शब्द का अर्थ
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मध्य :
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पुं० [सं०√मन्+यक्, नि० सिद्धि] १. किसी चीज के बीच का भाग। २. शरीर का मध्यभाग। कटि। कमर। ३. वह जो किसी विशिष्ट दल या पक्ष में न हो। तटस्थ। निष्पक्ष। उदा०—बूझि मित्र और मध्य गति तस तब करिहिउँ आइ।—तुलसी। ४. संगीत में, तीन सप्तकों में से बीचवाला सप्तक जिसके स्वरों का उच्चारण स्थान वक्षस्थल और कंठ का भीतरी भाग कहा गया है। विशेष—साधारणतः गाना-बजाना इसी सप्तक से आरंभ होता है। जब स्वर ऊँचे होकर और आगे बढ़ते हैं, तब वे ‘तार’ नामक सप्तक में पहुँचते हैं। और जब स्वर इस सप्तक से नीचे होकर उतरने लगते हैं, तब ‘मंद्र’ नामक सप्तक में पहुँच जाते हैं। ५. नृत्य में वह गति जो न बहुत तेज हो और न बहुत धीमी। ६. सुश्रुत के अनुसार १६ वर्ष से ७0 वर्ष तक की अवस्था। ७. आपस में होनेवाला अन्तर। दूरी या फरक। ८. पश्चिम दिशा। ९. विश्राम। १॰. दस अरब की संख्या की संज्ञा। वि० १. बीच में रहने या होनेवाला। बीच का। २. जो बहुत अच्छा भी न हो और बहुत बुरा भी न हो, फलतः काम चलाने लायक। ३. अधम। नीच। |
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मध्य पद-लोपी :
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पुं०=मध्य पद-लोपी (समास)। |
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मध्य-कुरु :
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पुं० [मध्य से] उत्तर कुरु और दक्षिण कुरु के मध्य में स्थित एक प्राचीन देश। |
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मध्य-खंड :
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पुं० [मध्य० स०] ज्योतिष में, पृथ्वी का वह भाग जो उत्तरी क्रांतिवृत्त और दक्षिणी क्रांतिवृत्त के बीच में पड़ता है। |
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मध्य-गंध :
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पुं० [ब० स०] आम का वृक्ष। |
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मध्य-जीवकल्प :
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पुं० [कर्म० स०] भू-विज्ञान के अनुसार इस पृथ्वी की रचना के इतिहास में, पाँच कल्पों में से चौथा कल्प जो पुरा कल्प के बाद और आज से प्रायः बारह से बीस करोड़ वर्ष पहले था और जिसमें अनेक प्रकार के विशाल काय जन्तुओं तथा पक्षियों की सृष्टि हुई थी (मेसोडोइक एरा)। विशेष—शेष चार कल्प ये हैं—आदि कल्प, उत्तर कल्प, पुरा कल्प और नव कल्प। |
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मध्य-तापिनी :
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स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम। |
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मध्य-देह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] उदर। पेट। |
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मध्य-पात :
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पुं [सं०] १. ज्योतिष में एक प्रकार का पात। २. परिचय करानेवाली बात या लक्षण। पहचान। |
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मध्य-पूर्व :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. यूरोप वालों की दृष्टि से एशिया या दक्षिण पश्चिमी तथा अफ्रीका का उत्तर-पूर्वी भाग (मिडिल ईस्ट)। २. उक्त भाग में स्थित राज्यों का समाहार। |
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मध्य-प्रत्यय :
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वि० [सं० ब० स०] किसी के बीच या मध्य में बैठाया या लगाया हुआ। पुं० व्याकरण में कोई ऐसा अक्षर या शब्द जो प्रत्यय के रूप में किसी दूसरे शब्द के बीच में लगकर उसके अर्थ में कोई विशेषता उत्पन्न करता हो। मर्सग। (इन्फिक्स)। |
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मध्य-यव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] प्राचीन काल का एक परिमाण जो पीली सरसों के छः दानों की तौल के बराबर होता था। |
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मध्य-युग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] [वि० मध्ययुगीन] १. प्राचीन युग और आधुनिक युग के बीच का युग या समय। २. एशिया युरोप आदि के इतिहास में, ईसवी छठी से पन्दहवीं शताब्दी तक का काल या समय (मिडिल एजेज़)। ३. आधुनिक भारतीय इतिहास में, मुसलमानी शासन काल का समय। |
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मध्य-रेखा :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] ज्योतिष और भूगोल में वह रेखा जिसकी कल्पना देशांतर निकालने के लिए की जाती है। |
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मध्य-लोक :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. पृथ्वी। २. जैनों के अनुसार वह मध्यवर्ती लोक जो मेरु पर्वत पर १000४0 योजन की ऊँचाई पर है। |
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मध्य-स्थल :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. मध्यप्रदेश। कमर। |
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मध्यक :
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वि० [सं० मध्य से] १. मध्य या बीच में रहने या होनेवाला। २. जो न बहुत बड़ा हो और न बहुत छोटा हो। मझोले आकार का। |
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मध्यका :
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स्त्री० [सं० मध्य से] दे० ‘माध्यिक’। |
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मध्यग :
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वि० [मध्य√गम् (जाना)+ड] बीच में पड़ने या स्थित होनेवाला पुं० दलाल। |
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मध्यगत :
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भू० कृ० [द्वि० त०] मध्य में आया या लाया हुआ। |
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मध्यगति :
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स्त्री० [मध्य० स०] तटस्थता की वह नीति या स्थिति जिसमें किसी से न तो विशेष मित्रता ही होती है और न लडाई या झगड़ा बखेड़ा ही। |
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मध्यता :
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स्त्री० [सं० मध्य+तल्+टाप्] मध्य होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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मध्यदेश :
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पुं० [मध्य० स०] १. किसी चीज का बीचवाला भाग। २. शरीर का मध्य भाग। कटि। ३. प्राचीन भारत का यह विस्तृत मध्य भाग जिसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में बंगाल, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में पंजाब और सिंध, तथा पश्चिम-दक्षिण में गुजरात था। |
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मध्यम :
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वि० [सं० मध्य+म] १. जो विपरीत कोणों, दिशाओं या सीमाओं के बीच में हो। मध्य का। बीच का। २. न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा। वि०=मद्धिम। पुं० १. संगीत के सात स्वरों में से चौथा स्वर जिसका मूल स्थान नासिका, अंतः स्थान कंठ और शरीर में उत्पत्ति स्थान वक्षस्थल माना गया है २. वह उपपति जो नायिका की चेष्टाओं से ही उसके मन का भाव जान ले और उसके क्रोध दिखलाने पर अनुराग न प्रकट करे। यह साहित्य में तीन प्रकार के नायकों में से एक है। ३. एक प्रकार का हिरन। ४. संगीत में एक प्रकार का राग। ५. दे० ‘मध्य देश’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मध्यम पद-लोपी (पिन्) :
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[सं० मध्यम-पद, कर्म० स०, मध्यम्पद] व्याकरण में एक प्रकार का समास जिसमें पहले पद से दूसरे पद का संबंध बतलानेवाला शब्द अध्याहृत लुप्त रहता है। लुप्त पद-समास। |
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मध्यम-पुरुष :
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पुं० [सं० कर्म० स०] व्याकरण में वक्ता की दृष्टि में उस व्यक्ति का वाचक सर्वनाम जिससे वह कुछ कह रहा हो। (सेकेंड पर्सन)। जैसे—तू, तुम, आप। |
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मध्यम-मार्ग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. दो चरम सीमाओं या परस्पर विरोधी मार्गों अथवा साधनों के बीच का ऐसा मार्ग या साधन जिसमें दोनों पक्षों या विचार-धाराओं का उचित समाधान या सामंजस्य होता हो। बीच का रास्ता (वाया-मीडिया)। २. महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित एक प्रसिद्ध मत या सिद्धांत। |
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मध्यम-राजा (जन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वह राजा जो कई परमात्मा विरोधी राजाओं के मध्य में हो। |
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मध्यम-लोक :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पृथ्वी। |
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मध्यम-वर्ग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] मनुष्य समाज के आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से विभाजित वर्गों (उच्च, मध्यम और निम्न) में से हुद्धि प्रधान एक वर्ग जो सामान्य आर्थिक स्थित तथा सामाजिक स्थितिवाला समझा जाता है और उच्च वर्ग (धनी वर्ग) और निम्नवर्ग (श्रमिक वर्ग) के बीच में माना जाता है (मिडिल क्लास)। |
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मध्यम-संग्रह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पर-स्त्री को फुसलाने तथा अपने वश में करने के विचार से उसे गहने-कपड़े आदि भेजना (मिताक्षरा) |
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मध्यम-साहस :
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पुं० [सं० कर्म० स०] मनु के अनुसार पाँच सौ पणोतक का अर्थ-दंड या जुरमाना। |
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मध्यमता :
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स्त्री० [सं० मध्यम+तल्+टाप्] मध्यम होने की अवस्था या भाव। |
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मध्यमा :
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स्त्री० [सं० मध्यम+टाप्] १. हाथ की बीचवाली उँगली। २. साहित्य में वह नायिका जो अपने प्रिय के द्वारा हित अथवा अहित का व्यवहार देखकर उसके प्रति वैसा ही हित अथवा अहित का व्यवहार करती हो। ३. २४. हाथ लंबी, १२ हाथ चौड़ी और ८ हाथ ऊँची नाव (युक्तिकल्पतरु)। ४. रजस्वला स्त्री। ५. कनियारी। ६. छोटा जामुन। ७. काकोली। |
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मध्यमागम :
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पुं० [सं० मध्यम-आगम, कर्म० स०] बौद्धों के चार प्रकार के आगमों में से एक। |
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मध्यमान :
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पुं० [सं०] [वि० मध्य-मानिक] १. लेखे या हिसाब में बराबर का। औसत। पड़ता। मध्यक। २. परस्पर विपरीत दिशाओं में स्थित दो बिंदुओं या संख्याओं के ठीक बीचोबीच में स्थित बिन्दु या संख्या। (मीन) जैसे—यदि कहीं का तापमान घटकर ९५ अंश तक और बढ़कर १0५ अंश तक पहुँच जाता हो तो वहाँ के ताप-मान का मध्यमान १00 अंश होगा। वि० १. दे० ‘मध्यक’। २. दे० ‘मध्या’। ३. संगीत में, एक प्रकार का ताल जिसमें ८ ह्रस्व अथवा ४ दीर्घ मात्राएँ होती हैं और ३ आघात और १ खाली होता है। |
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मध्यमाहरण :
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पुं० [सं०] बीज गणित की वह क्रिया जिसके अनुसार कोई आयत्त-मान माना जाता है। |
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मध्यमिका :
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स्त्री० [सं० मध्यम+कन् टाप्, इत्व] रजस्वला स्त्री०। |
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मध्यमीय :
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वि० [सं० मध्यम+छ—ईय] मध्यम। |
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मध्ययुगीन :
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वि० [सं० मध्ययुग+ख—ईन] मध्ययुग-सम्बन्धी। मध्ययुग का (मेडीवल) |
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मध्यवर्ती (तिन्) :
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वि० [सं० मध्य√वृत् (बरतना)+णिनि] १. जो मध्य में वर्तमान या स्थित हो। बीच का। २. जो दो पक्षों के बीच में रहकर उनमें से सम्बन्ध स्थापित करता हो (इन्टरमिडिअरी)। |
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मध्यविवरण :
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पुं० [सं० ष० त०] बृहत्संहिता के अनुसार सूर्य या चन्द्रग्रहण के मोक्ष का एक प्रकार जिसमें सूर्य या चन्द्रमा का मध्य भाग पहले प्रकाशित होता है। |
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मध्यसर्ग :
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पुं०=मध्य-प्रत्यय। |
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मध्यसूत्र :
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पुं०=मध्यरेखा। |
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मध्यस्थ :
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वि० [सं० मध्य√स्था (ठहरना)+क] [भाव० मध्यस्थता] जो बीच या मध्य में स्थित हो। बीच का। पुं० १. वह जो दो विरोधी पक्षों या व्यक्तियों के बीच में पड़कर उनका झगड़ा या विवाह निपटाता हो। आपस में मेल या समझौता करानेवाला व्यक्ति (मीडियेटर)। २. वह जो दो दलों या पक्षों के बीच में रहकर उनके पारस्परिक व्यवहार या लेन-देन में कुछ सुभीते उत्पन्न करके स्वयं भी कुछ लाभ उठाता हो (मिडिलमैन)। जैसे—उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच में व्यापारी, अथवा राज्य और कृषकों के बीच में जमींदार आदि। ३. वह जो दोनों विरोधी पक्षों में से किसी पक्ष में न हो। उदासीन। ४. वह जो अपनी हानि न करता हुआ दूसरों का उपकार करता हो। |
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मध्यस्थता :
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स्त्री० [सं० मध्यस्थ+तल्—टाप्] मध्यस्थ होने की अवस्था या भाव (मीडिएशन)। २. मध्यस्थ का काम और पद। |
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मध्या :
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स्त्री० [सं० मध्य+टाप्] १. साहित्य में स्वकीया नायिका के तीन भेदों में से एक जिसमें काम और लज्जा की समान स्थिति मानी गई है। स्वकीया के अन्य दो भेद हैं—मुग्धा और प्रगल्भा। २. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तीन अक्षर होते हैं। इसके आठ भेद हैं। ३. बीच की उँगली। मध्यमा। |
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मध्यांतर :
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पुं० [सं० मध्य+अंतर] १. दो घटनाओं वस्तुओं आदि के मध्य या बीच के अंतर। २. उक्त प्रकार के अंतर के कारण बीतनेवाला समय। ३. किसी काम या बात के बीच में सुस्ताने आदि के लिए निकाला या नियत किया हुआ थोड़ा-सा समय (इन्टर्वल)। |
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मध्यान :
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पुं०=मध्याह्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मध्यालु :
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पुं० [सं० मधु-आलु, कर्म० स०] एक प्रकार के पौधे की जड़ जो खाई जाती है। |
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मध्यावकाश :
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पुं० [सं० मध्य+अवकाश]=मध्यांतर। |
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मध्याह्न :
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पुं० [सं० मध्य-अहन्, एकदेशि त० स०] १. दिन के ठीक बीच का वह समय जब सूर्य सबसे ऊपर आ जाता है। २. उक्त समय के बाद का थोड़ी देर तक का समय। |
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मध्याह्नोतर :
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पुं० [सं० मध्य अहन-उत्तर, ष० त०] मध्याह्न के ठीक बादवाला समय। तीसरा पहर। |
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मध्ये :
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अव्य०=मद्धे (देखें)। |
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