे या वनस्पति का सूखा डंठल।
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पलाल-दोहद  : पुं० [ब० स०] आम का पेड़।
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पलाल-दोहद  : पुं० [ब० स०] आम का पेड़।
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पलाला  : स्त्री० [सं० पल+आ√ला (लेना)+क+टाप्] उन सात राक्षसियों में से एक जो छोटे बच्चों को रुग्ण कर देती है।
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पलाला  : स्त्री० [सं० पल+आ√ला (लेना)+क+टाप्] उन सात राक्षसियों में से एक जो छोटे बच्चों को रुग्ण कर देती है।
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पलालि, पलाली  : स्त्री० [सं० पल-आलि, ष० त०] गोश्त या मांस की ढेरी।
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पलालि, पलाली  : स्त्री० [सं० पल-आलि, ष० त०] गोश्त या मांस की ढेरी।
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पलाव  : पुं० [सं० पल√अव् (हिंसा)+अच्] वह काँटा जिससे मछलियाँ फँसाई जाती हैं। बंसी।
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पलाव  : पुं० [सं० पल√अव् (हिंसा)+अच्] वह काँटा जिससे मछलियाँ फँसाई जाती हैं। बंसी।
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पलाश  : पुं० [सं०√पल (गति)+क, पल√अश् (व्याप्ति) +अण्] १. ऊँचे स्थानों विशेषतः ऊसर तथा बालूका मिश्रित भूमि में होनेवाला एक पेड़ जिसमें बसंत काल में लाल रंग के फूल लगते हैं। इसके पत्तों की पत्तलें बनाई जाती हैं। ढाक। टेसू। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. पत्ता। पर्ण। ४. मगध देश का पुराना नाम। ५. हरा रंग। ६. कचूर। ६. शासन। ८. परिभाषण। ९. विदारी कंद। वि० [सं० पल√अश् (खाना)+अण्] १. मांसाहारी। २. कठोर-हृदय। निर्दय। पुं० १. राक्षस। २. एक प्रकार का मांसाहारी पक्षी।
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पलाश  : पुं० [सं०√पल (गति)+क, पल√अश् (व्याप्ति) +अण्] १. ऊँचे स्थानों विशेषतः ऊसर तथा बालूका मिश्रित भूमि में होनेवाला एक पेड़ जिसमें बसंत काल में लाल रंग के फूल लगते हैं। इसके पत्तों की पत्तलें बनाई जाती हैं। ढाक। टेसू। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. पत्ता। पर्ण। ४. मगध देश का पुराना नाम। ५. हरा रंग। ६. कचूर। ६. शासन। ८. परिभाषण। ९. विदारी कंद। वि० [सं० पल√अश् (खाना)+अण्] १. मांसाहारी। २. कठोर-हृदय। निर्दय। पुं० १. राक्षस। २. एक प्रकार का मांसाहारी पक्षी।
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पलाशक  : पुं० [सं० पलाश+कन्] १. पलास का पेड़ और फूल। ढाक। टेसू। २. कपूर। ३. लाख। लाक्षा।
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पलाशक  : पुं० [सं० पलाश+कन्] १. पलास का पेड़ और फूल। ढाक। टेसू। २. कपूर। ३. लाख। लाक्षा।
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पलाशगंधजा  : स्त्री० [सं० पलाश-गंध, ष० त०,√जन् (उत्पन्न होना)+ड+टाप्] एक प्रकार का वंशलोचन।
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पलाशगंधजा  : स्त्री० [सं० पलाश-गंध, ष० त०,√जन् (उत्पन्न होना)+ड+टाप्] एक प्रकार का वंशलोचन।
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पलाशच्छदन  : पुं० [सं० ब० स०] तमालपत्र।
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पलाशच्छदन  : पुं० [सं० ब० स०] तमालपत्र।
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पलाशतरुज  : पुं० [सं० पलाश-तरु, ष० त०,√जन्+ड] पलाश की कोंपल।
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पलाशतरुज  : पुं० [सं० पलाश-तरु, ष० त०,√जन्+ड] पलाश की कोंपल।
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पलाशन  : पुं० [सं० पल-अशन, ब० स०] मैना। सारिका।
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पलाशन  : पुं० [सं० पल-अशन, ब० स०] मैना। सारिका।
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पलाशपर्णी  : स्त्री० [सं० पलाश-पर्णी, ब० स०, ङीष्] अश्वगंधा। असगंध।
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पलाशपर्णी  : स्त्री० [सं० पलाश-पर्णी, ब० स०, ङीष्] अश्वगंधा। असगंध।
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पलाशाख्य  : पुं० [सं० पलाश-आख्या, ब० स०] नाड़ी हींग।
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पलाशाख्य  : पुं० [सं० पलाश-आख्या, ब० स०] नाड़ी हींग।
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पलाशांता  : स्त्री० [सं० पलाश-अंत, ब० स०, टाप्] बनकचूर।
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पलाशांता  : स्त्री० [सं० पलाश-अंत, ब० स०, टाप्] बनकचूर।
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पलाशिका  : स्त्री० [सं० पलाश+कन्+टाप्, इत्व] एक लता जो वृक्षों पर भी चढ़ती है।
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पलाशिका  : स्त्री० [सं० पलाश+कन्+टाप्, इत्व] एक लता जो वृक्षों पर भी चढ़ती है।
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पलाशी  : स्त्री० [सं० पलाश+ङीष्] १. क्षीरिका। खिरनी। २. कचूर। ३. कचरी। ४. लाख।
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पलाशी  : स्त्री० [सं० पलाश+ङीष्] १. क्षीरिका। खिरनी। २. कचूर। ३. कचरी। ४. लाख।
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पलाशी (शिन्)  : वि० [सं० पलाश+इनि] १. मांस खानेवाला। मांसाहारी। २. पत्तों से युक्त। जिसमें पत्ते हों। पुं० [पल√अश् (खाना)+णिनि] राक्षस।
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पलाशी (शिन्)  : वि० [सं० पलाश+इनि] १. मांस खानेवाला। मांसाहारी। २. पत्तों से युक्त। जिसमें पत्ते हों। पुं० [पल√अश् (खाना)+णिनि] राक्षस।
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पलाशीय  : वि० [सं० पलाश+छ—ईय] (वृक्ष) जिसमें पत्ते लगे हों। पत्तोंवाला।
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पलाशीय  : वि० [सं० पलाश+छ—ईय] (वृक्ष) जिसमें पत्ते लगे हों। पत्तोंवाला।
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पलास  : पुं० [सं० पलाश] १. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसमें गहरे लाल रंग के अर्द्धचंद्राकार फूल लगते हैं, इसके सूखे लचीले पत्तों के दोने, पत्तलें, बीड़ियाँ आदि और रेशों से रस्सियाँ, दरियाँ आदि बनाई जाती हैं। इसकी फलियाँ औषध के काम आती हैं। टेसू। ढाक। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. गिद्ध की जाति का एक मांसाहारी पक्षी।
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पलास  : पुं० [सं० पलाश] १. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसमें गहरे लाल रंग के अर्द्धचंद्राकार फूल लगते हैं, इसके सूखे लचीले पत्तों के दोने, पत्तलें, बीड़ियाँ आदि और रेशों से रस्सियाँ, दरियाँ आदि बनाई जाती हैं। इसकी फलियाँ औषध के काम आती हैं। टेसू। ढाक। २. उक्त वृक्ष का फूल। ३. गिद्ध की जाति का एक मांसाहारी पक्षी।
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पलास पापड़ा  : पुं० [हिं० पलास+पापड़ा] [स्त्री० अल्पा० पलास पपड़ी] पलास की फलियाँ जिसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है।
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पलास पापड़ा  : पुं० [हिं० पलास+पापड़ा] [स्त्री० अल्पा० पलास पपड़ी] पलास की फलियाँ जिसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है।
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पलासना  : स० [देश०] नये बनाये हुए जूतों में फालतू बढ़े हुए चमड़े के अंशों को काटना और इस प्रकार जूता सुडौल बनाना। (मोची)
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पलासना  : स० [देश०] नये बनाये हुए जूतों में फालतू बढ़े हुए चमड़े के अंशों को काटना और इस प्रकार जूता सुडौल बनाना। (मोची)
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