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मात्र  : अव्य० [सं०√मा (मान)+त्रण्] इस, इन या इतने से अधिक दूसरा नही। जैसे—(क) मात्र एक रुपया मुझे मिला है। (ख) मात्र १५ आदमी वहाँ पहुँचे। (ग) सब चुप रहे, मात्र बोलनेवाले अधिकारी गण थे।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
मात्रक  : पुं० [सं० मात्र+कन्] १. वह निश्चित मात्रा या मान जिसे एक मानकर उसी के हिसाब से या मेल से अन्य चीजों की संख्या निर्धारित की जाय। इकाई। (यूनिट)। २. किसी समूह की कोई एक वस्तु या अंग। ३. वह जिसकी भिन्न या स्वतन्त्र सत्ता हो। (यूनिट)।
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मात्रा  : स्त्री० [सं० मात्र+टाप्] १. लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई दूरी, विस्तार संख्या आदि जानने या निश्चित करने का परिमाण या साधन। २. कोई ऐसा मानक उपकरण या साधन जिससे कोई चीज तौली या नापी-जोखी जाती हो। परिमाण या माप जानने का साधन। ३. किसी वस्तु का ठीक आयतन, तौल या नाप। परिमाण। ४. किसी पूरी या समूची इकाई का उतना अंश या भाग जितना अपेक्षित, आवश्यक या प्रस्तुत हो। जैसे—(क) वहां सभी पदार्थ बहुत अधिक मात्रा में रखे थे। (ख) दाल में नमक कुछ अधिक मात्रा में पड़ गया है। ४. औषधि आदि का उतना अंश या परिमाण जितना एक बार में खाया जाता हो या खाया जाना अपेक्ष्य हो या उचित हो। ६. किसी चीज का नियत या निश्चित छोटा भाग। ७. उतना काल या समय जितना एक ह्रस्व अक्षर का उच्चारण करने में लगता है। ८. उच्चारण, संगीत आदि में काल का उतना अंश जितना किसी विशिष्ट ध्वनि के उच्चारण में लगता है। ९. बारह खड़ी लिखने में वह स्तर-चिन्ह जो किसी अक्षर के ऊपर नीचे या आगे-पीछे लगता है। जैसे—ह्रस्व इ की मात्रा और दीर्घ ऊ का मात्रा। १॰. संगीत में उतना काल जितना एक स्वर के उच्चारण में लगता है। ११. संगीत मे ताल का नियत या निश्चित विभाग। जैसे—तीन मात्राओं का ताल, चार मात्राओं का ताल। १२. इंद्रिय, जिसके द्वारा विषयों का ज्ञान होता है। १३. अंग। अवयव। १४. किस वस्तु का बहुत छोटा कण या अणु। १५. आवृत्ति रूप। १६. बल। शक्ति। १७. राजाओं के वैभव के सूचक घोड़े, हाथी आदि परिच्छद। १८. कान में पहनने का एक प्रकार का घोडा।
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मात्रा-वृत्त  : पुं० [मध्य० स०] मात्रिक छन्द।
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मात्रा-स्पर्श  : पुं० [ष० त०] विषयों के साथ इन्द्रियों का संयोग।
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मात्रासम  : पुं० [स० त०+कन्] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ और अन्त में गुरु होता है।
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मात्रिक  : वि० [सं० मात्रा+ठक्-इक] १. मात्रा-संबंधी। २. किसी एक इकाई से सम्बन्ध रखनेवाला। एकात्मक। (युनिटरी)। ३. जिसमें मात्राओं की गणना या विचार होता है। जैसे—मात्रिक छन्द।
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मात्रिक-छंद  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह छंद जिसके चरणों की गठन मात्राओं का ध्यान रखकर की गयी हो।
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