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वाह  : वि० [सं०√वह् (ढोना+घञ्] १. वहन करनेवाला। २. बहनेवाला। (यौ० के अन्त में) पुं० १. वाहन। सवारी। जैसे—गाड़ी। रथ आदि। २. बोझ खींचने या ढोनेवाला पशु। जैसे— घोड़ा बैल आदि। ३. वायु हवा। ४. चार गोणी के बराबर एक पुरानी तौल। ५. बाँह। बाहु। अव्य० [फा०] १. प्रशंसा सूचक शब्द। धन्य। जैसे—वाह यह तुम्हारा की काम था। २. आश्चर्य, घृणा आदि का सूचक शब्द। जैसे—वाह यह तुम कैसी बात कहते हो। पुं० [?] एक प्रकार का रात्रिचर जन्तु जिसकी बोली प्रायः बिल्ली की बोली की तरह होती है। यह पेड़ों पर भी चढ़ सकता है और पाला भी जाता है।
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वाह-वाही  : स्त्री० [फा०] १. कोई अच्छा काम करने पर लोगों का वाह-वाह कहना। साधुवाद। २. समाज में होनेवाली प्रशंसा। क्रि० प्र०—मिलना।—लूटना।—होना।
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वाहक  : वि० [सं०√वह् (ढोना)+ण्वुल्-अक] ढोया या लादकर ले जानेवाला। पुं० १. कुली। २. सारथी। ३. एक विषैला कीड़ा।
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वाहणी  : पुं०=वाहन (डि०)।
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वाहन  : पुं० [सं०√वह् (ढोना)+ल्युट-अन, वृद्धि, निपा] १. वहन करने अर्थात् ढोने की क्रिया या भाव। २. कोई ऐसा पशु या चीज जिस पर लोग सवार होते हों। सवारी। जैसे—घोड़ा गाड़ी रथ आदि। ३. उद्योग। प्रयत्न।
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वाहनप  : पुं० [सं०] वह जो किसी प्रकार के वाहन की देख-रेख करता हो। जैसे— महावत, साईस आदि।
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वाहना  : स्त्री० [सं० वाहन+टाप्] सेना। स० १. =वाहना। २. =बाँधना।
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वाहनिक  : पुं० [सं० वाहन+ठक्-इक] वह जो भारवाहक पशुओं के पालन-पोषण वर्द्धन आदि का काम करता हो।
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वाहनीक  : पुं०=वाहनिक।
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वाहनीय  : वि० [सं०√वह (ढोना)+णिच्+अनीयर्] जो वहन किया जा सके। पुं० भारवाही पशु।
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वाहरु  : पुं०=पाहरु (पहरेदार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वाहला  : स्त्री० [सं० वाह+लच्+टाप्] १. धारा। स्रोत। २. प्रवाह। बहाव। ३. वाहन। पुं० १. =बादल। २. =नाला। (पानी का)। (राजा०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वाहवना  : स०=वाहना (बहाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वाहि  : सर्व० [हिं० वा] उसको। उसे।
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वाहिक  : पुं० [सं० वाह+ठक्-इक] १. गाडी, रथ आदि यान। २. ढक्का नाम का बाजा।
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वाहिकता  : स्त्री० [वाहिक+तल्-टाप्] वाहिक होने की अवस्था या भाव।
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वाहिकस्व  : पुं०=वाहिकता।
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वाहिका  : स्त्री० [सं०] रक्तवहन करने वाली शिरा। वाहिनी। (वेसल)
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वाहित  : भू० कृ० [सं०√वह (ढोना)+णिच्+क्त] १. जिसका वहन हुआ हो। ढोया हुआ। २. बहता हुआ। प्रवाहित। ३. चलाया हुआ। चालित। ४. वंचित।
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वाहिद  : वि० [अ०] १. एक। २. अकेला। ३. अनुपम। पुं,० ईश्वर।
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वाहिनी  : स्त्री० [सं०] १. सेना। फौज। २. प्राचीन भारतीय सेना की एक इकाई जो तीन गल्मों के योग से बनती थी। ३. आज-कल सेना का वह विशिष्ट विभाग जो किसी एक उच्च सैनिक अधिकारी के अधीन हो। (डिवीजन) ४. शरीर-विज्ञान में नली के आकार के वे सूक्ष्म आधार जो रक्त के कण एक-स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते हैं। (वेसल) ५. नदी।
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वाहिनीपति  : पुं० [सं० ष० त०] १. वाहिनी नामक सैनिक विभाग का अधिपति। २. सेनापति।
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वाहिनीय  : वि० [सं०] शरीर के अन्दर की वाहिनियों से संबंध रखनेवाला। (वैस्कयुलर)।
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वाहियात  : वि० [अ० वाही का फा० बहु] [भाव० वाहियातपन] १. (वस्तु) जो निरर्थक या व्यर्थ हो। २. (बात) जो बे-सिर पैर का अश्लील या बेहूदी हो। ३. (व्यक्ति) जो तुच्छ, दुष्टप्रकृति निकम्मा या मूर्ख हो। विशेष—यह शब्द मूलतः बहुवचन संज्ञा होने पर उर्दू और हिन्दी में विशेषण रूप में दोनों वचनों में समान रूप से प्रयुक्त होता है। जैसे—वाहियात लड़का, वाहियात बात।
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वाहियाती  : स्त्री० [फा० वाहयात] १. वाहियातपन। २. कोई वाहियात बात।
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वाही  : वि० [अ०] १. सुस्त। ढीला। २. निकम्मा। निरर्थक। उदाहरण—अजी बस जाओ भी, कुछ तुम तो बड़े वाही हो।—इन्शा०। वाहियात इसी का बहु० रूप है। ३. अश्लील गंदा और भद्दा। मुहावरा— वाही तबाही बकना= (क) अश्लील, गंदी या भद्दी बातें कहना। (ख) बे-सिर-पैर की या व्यर्थ की बातें करना। ४. मूर्ख। बेवकूफ। ५. आवारा। बेहूदा।
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वाही-तबाही  : वि० [अ० वाही+तबाही] १. आवारा। २. बेहूदा। ३. बे-सिर-पैर का। अंड-बंड। स्त्री० गन्दी और भद्दी बातें। क्रि० प्र०—बकना।
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वाहु  : स्त्री० [सं०√वाध् (नाश करना)+कु, हादेश]=बाहु।
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वाह्य  : वि० [सं०√वह्+ण्यत्] वहन किये जाने के योग्य। जिसका वहन हो सके। पुं० १. यान सवारी। २. घोड़े बैल, हाथी आदि पशु जो वहन के काम आते हैं। वि० क्रि० वि०=वाह्म। विशेष—उक्त अर्थ में ‘बाह्म’ के यौ के लिए दे० ‘बाह्म’ के यौ०।
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वाह्लिक  : वि० [सं०] वाह्लीक देश का।
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वाह्लीक  : पुं० [सं०√वह्+लिण्०+कन्] १. एक प्राचीन जनपद जो भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर था। गांधार के पास का प्रदेश। आधुनिक बल्ख राज्य़। २. उक्त देश का निवासी। ३. उक्त का घोड़ा। ४. केसर। ५. हींग।
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