शब्द का अर्थ
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भव-केतु :
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पुं० [सं० ष० त०] बृहत्संहिता के अनुसार पूर्व में कभी कभी दिखाई देनेवाला एक पुच्छल तारा जिसकी पूँछ शेर की पूँछ की भाँति दक्षिणावर्त होती है। कहते है कि जितने मुहूर्त तर यह दिखाई देता है,उतने महीने तक भीषण अकाल या महामारी होती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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