शब्द का अर्थ
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लोप :
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पुं० [सं०√लुप् (काटना)+घञ्] १. किसी चीज के न रह जाने की अवस्था या भाव। जैसे—कार्यों का लोप होना। २. न मिलने की अवस्था या भाव। अभाव। ३. अदृश्य होने की अवस्था या भाव। अदर्शन। ४. व्याकरण के चार प्रधान नियमों में से एक जिसके अनुसार शब्द के साधन में कोई वर्ण उड़ा या हटा दिया जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
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लोप-विभ्रम :
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पुं० [सं० तृ० त०] दे० ‘भूल-चूक’ (हिसाब की)। |
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लोपक :
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वि० [सं०√लुब्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. लोप करनेवाला। २. बाधक। पुं० भाँग। विजया। |
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लोपन :
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पुं० [सं०√लुप्+णिच्+ल्युट—अन] १. लोपन करने की क्रिया या भाव। २. छिपाना। ३. नष्ट करना। न रहने देना। |
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लोपना :
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स० [सं० लोपन] १. लुप्त करना। छिपाना। २. न रहने देना। नष्ट करना। ३. उपेक्षा करना अ० लुप्त होना। |
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लोपा :
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स्त्री० [सं०√लुप् (काटना)+णिच्+अच्+टाप्] १. विदर्भ नरेश की पालिता कन्या और अगस्त्य की पत्नी। २. अगस्त्य मण्डल के पास उदित होनेवाला एक प्रकार का तारा। |
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लोपांजन :
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पुं० [सं० लोप-अंजन, मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित अंजन जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसे लगाने से लगानेवाला अदृश्य हो जाता है, उसे कोई देख नहीं सकता। |
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लोपापक :
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पुं० [सं० लोप-आपक, ष० त०] [स्त्री० लोपापिका] गीदड़। सियार। |
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लोपामुद्रा :
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स्त्री० [सं० न√मुद्+रा+क+टाप्=अमुद्रा, लोप-अमुदा, स० त०] १. अगस्त ऋषि की स्त्री जो उन्होंने स्वयं सब प्राणियों के उत्तम उत्तम अंगों को लेकर बनाई थी और तब विदर्भ राज को सौंप दी थी। युवती होने पर अगस्त्य जी ने इसी से विवाह किया। एक तारा जो दक्षिण में अगस्त्य मंडल के पास उदय होता है |
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लोपी (पिन्) :
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वि० [सं०√लुप्+णिनि] १. लोप करनेवाला। २. छिपानेवाला। नष्ट करनेवाला। ३. जिसका लोप हो सके। जैसे—मध्यम पद लोपी समास। |
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लोप्ता (तृ) :
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वि० [सं०√लुप्+तृच्] लोप करनेवाला। |
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