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पुल  : पुं० [फा०] १. खाइयों, नदी-नालों, रेललाइनों आदि के ऊपर आर-पार पाटकर बनाई हुई वह वास्तु रचना, जिस पर से होकर आदमी और गाड़ियाँ इधर से उधर आते—जाते हैं। सेतु। विशेष—मूलतः पुल प्रायः नदियाँ पार करने के लिए नावों की श्रृंखला से बनते थे। बाद में पीपों आदि के आधार पर अथवा बड़े-बड़े ऊँचे खंभों पर भी बनने लगे। २. लाक्षणिक रूप में, किसी चीज या बात का कोई बहुत लंबा क्रम या सिलसिला। झड़ी। ताँता। जैसे—किसी की तारीफ का पुल बाँधना; बातों का पुल बाँधना। क्रि० प्र०—बाँधना। मुहावरा—(किसी चीज या बात का) पुल टूटना=इतनी अधिकता या भरमार होना कि मानों उसकी राशि को रोक रखनेवाला बंधन टूट गया हो। जैसे—मेला देखने के लिए आदमियों का पुल टूट पड़ा था। ३. लाक्षणिक अर्थ में, कोई ऐसी चीज, जो दो या कई पक्षों के बीच में रहकर उन्हें मिलाये रखती हो। माध्यम। पुं० [सं०√पुल (ऊँचा होना)+क] १. पुलक। रोमांच। २. शिव का एक अनुचर। वि० १. बहुत अधिक। विपुल। २. बहुत बड़ा, विशाल या विस्तृत।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुल  : पुं० [फा०] १. खाइयों, नदी-नालों, रेललाइनों आदि के ऊपर आर-पार पाटकर बनाई हुई वह वास्तु रचना, जिस पर से होकर आदमी और गाड़ियाँ इधर से उधर आते—जाते हैं। सेतु। विशेष—मूलतः पुल प्रायः नदियाँ पार करने के लिए नावों की श्रृंखला से बनते थे। बाद में पीपों आदि के आधार पर अथवा बड़े-बड़े ऊँचे खंभों पर भी बनने लगे। २. लाक्षणिक रूप में, किसी चीज या बात का कोई बहुत लंबा क्रम या सिलसिला। झड़ी। ताँता। जैसे—किसी की तारीफ का पुल बाँधना; बातों का पुल बाँधना। क्रि० प्र०—बाँधना। मुहावरा—(किसी चीज या बात का) पुल टूटना=इतनी अधिकता या भरमार होना कि मानों उसकी राशि को रोक रखनेवाला बंधन टूट गया हो। जैसे—मेला देखने के लिए आदमियों का पुल टूट पड़ा था। ३. लाक्षणिक अर्थ में, कोई ऐसी चीज, जो दो या कई पक्षों के बीच में रहकर उन्हें मिलाये रखती हो। माध्यम। पुं० [सं०√पुल (ऊँचा होना)+क] १. पुलक। रोमांच। २. शिव का एक अनुचर। वि० १. बहुत अधिक। विपुल। २. बहुत बड़ा, विशाल या विस्तृत।
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पुलक  : पुं० [सं० पुल+कन्] १. प्रेम, भय, हर्ष आदि मनोविकारों की प्रबलता के समय शरीर में होनेवाला रोमांच। त्वककंप। विशेष—पुलक और रोमांच के अंतर के लिए दे० ‘रोमांच’ का विशेष। २. मन में होनेवाली वह कामना या वासना जो कोई काम करने की प्रवृत्ति करती हो। (अर्ज) जैसे—संभोग पुलक। ३. एक प्रकार का मोटा अन्न। ४. एक प्रकार का नगीना या रत्न, जिसे चुन्नी, महताब और याकूत भी कहते हैं। ५. एक प्रकार का कीड़ा जो शरीर के गले हुए अंगों में उत्पन्न होता है। ६. जवाहिरात या रत्नों का एक प्रकार का दोष। ७. हाथी का रातिब। ८. हरताल। ९. प्राचीन काल का एक प्रकार का मद्यपात्र। १॰. एक प्रकार की राई। ११. एक प्रकार का कंदा। १२. एक गंधर्व का नाम।
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पुलक  : पुं० [सं० पुल+कन्] १. प्रेम, भय, हर्ष आदि मनोविकारों की प्रबलता के समय शरीर में होनेवाला रोमांच। त्वककंप। विशेष—पुलक और रोमांच के अंतर के लिए दे० ‘रोमांच’ का विशेष। २. मन में होनेवाली वह कामना या वासना जो कोई काम करने की प्रवृत्ति करती हो। (अर्ज) जैसे—संभोग पुलक। ३. एक प्रकार का मोटा अन्न। ४. एक प्रकार का नगीना या रत्न, जिसे चुन्नी, महताब और याकूत भी कहते हैं। ५. एक प्रकार का कीड़ा जो शरीर के गले हुए अंगों में उत्पन्न होता है। ६. जवाहिरात या रत्नों का एक प्रकार का दोष। ७. हाथी का रातिब। ८. हरताल। ९. प्राचीन काल का एक प्रकार का मद्यपात्र। १॰. एक प्रकार की राई। ११. एक प्रकार का कंदा। १२. एक गंधर्व का नाम।
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पुलक-बंध  : पुं० [सं० ब० स०] चुनरी। चुंदरी।
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पुलक-बंध  : पुं० [सं० ब० स०] चुनरी। चुंदरी।
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पुलकना  : अ. [सं० पुलक+ना (प्रत्य०)] प्रेम, हर्ष आदि से पुलकित होना।
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पुलकना  : अ. [सं० पुलक+ना (प्रत्य०)] प्रेम, हर्ष आदि से पुलकित होना।
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पुलकाई  : स्त्री०=[सं० पुलक] पुलकित होने की अवस्था या भाव। पुलक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलकाई  : स्त्री०=[सं० पुलक] पुलकित होने की अवस्था या भाव। पुलक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलकांग  : पुं० [सं० पुलक-अंग, ब० स०] वरुण का पाश।
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पुलकांग  : पुं० [सं० पुलक-अंग, ब० स०] वरुण का पाश।
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पुलकालय  : पुं० [सं० पुलक-आलय, ब० स०] कुबेर का एक नाम।
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पुलकालय  : पुं० [सं० पुलक-आलय, ब० स०] कुबेर का एक नाम।
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पुलकालि  : [सं० पुलक-आलि, ष० त०]=पुलकावलि।
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पुलकालि  : [सं० पुलक-आलि, ष० त०]=पुलकावलि।
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पुलकावलि  : स्त्री० [सं० पुलक-आवलि, ष० त०] हर्ष से प्रफुल्ल रोम। हर्षजन्य रोमांच।
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पुलकावलि  : स्त्री० [सं० पुलक-आवलि, ष० त०] हर्ष से प्रफुल्ल रोम। हर्षजन्य रोमांच।
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पुलकित  : भू० कृ० [सं० पुलक+इतच्] प्रेम, हर्ष आदि के कारण जिसे पुलक हुआ हो, या जिसके रोएँ खड़े हो गये हों। प्रेम या हर्ष से गद्गद। रोमांचित।
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पुलकित  : भू० कृ० [सं० पुलक+इतच्] प्रेम, हर्ष आदि के कारण जिसे पुलक हुआ हो, या जिसके रोएँ खड़े हो गये हों। प्रेम या हर्ष से गद्गद। रोमांचित।
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पुलकी (किन्)  : वि० [सं० पुलक+इनि] १. जिसे पुलक हुआ हो। पुलकित। २. जो प्रेम, हर्ष आदि में गद्गद् और रोमांचित हुआ हो। पुं० १. कदंब। २. धारा कदंब।
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पुलकी (किन्)  : वि० [सं० पुलक+इनि] १. जिसे पुलक हुआ हो। पुलकित। २. जो प्रेम, हर्ष आदि में गद्गद् और रोमांचित हुआ हो। पुं० १. कदंब। २. धारा कदंब।
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पुलकोद्गम, पुलकोदभेद  : पुं० [सं० पुलक-उद्गम, पुलक-उद्भेद, ष० त०] रोम खड़े होना। लोमहर्षण।
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पुलकोद्गम, पुलकोदभेद  : पुं० [सं० पुलक-उद्गम, पुलक-उद्भेद, ष० त०] रोम खड़े होना। लोमहर्षण।
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पुलट  : स्त्री०=पलट।
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पुलट  : स्त्री०=पलट।
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पुलटिस  : स्त्री० [सं० पोल्टिस] फोड़ों आदि को पकाने या बहाने के लिए उस पर चढ़ाया जानेवाला अलसी, रेंडी आदि का मोटा लेप। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—बाँधना।
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पुलटिस  : स्त्री० [सं० पोल्टिस] फोड़ों आदि को पकाने या बहाने के लिए उस पर चढ़ाया जानेवाला अलसी, रेंडी आदि का मोटा लेप। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—बाँधना।
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पुलंदा  : पुं०=पुलिंदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलंदा  : पुं०=पुलिंदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलना  : अ० [देश०] चलना। उदा०—जेती जउ मनमाँहि पँजर जइ तेती, पुलइ।—ढो० मा०।
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पुलना  : अ० [देश०] चलना। उदा०—जेती जउ मनमाँहि पँजर जइ तेती, पुलइ।—ढो० मा०।
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पुलपुल  : स्त्री० [अनु०] किसी फूली हुई चीज के बार बार या रह-रहकर थोड़ा पिचकने और फिर उभरने या फूलने की क्रिया या भाव। वि०=पुलपुला।
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पुलपुल  : स्त्री० [अनु०] किसी फूली हुई चीज के बार बार या रह-रहकर थोड़ा पिचकने और फिर उभरने या फूलने की क्रिया या भाव। वि०=पुलपुला।
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पुलपुला  : वि० [अनु०] १. जो अन्दर से इतना ढीला और मुलायम हो कि जरा-सा दबाने से उसका तल सहज में कुछ दब या धँस जाय। जैसे—ये आम पककर पुलपुले हो गये हैं। २. दे० ‘पोला’।
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पुलपुला  : वि० [अनु०] १. जो अन्दर से इतना ढीला और मुलायम हो कि जरा-सा दबाने से उसका तल सहज में कुछ दब या धँस जाय। जैसे—ये आम पककर पुलपुले हो गये हैं। २. दे० ‘पोला’।
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पुलपुलाना  : स० [हिं० पुलपुलाना] [भाव० पुलपुलाहट] १. किसी मुलायम चीज को मुँह में लेकर या हाथ से दबाकर पुलपुला करना। जैसे—आम पुल-पुलाना। अ० पुलपुला होना। जैसे—आम पुलपुला गया है। (पूरब)
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पुलपुलाना  : स० [हिं० पुलपुलाना] [भाव० पुलपुलाहट] १. किसी मुलायम चीज को मुँह में लेकर या हाथ से दबाकर पुलपुला करना। जैसे—आम पुल-पुलाना। अ० पुलपुला होना। जैसे—आम पुलपुला गया है। (पूरब)
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पुलपुलाहट  : स्त्री० [हिं० पुलपुला+हट (प्रत्य०)] पुलपुले होने की अवस्था, गुण या भाव। पुलपुलापन।
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पुलपुलाहट  : स्त्री० [हिं० पुलपुला+हट (प्रत्य०)] पुलपुले होने की अवस्था, गुण या भाव। पुलपुलापन।
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पुलस्त  : पुं०=पुलस्त्य।
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पुलस्त  : पुं०=पुलस्त्य।
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पुलस्ति  : पुं० [सं०पुल√अस् (जाना)+ ति, शक० पररूप]=पुलस्त्य।
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पुलस्ति  : पुं० [सं०पुल√अस् (जाना)+ ति, शक० पररूप]=पुलस्त्य।
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पुलस्त्य  : पुं० [सं० पुलस्ति+यत्] १. ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक जिसकी गिनती सप्तऋर्षियों और प्रजापतियों में होती है। २. शिव का एक नाम।
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पुलस्त्य  : पुं० [सं० पुलस्ति+यत्] १. ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक जिसकी गिनती सप्तऋर्षियों और प्रजापतियों में होती है। २. शिव का एक नाम।
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पुलह  : पुं० [सं०] १. सप्तऋर्षियों में से एक ऋषि जो ब्रह्मा के मानस पुत्रों और प्रजापतियों में थे। २. शिव का एक नाम।
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पुलह  : पुं० [सं०] १. सप्तऋर्षियों में से एक ऋषि जो ब्रह्मा के मानस पुत्रों और प्रजापतियों में थे। २. शिव का एक नाम।
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पुलहना  : अ०=पलुहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलहना  : अ०=पलुहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलाक  : पुं० [सं०√पुल्+कलाक, नि० सिद्धि] १. एक प्रकार का कदन्न। अँकरा। २. भात। ३. माँड़। ४. पुलाव। ५. अल्पता। ६. छिप्रता। जल्दी।
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पुलाक  : पुं० [सं०√पुल्+कलाक, नि० सिद्धि] १. एक प्रकार का कदन्न। अँकरा। २. भात। ३. माँड़। ४. पुलाव। ५. अल्पता। ६. छिप्रता। जल्दी।
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पुलाकी (किन्)  : पुं० [सं० पुलाक+इनि] वृक्ष।
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पुलाकी (किन्)  : पुं० [सं० पुलाक+इनि] वृक्ष।
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पुलायित  : पुं० [सं० पुल+क्यङ्+क्त] घोडे का सरपट दौड़ना।
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पुलायित  : पुं० [सं० पुल+क्यङ्+क्त] घोडे का सरपट दौड़ना।
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पुलाव  : पुं० [सं० पुलाव से फा० पलाव] एक प्रकार का व्यंजन जो मांस और चावल को एक साथ पकाने से बनता है। मांसोदन। २. पकाये हुए मीठे चावल।
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पुलाव  : पुं० [सं० पुलाव से फा० पलाव] एक प्रकार का व्यंजन जो मांस और चावल को एक साथ पकाने से बनता है। मांसोदन। २. पकाये हुए मीठे चावल।
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पुलिकेशि  : पुं० [सं०] १. ईसवी छठी शताब्दी के एक राजा, जिन्होंने दक्षिण भारत में पल्लवों की राजधानी वातापिपुरी जीतकर चालुक्य वंशीय राज्य स्थापित किया था। २. उक्त वंश के एक प्रतापी राजा, जिन्होंने ७ वीं शताब्दी के आरंभ में पूरे दक्षिण भारत और महाराष्ट्र पर शासन किया था।
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पुलिकेशि  : पुं० [सं०] १. ईसवी छठी शताब्दी के एक राजा, जिन्होंने दक्षिण भारत में पल्लवों की राजधानी वातापिपुरी जीतकर चालुक्य वंशीय राज्य स्थापित किया था। २. उक्त वंश के एक प्रतापी राजा, जिन्होंने ७ वीं शताब्दी के आरंभ में पूरे दक्षिण भारत और महाराष्ट्र पर शासन किया था।
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पुलिंद  : पुं० [सं०√पुल+किन्दच्] १. भारतवर्ष की एक प्राचीन असभ्य जाति। २. उक्त जाति के बसने का देश। ३. उक्त जाति का व्यक्ति।
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पुलिंद  : पुं० [सं०√पुल+किन्दच्] १. भारतवर्ष की एक प्राचीन असभ्य जाति। २. उक्त जाति के बसने का देश। ३. उक्त जाति का व्यक्ति।
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पुलिंदा  : स्त्री० [सं०] एक छोटी नदी, जो ताप्ती में मिलती है। महाभारत में इसका उल्लेख है। पुं० [सं० पुल=ढेर; या हिं० पूला] कागज, कपड़े आदि में बँधी बड़ी गठरी।
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पुलिंदा  : स्त्री० [सं०] एक छोटी नदी, जो ताप्ती में मिलती है। महाभारत में इसका उल्लेख है। पुं० [सं० पुल=ढेर; या हिं० पूला] कागज, कपड़े आदि में बँधी बड़ी गठरी।
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पुलिन  : पुं० [सं०√पुल्+इनन्] १. ऐसी गीली भूमि, जो नदी आदि का पानी हटने से निकल आई हो। चर। २. नदी, समुद्र आदि का किनारा विशेषतः रेतीला किनारा। तट। (बीच) ३. नदी आदि के बीच में निकला हुआ रेत का ढूह। चर। ४. एक यक्ष का नाम।
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पुलिन  : पुं० [सं०√पुल्+इनन्] १. ऐसी गीली भूमि, जो नदी आदि का पानी हटने से निकल आई हो। चर। २. नदी, समुद्र आदि का किनारा विशेषतः रेतीला किनारा। तट। (बीच) ३. नदी आदि के बीच में निकला हुआ रेत का ढूह। चर। ४. एक यक्ष का नाम।
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पुलिनमय  : वि० [सं० पुलिन+मयट्] (स्थान) जो बहते हुए पानी के सम्पर्क से गीला या तर हो। (एल्यूवियल)
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पुलिनमय  : वि० [सं० पुलिन+मयट्] (स्थान) जो बहते हुए पानी के सम्पर्क से गीला या तर हो। (एल्यूवियल)
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पुलिनवती  : स्त्री० [सं० पुलिन+मतुप्, वत्व, ङीप्] तटिनी। नदी।
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पुलिनवती  : स्त्री० [सं० पुलिन+मतुप्, वत्व, ङीप्] तटिनी। नदी।
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पुलिरिक  : पुं० [सं०] साँप।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुलिरिक  : पुं० [सं०] साँप।
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पुलिश  : पुं० [सं०] ज्योतिष के एक प्राचीन आचार्य जिनके नाम से पौलिश सिद्धान्त प्रसिद्ध है और जो वराहमिहिरों के कहे हुए पंच सिद्धान्तों में से एक है। अलबरूनी ने इसे यूनानी (यवन) और कुछ इतिहासज्ञों ने इसे मिश्र देश का निवासी बताया है।
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पुलिश  : पुं० [सं०] ज्योतिष के एक प्राचीन आचार्य जिनके नाम से पौलिश सिद्धान्त प्रसिद्ध है और जो वराहमिहिरों के कहे हुए पंच सिद्धान्तों में से एक है। अलबरूनी ने इसे यूनानी (यवन) और कुछ इतिहासज्ञों ने इसे मिश्र देश का निवासी बताया है।
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पुलिस  : स्त्री० [अं०] १. किसी नगर राज्य आदि का वह राजकीय विभाग, जिसका मुख्य काम शांति तथा व्यवस्था बनाये रखना है और जो अपराधों को रोकने के लिए अपराधियों को पकड़ता तथा न्यायालय द्वारा उन्हें दण्डित कराता है। २. उक्त विभाग के लोगों का दल। ३. उक्त विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी। सिपाही।
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पुलिस  : स्त्री० [अं०] १. किसी नगर राज्य आदि का वह राजकीय विभाग, जिसका मुख्य काम शांति तथा व्यवस्था बनाये रखना है और जो अपराधों को रोकने के लिए अपराधियों को पकड़ता तथा न्यायालय द्वारा उन्हें दण्डित कराता है। २. उक्त विभाग के लोगों का दल। ३. उक्त विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी। सिपाही।
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पुलिसमैन  : पुं० [अं०] पुलिस (विभाग) का सिपाही।
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पुलिसमैन  : पुं० [अं०] पुलिस (विभाग) का सिपाही।
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पुलिहोरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पकवान।
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पुलिहोरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पकवान।
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पुली  : स्त्री० [देश०] उत्तर भारत में होनेवाली काली और भूरे रंग की एक चिड़िया। स्त्री० [अं० पूली] १. एक चक्कर या पहिया, जिस पर रस्सा रखकर भार खींचते हैं। २. उक्त प्रकार के चक्करों या पहियों का वह सामूहिक यांत्रिक रूप जिसकी सहायता से बहुत बड़े-बड़े भार उठा कर इधर-उधर किये जाते हैं। ३. उक्त प्रकार का वह चक्कर या पहिया, जिस पर पट्टा रखकर इंजन आदि की संचालक शक्ति यंत्रों तक पहुँचाई जाती है।
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पुली  : स्त्री० [देश०] उत्तर भारत में होनेवाली काली और भूरे रंग की एक चिड़िया। स्त्री० [अं० पूली] १. एक चक्कर या पहिया, जिस पर रस्सा रखकर भार खींचते हैं। २. उक्त प्रकार के चक्करों या पहियों का वह सामूहिक यांत्रिक रूप जिसकी सहायता से बहुत बड़े-बड़े भार उठा कर इधर-उधर किये जाते हैं। ३. उक्त प्रकार का वह चक्कर या पहिया, जिस पर पट्टा रखकर इंजन आदि की संचालक शक्ति यंत्रों तक पहुँचाई जाती है।
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पुलोम (न्)  : पुं० [सं०] इंद्र की पत्नी शची के पिता, जो एक राक्षस थे तथा जिन्हें इंद्र ने युद्ध में मारा था।
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पुलोम (न्)  : पुं० [सं०] इंद्र की पत्नी शची के पिता, जो एक राक्षस थे तथा जिन्हें इंद्र ने युद्ध में मारा था।
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पुलोमजा  : स्त्री० [सं० पुलोमन√जन् (उत्पत्ति)+ड+ टाप्] पुलोम राक्षस की कन्या शची, जो इन्द्र की पत्नी थी।
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पुलोमजा  : स्त्री० [सं० पुलोमन√जन् (उत्पत्ति)+ड+ टाप्] पुलोम राक्षस की कन्या शची, जो इन्द्र की पत्नी थी।
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पुलोमजित्  : पुं० [सं० पुलोमन√जि (जीतना)+क्विप्] इन्द्र।
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पुलोमजित्  : पुं० [सं० पुलोमन√जि (जीतना)+क्विप्] इन्द्र।
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पुलोमही  : स्त्री० [सं०] अहिफेन। अफीम।
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पुलोमही  : स्त्री० [सं०] अहिफेन। अफीम।
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पुलोमा  : पुं० [सं०] पुलोम नामक राक्षस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुलोमा  : पुं० [सं०] पुलोम नामक राक्षस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुल्कस  : पुं० [सं०] उपनिषद्-काल की एक संकर जाति, जिसकी उत्पत्ति निषाद पुरुष और शूद्रा स्त्री से मानी गई है।
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पुल्कस  : पुं० [सं०] उपनिषद्-काल की एक संकर जाति, जिसकी उत्पत्ति निषाद पुरुष और शूद्रा स्त्री से मानी गई है।
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पुल्ला  : पुं० [?] १. नाक में पहनने का एक गहना। २. हिलसा मछली।
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पुल्ला  : पुं० [?] १. नाक में पहनने का एक गहना। २. हिलसा मछली।
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पुल्लिंग  : पुं०=पुंलिंग।
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पुल्लिंग  : पुं०=पुंलिंग।
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पुल्ली  : स्त्री० [देश०] घोड़े के सुम के ऊपर का हिस्सा। स्त्री० १.=पुली। २.=पूली (पूला का भी०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुल्ली  : स्त्री० [देश०] घोड़े के सुम के ऊपर का हिस्सा। स्त्री० १.=पुली। २.=पूली (पूला का भी०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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